संविधान हत्या दिवस विशेष: आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की सीता रावण के गलीयारो में कैद थी...!

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भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ संगठन सहायक एवं लोकतंत्र सेनानी गोवर्धन प्रसाद जायसवाल ने वर्तमान परिवेश में समुचे देश में चल रहे आपात काल स्मृति दिवस चल रहा है। इस दौर में प्रबुद्धजन एवं आमजन के नाम जारी बयान में कहा है कि आपातकाल का बयान आते ही रूह काप जाता है। उस कालखंड के दौर में लोकतंत्र की सीता रावण के गलियारो में कैद थी। 
 उन्होंने विस्तृत ढंग से विवरण के साथ बेबाकी अंदाज में कहा कि आज से 50 वर्ष पूर्व 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी अपने निकटतम प्रतिद्वदी राजनारायण से ईलाहाबाद हाई कोर्ट के जेस्टीज जगमोहन सिन्हा द्वारा दिये गये फैसले में प्रधानमंत्री पद के लिये अपात्र एवं 6 वर्षो के लिये चुनाव लडऩे अयोग्य घोषित कर दिया। 
यदि इंदिरा गांधी चाहती तो फैसले की विरूद्ध अपील में जा सकती थी। वह बहादुर नही अपितु डरपोक महिला थी, जिसके चलते संवैधानिकता का दुरूपयोग करते हुए अर्ध रात्रि की बेला में राष्ट्रपति से हस्ताक्षर करवाकर गलत ढंग से आपातकाल घोषित करवा दिया। अर्धरात्रि के समय में कौन लोग निर्णय लेते है, इस पर चुटकी लेते हुए कहां कि मेरे से ज्यादा आप लोग जानते है। आपातकाल की चपेट में मातृसंघ, जनसंघ की नही प्रेस, न्यायालय के साथ 28 विचारधारा के राष्ट्रवादी, लाखों देशभक्तो को रातोरात जेल की सिंखचो में बंद कर दिया गया। आपातकाल की संवैधानिकता से पक्ष पर ध्यान इंगित करते हुए बताया कि यह निर्णय राष्ट्रहित में विदेशी आक्रमण बनी पूर्व संभावनाओं से राष्ट्रीय हार जाता है, तभी इसका उपयोग किया जाता है। लेकिन उन्होंने मात्र कुर्सी बचाने दुरूपयोग कर संविधान का गला घोंट दिया। कांग्रेस को लोकतंत्र एवं संवेधानिकता के पक्ष में किसी भी प्रकार नैतिक अधिकार नही है। 
आज लोकतंत्र एवं संवैधानिकता का  दुहाई देने वालो पर भारी ब्यंग कसते हुए उन्होंने कहा कि ये वही लोग है, जिसके कारण काश्मीर में 75 वर्ष से राष्ट्रगीत बंद करवा दिया था। वही लोग लोकतंत्र एवं संवैधिकता का स्वांग रच रहे है। जिसे समुचा देश देख रहा है।
इसी क्रम में उन्होंने प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी की ओर मुखातिब होते हुये कहा कि मै स्वयं शुरू में प्रशंसक था, क्योकि उन्होंने आपातकाल को अपनी दादी का बड़ा चुक बताया था। लेकिन वर्तमान परिपक्ष्य में सहसा अचानक बदल जाना आश्चर्य का विषय है। चुकि वे अपने को ब्राम्हण होना बताते है, उस पर मुझे कुछ कहना नही है, ब्राम्हण तो विद्वान दृढ निश्चयी एवं समग्र चितन से पूर्ण होते है। अब इसे मै क्या कहू शब्दकोष का अभाव है। इसी क्रम में श्री जायसवाल ने सम्मान सहित संविधान एवं लोकतंत्र पर दुर्ग स्टेडियम में सुविधानुसार समय निकाल कर पधारने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि पूर्व में ही राजीव गांधी से मेरा पाला हो चुका है, जिसे 15 मीनट के भीतर, क्या हश्र हुआ जब उसे मंच छोड़कर भागना पड़ा। इसे छत्तीसगढ देख चुका है। अब देश देखना चाहेगा।