दुर्ग-भिलाई

नगपुरा में चातुर्मास प्रवचन माला में साध्वी लब्धियशा श्रीजी का आत्मकल्याण और निराभिमान जीवन पर सारगर्भित संबोधन

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नगपुरा। श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ, नगपुरा में चल रही चातुर्मास प्रवचन माला के अंतर्गत श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी के दिव्य वचनों का उद्घाटन करते हुए साध्वी श्री लब्धियशा श्रीजी म.सा. ने आत्मकल्याण, निरभिमान जीवन और समता की भावना पर गहन प्रवचन दिया। उन्होंने श्री आचारांग सूत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि जीव अनेक बार उच्च और नीच कुलों में जन्म लेता है, कभी धनवान तो कभी निर्धन, कभी सामर्थ्यवान तो कभी असहाय जीवन को प्राप्त करता है – यह सभी पूर्वकृत कर्मों का ही फल है।
साध्वीश्री ने कहा कि जीवन की इन विषमताओं के बीच मन में हीनता या अभिमान का भाव नहीं लाना चाहिए।

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आत्मकल्याण की दिशा में यह सबसे बड़ा अवरोधक बनते हैं। उन्होंने श्रोताओं से आह्वान किया कि जीवन में निराभिमानी बनने का प्रयास करें, जो कठिन अवश्य है परंतु रसगौरव, रिद्धिगौरव और शातागौरव के प्रति जागरूकता के माध्यम से संभव है।
उन्होंने कहा कि आत्मा का मूल स्वभाव सरल, शांत और निर्लेप है, किंतु कषाय – जैसे क्रोध, लोभ, माया और अभिमान – आत्मा को विकृत कर देते हैं। अभिमान भी एक प्रमुख कषाय है, जो आत्मा के विकास को रोकता है। उन्होंने भगवान महावीर के पूर्वभव मरीचि का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे मरीचि को स्वयं के कुल, पद और भविष्य के प्रति गर्व था, जिसका परिणाम यह हुआ कि तीर्थंकर भव में भी उन्हें नीच गौत्र में 82 दिन तक गर्भवास सहना पड़ा।

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साध्वीश्री ने स्पष्ट किया कि अभिमान ही विनाश का मूल कारण है। अहंकार व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु बनकर उसे पतन की ओर ले जाता है। उन्होंने श्रोताओं से आग्रह किया कि वे स्वयं को श्रेष्ठ मानने के भाव से मुक्त करें और आलोचना से डरने की बजाय उसे आत्मसुधार का माध्यम बनाएं। उन्होंने पद-प्रतिष्ठा, ऊँच-नीच और बड़े-छोटे के भाव से ऊपर उठकर समता भाव अपनाने का संदेश दिया।
उन्होंने कहा कि जब तक समाज में असमानता का भाव रहेगा, तब तक अहंकार से मुक्ति संभव नहीं। अहंकारी व्यक्ति वास्तव में अल्पज्ञ और अनुभवहीन बना रह जाता है। साध्वीश्री के प्रवचन ने जनमानस को गहराई से प्रभावित किया और आत्मनिरीक्षण की प्रेरणा दी।
प्रवचन के पश्चात श्रद्धालुओं ने आत्ममंथन कर साध्वीश्री के चरणों में वंदन कर उनके उपदेशों के लिए आभार व्यक्त किया। चातुर्मास के इस पावन अवसर पर धर्म, साधना और संयम के मार्ग पर चलने का संकल्प सभी ने लिया।

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