होम / दुर्ग-भिलाई / झांसी में दुर्ग के डॉ. अजय आर्य का व्याख्यान एवं सम्मान
दुर्ग-भिलाई
-खुश रहो और खुश रखो यही धर्म का सार है: आचार्य डॉ. अजय आर्य
दुर्ग। आर्य समाज नगर झांसी में सुप्रसिद्ध वैदिक आर्य विद्वान आचार्य डॉ. अजय आर्य का व्याख्यान आयोजित किया गया। व्याख्यान से पूर्व चरण में मातृशक्ति द्वारा वैदिक यज्ञ एवं ईश्वर भक्ति के भजन प्रस्तुत किए गए। जगदीश शर्मा ने ऋषि दयानंद की जीवनी और सत्यार्थ प्रकाश का पाठ प्रस्तुत किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आचार्य डॉ. अजय आर्य ने कहा कि धर्म खुश रहना है। भक्ति के अनेक चिन्ह लिखे हैं उसमें से एक है प्रसन्न वदन। प्रसन्न बदन का अर्थ है कि जिसके चेहरे से प्रसन्नता झड़ झर रही हो। इसीलिए मैं जब कभी घर में जाता हूं और लोग आशीर्वाद देने के लिए कहते हैं मैं एक ही बात कहता हूं धर्म का यही सारांश है कि खुश रहो और रखो। हमारे यहां ईश्वर को सच्चे आनंद स्वरूप कहा गया है। उपनिषद के ऋषियों ने रसो वै स: कहां है परमात्मा रस पूर्ण है परमात्मा आनंदपूर्ण है। जब परमात्मा आनंदपूर्ण है तो उसका भक्त आनंद से वंचित कैसे रह सकता है। प्रतिक्षण आनंद को अनुभव करना चाहिए। मेरे पिताजी धार्मिक होने का अर्थ समझते थे कि सीरियस होना वह खुलकर कभी हंसते नहीं थे। हमेशा भी अपने बच्चों को दहशत में रखते थे और उनकी दृष्टि से यह धार्मिक व्यवहार था। मैं कहता हूं कि आपके रहने और आपकी उपस्थिति से अगर कोई प्रसन्न होता है तो आपका होना सार्थक है। आपका यज्ञ करना सार्थक तभी है जब आप यज्ञ के भाव को आत्मसात करके परोपकार का रास्ता चुन ले। आपका जीवन आनंदित हो जाए मंगल हो जाए प्रसन्न हो जाए।संवेदनशील होकर ही व्यक्ति धार्मिक हो सकता है। प्राणायाम शब्द का अर्थ भी है प्राणों का विस्तार करना। प्राण हमारा जीवन है हमारी अनुभूति का आधार है। इसका अर्थ है कि धार्मिक व्यक्ति जब प्राणायाम करें तो उसके प्राण व्यापक होकर की दूसरों की दुख और दर्द महसूस करने लगे। स्वामी दयानंद के जीवन में आता है कि उन्होंने समाज सुधार का संकल्प क्यों लिया क्योंकि जब भी गंगा के किनारे घूम रहे थे तब उन्होंने एक विधवा स्त्री की विपन्न दशा देखी थी। तभी से उन्होंने विधवाओं के पुनरुद्धार का बीड़ा उठा दिया था।
ऋग्वेद में आदेश दिया गया है कि सभी को मित्र भाव से देखिए मित्रस्य समीक्षामहे सबको मित्र समझिए जीवन आनंदित हो जाएगा। जीवन के चार सूत्र हमेशा याद रखें। स्वयं को प्रसन्न रखना आपकी खुद की जिम्मेदारी है। हमेशा पसंद रहने का प्रयत्न करें। दूसरों की गलती को इग्नोर करने का अभ्यास करें। जब आपको किसी को सीखने की जिम्मेदारी हो तो बिना क्रोध किए सामने वाले व्यक्ति को सुधारने का मौका अनुभव और अवसर जरूर दें। सहृदय बनने का अभ्यास करें। जहां तक हो सके किसी की मदद जरूर करें। स्वयं को प्रसन्न रखने के साथ-साथ स्वयं को तंदुरुस्त रखना भी जरूरी है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने 150 साल पहले इसीलिए उपासना की विधि में संध्या मंत्रों के बीच में प्राणायाम मित्रों का उल्लेख किया और प्राणायाम करने के नियम को बनाया।
-पति-पत्नी एक दूसरे का सम्मान करें..
गृहस्थ जीवन बहुत महत्वपूर्ण है और स्वामी दयानंद ने संस्कार विधि में इसे सर्वश्रेष्ठ कहा है और विवाह संस्कार को सभी संस्कारों तथा आश्रमों का आधार कहां है। हम सब ने सुना है कि पति को अधिक महत्व दिया जाता है। पत्नी को पति के पास छूने का उपदेश दिया जाता है। पत्नी को पति को आदर करने की बात कही जाती है। स्वामी दयानंद अपने यूट्यूब में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि सोने से पहले पति पत्नी दोनों एक दूसरे का सम्मान करें। एक दूसरे को नमस्ते करें। यह समानता का भाव। यह है कृतज्ञता। पति और पत्नी दोनों एक दूसरे के लिए बहुत कुछ करते हैं। इसलिए एक दूसरे के प्रति कृतज्ञ होना जरूरी है।
आचार्य ने चुटकी लेते बताया कि एक बार एक व्यक्ति के घर से बहुत हंसने की आवाज आती थी। दो-चार दिन पड़ोसी ने इग्नोर किया लेकिन फिर रहा नहीं गया कि शादीशुदा लोग हैं पति-पत्नी दोनों साथ में रहते हैं फिर रन लड़ने झगड़ने की आवाज क्यों नहीं आती सिर्फ हंसने की आवाज आती है। एक दिन एक मित्र ने संस्कार के पूछ लिया तो उसे व्यक्ति ने जवाब दिया कि जितनी भी आवाज है, आप सुन रहे हैं यह सब लड़ने की कारण आए हैं। मैं दाल तड़का खाने का आदी हूं कई बार दाल में आवश्यक नमक तथा संसार का उपयोग नहीं किया जाता। सैंडविच में भी ऐसा ही है।
कई बार धार्मिक लोग यह कहते हैं कि कम लोग इसलिए सत्संग में आते हैं क्योंकि अच्छे लोग कम होते हैं। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। आपका सत्संग आकर्षक होना चाहिए अच्छे वक्ता होने चाहिए अच्छे भजन गाने वालों को मौका मिलना चाहिए। जब किसी व्यक्ति को लगेगा की धार्मिक स्थल पर पहुंच कर सुकून मिलता है मैडिटेशन किया जाता है शांति मिलती है तो और बात होती है। हम सबको कोशिश करनी चाहिए कि हम अपनी धार्मिक विचारधारा से दूसरे लोगों को जोड़। स्वयं की उन्नति करना अच्छी बात है। दूसरों की उन्नति करना पुण्य की बात है। धर्म हमारे जीवन का आधार बनना चाहिए।
आर्य समाज के प्रधान राजेंद्र ने कहा कि जब मैं तुर्की गया था तो भारत के कितने पैसे में लेकर के गया था सब व्यर्थ हो गए क्योंकि वहां पर वह पैसा नहीं चलता था। ऐसी आचार्य जी ने जो बातें कहीं इसमें हम लोग रुपया धन दौलत सभी इकट्ठा कर रहे हैं लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि जब हम वापसी करेंगे तब ईश्वर के दरबार में यह सब काम नहीं आएगा। वहां धर्म पुण्य परोपकार तपस्या काम आएगी। जो हमारी जरूरत है उसे पूरा कीजिए।
कार्यक्रम के अंत में आर्य समाज के पदाधिकारियों ने आचार्य डॉ. अजय आर्य ने स्कंध वस्त्र देकर स्वागत किया।
राजेंद्र सिंह आर्य, आरके सिंह परिहार, ओम प्रकाश शर्मा, अरुण सक्सेना, अवधेश राम आर्य, प्रख्यात राम आर्य, रघुराज सिंह, रामबाबू तिवारी, बीना शर्मा, राकेश नामदेव, जगदीश शर्मा, राम गोपाल आर्य, मिथिला साहू, उर्मिला साहू, रामादेवी साहू, अर्चना शर्मा, राम श्री साहू उमेश गुर्जर, आशा शर्मा, शकुंतला यादव , जसवंत सिंह, दयाराम यादव आदि उपस्थित थे।
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