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अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन में आचार्य डॉ. अजय आर्य ने दिया प्रभावी वक्तव्य

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-वेद सत्य विद्याओं का आधार और मानवता का मार्गदर्शन
-महर्षि दयानंद के विचारों में है, युवाओं की समस्या का समाधान:  डॉ. अजय आर्य
दुर्ग।
नई दिल्ली में आयोजित चतुर्दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन एवं पैनल डिस्कशन में भिलाई (छत्तीसगढ़) के आचार्य डॉ. अजय आर्य ने अंतरराष्ट्रीय मंच से अपने ओजस्वी विचार प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक के संस्कृत विभाग के भूतपूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। संगोष्ठी की अध्यक्षता 
भूतपूर्व अध्यक्ष संस्कृत विभाग महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय प्रो. बालवीर ने की।
शिक्षाविद् प्रो. डॉ रवि प्रभात ने की तथा हेमा गायकवाड़ ने पीपीटी माध्यम से अपने सकारात्मक विचार साझा किए। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. सुधीर आर्य ने सभी विद्वानों का आभार व्यक्त किया।
आचार्य डॉ. अजय आर्य ने कहा -
आप अपनी विवाह विधि, कर्मकांड और परंपराओं के सवालों का जवाब युवा पीढ़ी को आप तभी दे पाएंगे जब आपके भीतर दयानंद की विचारधारा जीवित होगी। स्वामी दयानंद ने सनातन धर्म पर उठे हर प्रश्न का समाधान तर्क, विज्ञान और वेद के आलोक में खोजने का साहस किया। उन्होंने अंधविश्वास, पाखंड, अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध खड़े होकर यह सिद्ध किया कि वेद सत्य विद्याओं का ग्रंथ है और सत्य सनातन धर्म मानवता का पोषक है।
उन्होंने कहा कि भारत ही वह भूमि है जिसने विश्व को वसुधैव कुटुम्बकम् का पाठ पढ़ाया और जिसकी प्रार्थना सर्वे भवन्तु सुखिनः के सार्वभौमिक मानवतावाद पर आधारित है।

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डॉ. आर्य ने अपनी ओजस्वी व्याख्यान में कहा -
आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व एक व्यक्ति ने जब बलि प्रथा और अंधभक्ति को देखा तो उसने पूछा - यह क्यों। जब उत्तर मिला - वेद में लिखा है, तब उसने कहा - मैं उस वेद को नहीं मानता जिसमें करुणा नहीं। वही भावना आगे चलकर महर्षि दयानंद के रूप में पुनः अवतरित होती है। उन्होंने जब समाज से पूछा कि यह सब अंधविश्वास और पाखंड कहां लिखा है, तो लोगों ने कहा - वेद में लिखा है। तब दयानंद ढाई हजार वर्ष पहले के उस महापुरुष की तरह वेद के विरोधी नहीं बने, बल्कि उन्होंने वेदों में सत्य ढूंढने की कोशिश की। उन्होंने समाज से कहा - बताओ, इसका मंत्र कहां है। उन्होंने वैदिक सत्य और सनातन धर्म की अलग ज्योति जगाई और दुनिया को बताया कि वेद को मानने वाली संस्कृति वैज्ञानिक और प्राचीन संस्कृति थी, जिसने समस्त मानवता को उपदेश दिया।
कार्यक्रम में आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री ने कहा - महान व्यक्ति कभी अहंकारी नहीं होता और अहंकारी व्यक्ति कभी महान नहीं बन सकता।
समापन अवसर पर वैदिक चिंतन, भारतीय ज्ञान परंपरा और स्वामी दयानंद के विचारों पर शोधपरक चर्चा हुई। डॉ. अजय आर्य के विचारों की सराहना देश और विदेश से आए विद्वानों ने की और कहा कि उनके शब्द आज के समाज को आत्मचिंतन की दिशा प्रदान करते हैं।
उल्लेखनीय है कि आर्य महासम्मेलन का सीधा प्रसारण आर्य संदेश टीवी के माध्यम से करोड़ों लोगों तक पहुंच रहा है। छत्तीसगढ़ के वैदिक विद्वान आचार्य डॉक्टर अजय आर्य सहित 2000 आर्य प्रतिनिधि महासम्मेलन में शामिल हो रहे हैं।

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