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     देश भर में 2-3 माह का यह समय उत्सवों का कालखंड रहता है । गणेश उत्सव, विजयदशमी, दीपावली, छठ पूजा एवं उससे जुड़े अनेक धार्मिक उत्सव, कुछ प्रदेशों में उनके अपने नव वर्ष का प्रारंभ, मुस्लिम समाज में मनाया जाने वाला ईद जैसे त्यौहार समाज में उत्साह एवं उमंग का संचार करते हैं । घरों में प्रकाश, परस्पर शुभकामनाओं के लिए भेंट, मिष्ठान वितरण, नए वस्त्रों का पहनना एवं एक दूसरे को उपहार देना समाज का स्वाभाविक चलन है । इस कालावधि में 2 अक्टूबर महात्मा गाँधी जी की जयंती खादी दिवस के रूप में भी मनायी जाती है । समाज की यह परंपरा एवं उत्साह स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता का आधार बने इसके लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने आह्वान किया कि “नया समान स्वदेशी ही खरीदेंगे, घर सजाएंगे स्वदेशी से, जिंदगी बढ़ाएंगे स्वदेशी से।” एक दूसरे स्थान पर उन्होंने कहा कि गणेशोत्सव में स्वदेशी उत्पाद, उपहार वही जो भारत में बना हो, पहनावा वही जो भारत में बुना हो, सजावट वही जो भारत में बने सामान से हो, रोशनी वही जो भारत में बने सामान से हो । श्रम एवं श्रमिक वर्ग को महत्त्व प्रदान करते हुए उन्होंने कहा कि “पैसा किसी का सामान हमारा, जो प्रोडक्शन होगा उससे महक मेरे देश की मिट्टी की होगी, मेरे भारत माँ की होंगी ।”
   प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का यह आह्वान केवल भावनात्मक नहीं, इसके पीछे समाज के आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से पिछड़े समाज के आर्थिक सशक्तिकरण का ही था । प्राचीन भारतीय समाज एक स्वावलंबी इकाई के स्वरूप में कार्य करता था एवं प्रत्येक वर्ग का कार्य भी परंपरा के रूप में निर्धारित था । महात्मा गाँधी जी ने हिंद स्वराज पुस्तक में इसका उल्लेख भी किया है । इन त्योहारों में उपयोग होने वाली आवश्यक वस्तुओं का यदि हम अध्ययन करते हैं तब हमको स्मरण आएगा कि यह समाज के जनसंख्या की दृष्टि से अधिकतम वर्ग अति पिछड़ा एवं दलित वंचित-समाज द्वारा निर्मित होते हैं । यह वर्ग पिछड़े वर्ग का 50% से भी अधिक भाग है । जैसे दीपावली पर उपयोग होने वाले दीपक, खादी एवं हथकरघा की बनी वस्तुएं, मोमबत्ती, पटाखे, पुष्प मालाएं, खिलौना, पूजा की सामग्री, जूते, आभूषण, ज्वेलरी, मिष्ठान आदि सामान कुम्हार (प्रजापति), चर्मकार ,कुटीर एवं लघु उद्योगों में कार्य करने वाली महिलाएं, छोटे कारीगर, जनजाति समाज द्वारा वनोपज से निर्मित स्थानीय उत्पाद, ज्वेलरी बिकती है बड़े प्रतिष्ठानो में पर उसके निर्माण में लगने वाले स्थानीय कारीगर एवं कारीगरी के लिये जाने वाले बंगाल के शिल्पकार संपूर्ण देश में मिलते हैं । छोटे-छोटे उत्पादो को ठेले, रेहड़ी-पटरियों पर बेचकर अपना अर्थोपार्जन करने वालो का त्यौहार इसी आमदनी से मनाया जाता है । कलांतर में यह सभी समान विदेशों से आयात होने के कारण, गरीब का रोजगार छिन गया । खिलौने, झालर, पटाखे एवं साज-सज्जा के सभी समान पर विदेशी  बाज़ार का कब्जा हो गया । जिसके कारण गरीब की दीपावली भी गरीबी में चली गयी । 
      दीपावली 2025 के अब तक के सीएआईटी (कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स) के सर्वेक्षण के अनुसार 5.40 लाख करोड़ का व्यवसाय व्यापारिक गतिविधियों के द्वारा हुआ जो कि 2024 में कुल 4.25 लाख करोड़ था । व्यापार में 25 %  की वृद्धि गत वर्ष की तुलना में हुई । सहकार एवं कृषि क्षेत्र के बिना भी यह 9 करोड़ छोटे-छोटे व्यावसायिक इकाइयों का प्रतिनिधित्व करती है । सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) में भी 65,000 करोड़ का व्यवसाय किया गया है ।72% व्यापारी मानते हैं कि व्यापार में यह उछाल जीएसटी की कमी के कारण आया है । 87% खरीदारों ने स्वदेशी सामान खरीदकर मोदी जी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की है । अनुमान के अनुसार 50 लाख लोगों को अल्पकालिक रोजगार भी उपलब्ध हुआ है । कुल बिक्री में छोटे-छोटे शहर एवं ग्रामीण क्षेत्रों का 28%  योगदान है । केंद्र सरकार द्वारा चालित कुम्हार सशक्तिकरण प्रोग्राम, वस्त्र उद्योग, धातु-काम कारीगर, लकड़ी कारीगर, बांस उद्योग आदि को एमएसएमई द्वारा प्रोत्साहन भी मिला है । ताजा बाजार एनालिटिक्स रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार भारत का फेस्टिवल सीज़न कंज्यूमर खर्च 12 से 14 लाख करोड़ होगा । प्रधानमंत्री जी के आह्वान खादी फॉर नेशन, खादी फॉर फ़ैशन (Khadi for Nation , Khadi for Fashion ) के कारण 2104 की तुलना में खादी की बिक्री में 447% बढ़ी है । 2014 में यह बिक्री  3154 करोड़ की तुलना में 2025 में 1.71 लाख करोड़ हुई है । इस वृद्धि के कारण 10 लाख से अधिक खादी के क्षेत्र में नए रोजगार सृजित हुए है ।
      पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपने चिंतन में अंत्योदय (गरीब कल्याण) को ही प्रमुख स्थान दिया है । प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के आह्वान का परिणाम है कि यह दीपावली समाज के सभी वर्गों में उत्साह के साथ- साथ पिछड़े,दलितों  एवं महिलाओं को सशक्तिकरण एवं रोजगार देने वाले बनी है । त्यौहार से अर्जित राशि बाजार की क्रय शक्ति को बढ़ाएगी जिससे हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी । जिसके कारण दुनिया के सभी कुचक्रों का प्रतिकार हम कर सकेंगे । अर्थव्यवस्था को  मजबूत करने के लिए स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता केवल कुछ अवसर पर नहीं बल्कि हमारे जीवन का स्थायी मंत्र बनना चाहिए ।                                                                     शिवप्रकाश                                                  (राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री, भाजपा)
 
                                
                             
                                
                             
                                
                             
                                
                             
                                
                             
                                
                             
                                
                             
                                
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