साहू समाज का सांसद चाहिए या प्रधानमंत्री, उलझन...!

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RO No.12822/158

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दुर्ग । साहू समाज के पदाधिकारी गांव और शहर में बैठकें लेकर अपने समाज के ही प्रत्याशी को वोट देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, चाहे पार्टी कोई भी हो। दुर्ग संसदीय क्षेत्र के पाटन से लेकर भिलाई, दुर्ग, धमधा, अहिवारा, बेमेतरा,  साजा, नवागढ़ तक साहू समाज के पदाधिकारी लगातार बैठकें कर रहे है। यह जद्दोजहद सिर्फ दुर्ग लोकसभा में ही नही, अपितु महासमुंद, बिलासपुर संसदीय क्षेत्र में भी चल रहा है। साहू समाज की यह जातीय लामबंदी इस चुनाव में कितना असर डालता है, यह तो परिणाम ही बताएगा। पर इससे यह बात समझी जा सकती है कि  छत्तीसगढ़ में भी राजनीतिक दलबंदी के बजाए सामाजिक विभेदीकरण का दौर आरंभ हो चला है। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह अच्छा संकेत नहीं, किंतु इसका बीजारोपण भी सियासतदानों ने ही किया है। 
मालूम हो, मध्य छत्तीसगढ़ में 90 के दशक में कुर्मी समाज का राजनीतिक वर्चस्व उफान पर था। चंदूलाल चंद्राकर, रमेश बेस, भूपेश बघेल, पुरुषोत्तम कौशिक, प्यारेलाल बेलचंदन, बृजलाल वर्मा, वासुदेव चंद्राकर जैसे कुर्मी नेताओं की अगुवाई में पिछड़ी जाति और दलित वर्ग के लोग राजनीति की मुख्य धारा से जुड़े। उसके पहले तक सत्ता सूत्र सवर्ण और अन्यत्र प्रांतों से आए लोगो के हाथ में था। खूबचंद बघेल समेत कई नेताओं ने छत्तीसगढ़वाद की अलख जगाई। लोकल लोग एकजुट  हुए। कुछ अंतराल में यह संघर्ष अगड़ा पिछड़ा पर आ गई। कालखंड के इस हिस्से तक कुर्मी समाज के नेता ही अगुवाई करते रहे। सवर्ण समाज के नेताओ को समझ आ गया कि लोकतंत्र में अपने वोटो की कीमत अब आम और गरीब आदमी भी समझने लगा है, और सत्ता में भागीदारी भी चाहता है। तब सवर्ण नेताओं ने डिवाइड एंड रूल की अंग्रेजी पॉलिसी अपनाई। कुर्मी समाज के सामने साहू समाज को ला खड़ा किया। करीब तीन दशक तक यह प्रयोग बदस्तूर चलता रहा। लेकिन तब तक नवजागरण ने प्रवाहमान जल से शिवनाथ नदी के पानी का रंग बदल चुका था। साहू समाज अब उस स्थिति में आ गया था कि सवर्णों को हाशिए में ढकेल दिया। 
तेली समाज छत्तीसगढ़ का विशाल जनसमुदाय है। पिछले चार दशक में इस समाज ने चहुमुंखी विकास किया है। इस समाज की नई पीढ़ी पढ़ लिख कर बड़े बड़े जगहों पर गई है। अपने वोटो के हिसाब से सत्ता में उल्लेखनीय भागीदारी हासिल किया है। 
बहरहाल, साहू समाज आज 2024 के चुनाव में भी सामाजिक अस्तित्व को धार देना चाहता है। अलबत्ता, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं को तेली समाज का बताते हैं। 
अब तेली समाज के लोगो को तय करना है कि उन्हे तेली समाज का सांसद चाहिए या प्रधानमंत्री?