-आंदोलन को अब किया जायेगा उग्र
-शासन के उपेक्षापूर्ण रुख से आन्दोलन को हुए विवश,170 से ज्यादा बार ज्ञापन पर नही हुई कोई सुनवाई
-अन्य राज्यों में एन एच एम कर्मचारी पा रहे बेहतर सुविधा, कोरोना में जान गंवा कर भी मिला कुछ नहीं
-मुख्य माँगों को किनारे कर शासन फैला रहा भ्रामक जानकारी
रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश इस समय मौसमी बीमारियों से ग्रसित चल रहा है ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों ने 18 अगस्त से अपनी 10 सूत्री मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन आंदोलन की घोषणा की थी जो अब भी जारी है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अमित मिरी सहित अन्य सदस्यों ने प्रेस वार्ता को संबोधित कर जानकारी दी कि, विधानसभा चुनाव 2023 के दौरान भारतीय जनता पार्टी की घोषणा पत्र में मोदी की गारंटी का उल्लेख करते हुए संविदा स्वास्थ्य कर्मचारियों की समस्याओं के निराकरण का वादा किया गया था परंतु सरकार बनने के 20 माह होने के बाद और 160 से अधिक ज्ञापन मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, वित्त मंत्री ,उपमुख्यमंत्री ,विधायक सांसदों को देने के पश्चात भी कोई सुनवाई नहीं हुई । निराश होकर वर्ष 2024 के विधानसभा मानसून सत्र के दौरान 22 एवं 23 जुलाई को दो दिवसीय प्रदर्शन ,1 मई 2025 को विश्व मजदूर दिवस तथा इसी वर्ष विधानसभा मानसून सत्र के दौरान 16 तथा 17 जुलाई को पुनः दो दिवसीय प्रदर्शन किया गया । 17 जुलाई को ही राज्य कार्यालय के उच्च अधिकारियों को यह अवगत कराया गया था कि यदि 15 अगस्त तक किसी प्रकार की कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती है तो उसके पश्चात कर्मचारी आंदोलन पर जाएंगे जिसकी पूरी जिम्मेदारी शासन की होगी । अवगत होना चाहेंगे कि शासन की इस प्रकार की अपेक्षा और सुस्ती ने ही 16 हज़ार एनएचएम कर्मचारियों को स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना छोड़ आंदोलन पर जाने को विवश । स्पष्ट है कि, इस पूरे आंदोलन के लिए पूरी तरह से शासन और प्रशासन का अपेक्षा पूर्ण व्यवहार ही जिम्मेदार है।
दुर्ग जिला अध्यक्ष डॉ आलोक शर्मा ने जानकारी दी कि विगत 20 दिन से ये आंदोलन अनवरत जारी है,कर्मचारियो के आक्रोश का चरम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब हमारे 25 साथीयो को दमन पूर्वक बर्खास्त कर आंदोलन को समाप्त करने का प्रयाश किया गया तो पूरे प्रदेश के 16000 कंर्मियों ने एक साथ स्वमेव इस्तीफा तक दे दिया। ये आन्दोलन अब जन आंदोलन में बदल चुका है, सरकार को जल्दी फैसला करके हड़ताल को समाप्त करने का प्रयाश करना चाहिए।
-ये हैं 10 सूत्री मांग....
1- संविलियन जॉब सुरक्षा
2- पब्लिक हेल्थ कैडर की स्थापना
3- ग्रेड पे निर्धारण
4- कार्यमूल्यांकन पध्दति में सुधार
5-लंबित 27% वेतन वृद्धि
6-नियमित भर्ती में सीटों का आरक्षण
7-अनुकंपा नियुक्ति
8-मेडिकल या अन्य अवकाश की सुविधा
9-स्थानांतरण नीति
10-न्यूनतम 10 लाख चिकित्सा बीमा
आंदोलन के दौरान ही स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल द्वारा यह कहा गया कि 10 सूत्री मांगों में से मुख्य मांग का निराकरण केंद्र सरकार की अनुमति से होगा जबकि संघ का कहना है कि स्वास्थ्य जो है वह राज्य का मामला है ऐसे में इसमें पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार की बनती है । जिन अन्य पांच मांगों पर शासन द्वारा सहमति की बात कही गई है उस पर छत्तीसगढ़ प्रदेश एनएचएम कर्मचारी संघ को निम्न बिंदुओं के आधार पर आपत्ति है:-
1- ट्रांसफर नीति- इस पर शासन ने कमेटी का गठन कर दिया है, जबकि इससे पूर्व में भी कई कमेटियों का गठन किया गया । पिछले कई वर्षो से कमेटी के कारण विलंब किया जा रहा है । इसमें भी कमेटी के कार्य की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है।
2- सी आर व्यवस्था में पारदर्शिता- प्रशासन ने इसके लिए एक अपीलेट अथॉरिटी का गठन किया है । संघ का कहना है कि केवल अपीलेट अथॉरिटी का गठन ही पर्याप्त नहीं है इसमें वह कर्मचारी जिसकी सेवा समाप्त की गई है उसे तब तक न हटाया जाए जब तक अपीलेट अथॉरिटी अपना फाइनल निर्णय नहीं दे देती । सी आर की प्रति सम्बंधित कर्मचारी को प्रदान किया जाना उचित होगा । इसके साथ ही कार्य सुधार नोटिस प्राप्त कर्मियों की वेतन कटौती असंचयी हो ।
3- 10 लाख तक का कैशलेश बीमा- इस पर अभी तक कोई सर्कुलर नहीं निकला है संघ का कहना है कि हर साल 5 करोड रुपए की राशि कर्मचारी कल्याण हेतु आती है जो बिना उपयोग के लैप्स हो जाती है। छत्तीसगढ़ में संविदा नियम के तहत चिकित्सा परिचर्या का प्रावधान संविदा कर्मचारियों के लिए पहले से ही बनाया गया है। संघ आयुष्मान भारत के माध्यम से कैशलेस बीमा प्रदान करने से सहमत नहीं ।
4- लंबित 27% वेतन वृद्धि जिसे 5% किया गया- इसके लिए कोई सर्कुलर जारी नहीं हुआ ।
5- दुर्घटना या बीमारी में सवैतनिक अवकाश- इस पर सर्कुलर निकला है। पर इस केस में पीड़ित व्यक्ति के आवेदन पर निर्णय राज्य कार्यालय लेगा ऐसा कहा गया है जो कि व्यावहारिक नहीं है । जिलों का यह मामला है इसका निराकरण जिले में ही किया जाए तो उचित होगा । समय सीमा में निराकरण का प्रावधान करना उचित होगा ।
छत्तीसगढ़ प्रदेश एनएचएम कर्मचारी संघ का कहना है कि नियमितकारण, ग्रेड पे , अनुकंपा नियुक्ति ,पब्लिक हेल्थ कैडर जैसी जरूरी मांगों को किनारे कर उक्त मांगों को शासन अपनी उपलब्धि बता रहा है जो की सही नहीं है । राज्य शासन के स्वास्थ्य मंत्री द्वारा बार-बार यह कहा जाना कि इसमें केंद्र के मंजूरी की जरूरत पड़ेगी यह पूरी तरह से गलत जानकारी है। भारत सरकार के संयुक्त सचिव मनोज झालानी द्वारा प्रेषित पत्र और अभी इसी माह सितंबर 2025 में एनएचएम साथी द्वारा सूचना के अधिकार से प्राप्त जानकारी में यह साबित हुआ है कि एनएचएम के कर्मचारियों के नियमितीकरण सहित अन्य सुविधाओं के लिए राज्य सरकार ही जिम्मेदार है ।
आंदोलन के दौरान शासन ने दमनपूर्ण कार्यवाही करते हुए सभी को 24 घंटे के भीतर वापस अपनी ड्यूटी ज्वाइन करने की चेतावनी दी इसके विरोध में राज्य स्वास्थ्य भवन का घेराव करते हुए वहां इस पत्र को फाड़कर कर्मचारियों ने जला दिया,बाद में उच्च अधिकारियों के साथ चर्चा हुई परंतु चर्चा से कोई समाधान न निकला तथा आंदोलन आगे बना रहा । इसी दौरान प्रदेश अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से एक वीडियो मैसेज के माध्यम से उक्त पूरे मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की किंतु शाम को ही
कर्मचारी संघ के प्रदेश तथा जिला स्तरीय 29 पदाधिकारियों को सेवा से पृथक कर दिया। इसके विरोध में 4 सितंबर को पूरे प्रदेश के बचे हुए कर्मचारियों ने अपने-अपने जिला कार्यालय में सामूहिक त्यागपत्र देकर आंदोलन को और तेज करने की घोषणा की ।
शासन और कर्मचारियों के बीच आपसी सम्वाद की कमी से प्रदेश की जनता की दिक्क्क्त बढ़ी है। हड़ताल के कारण पोषण पुनर्वास केंद्र, स्कूलों और आंगनबाड़ी में बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण, टीबी मलेरिया की जांच ,प्रसव कार्य,टीकाकरण, नवजात शिशु स्वास्थ्य केंद्र जैसी जरूरी स्वास्थ्य सुविधा बाधित हुई है। छत्तीसगढ़ प्रदेश एनएचएम कर्मचारी संघ शासन से यह मांग करता है कि वह तत्काल संवाद के माध्यम से हल निकाले।
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