-16 मार्च तो अंगीकार किया था संथारा, जैन समाज में छाई शौक की लहर
पूना। श्रमण संघीय चतुर्थ पट्टधर आचार्य डॉ शिवमुनि महाराज की आज्ञानुवर्ती उप प्रवर्तिनी साध्वी डॉ प्रियदर्शना (छोटे बाईजी महाराज) का आज पूना (महाराष्ट्र) के कोथरूढ़ जैन स्थानक में सांयकाल 3 बजकर पैंतालीस मिनट पर देवलोकगमन हो गया। उनके 68 दिवस का संथारा सीज गया है। 86 वर्षीय उप प्रवर्तिनी साध्वी डॉ प्रियदर्शना ने 16 मार्च 2025 को पूर्णतया जागृत अवस्था में स्वेच्छा से संथारा स्वीकार किया था, प्रतिदिन श्रद्धालुजन साध्वीश्रीके मुखारविंद से मंगलपाठ भी श्रवण करते थे।
उप प्रवर्तिनी साध्वी डॉ प्रियदर्शना महाराज की महाप्रयाण डोल यात्रा शुक्रवार सुबह 9 बजे शहर के कोथरूढ़ जैन स्थानक से प्रारंभ होकर विभिन्न मार्गों से गुज़रती हुई मोक्ष धाम पर जाएगी। जहां पर उनके पार्थिव देह के मुखाग्नि दी जाएगी।
-स्वेच्छा से देह त्यागना - संथारा
श्रमण डॉ पुष्पेंद्र ने कहा कि जैन धर्म में हजारों वर्षों से संथारे की परम्परा रही है। संथारा जैन धर्म की आगमसम्मत प्राचीन तपाराधना है। यह बारह प्रकार के तप में प्रथम तप का एक भेद है। संथारा शब्द के साथ ही संलेखना शब्द का प्रयोग भी होता है। सांसारिक वस्तुओं और संबंधों का विसर्जन संलेखना है। फिर ज्ञात-अज्ञात पाप-दोष की आलोचना करके, सबसे क्षमा याचना करके उपवास व आत्म साधना में लीन होना संथारा है। संथारे की संपूर्ति को समाधिमरण या पंडितमरण कहा जाता है।
स्वयं की इच्छा से देह त्यागने का नाम है संथारा। मान्यता है कि साधु/साध्वी को धर्म आराधना करते हुए अपनी उम्र पूरी होने का पूर्वानुमान हो जाता है, वे तब संथारा शुरु कर देते हैं। संथारा में अन्न-जल का पूरी तरह त्याग करना होता है। वे मौन रहकर सिर्फ धर्म आराधना करते हुए देह त्याग देते हैं।
-जैन समाज में सुदीर्घ संथारे -
जैन धर्म में यदि संथारा की बात करें तो अब तक सबसे कम उम्र में इंदौर की वियाना जैन ने तीन साल चार माह और एक दिन की उम्र में स्वीकर किया। साध्वी वर्ग में श्रमण संघीय दिवाकर सम्प्रदाय की महासती चरणप्रज्ञाजी महाराज का भीलवाड़ा में वर्ष 2008 में 87 दिन व उदयपुर शहर में 1996 में साध्वी गुलाबकुंवर का 83 दिन का भी संथारा संथारा रहा। जबकि मुनि वर्ग में बद्रीप्रसादजी महाराज सोनीपत (हरियाणा) का वर्ष 1987 में 72 दिन बाद संथारा सीझा था। इससे पूर्व पाँचवीं शताब्दी के शिलालेख अनुसार तमिलनाडू के जिंजी में जैन मुनि चंद्रनंदी का 57 दिवसीय संथारा रहा। इसी क्रम में श्रावक-श्राविका वर्ग में सरदार शहर निवासी भंवरीदेवी बुरड़ का संथारा वर्ष 1987 में सबसे 63 दिन बाद सीझा।
इतिहासकार डॉ दिलीप धींग के अनुसार भारतरत्न आचार्य विनोबा भावे ने अंतिम समय में समस्त इच्छाओं, औषधियों व आहार का त्याग करके संथारा किया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आहार ग्रहण करने के अनुरोध को भी विनोबाजी ने अस्वीकार कर दिया था। वस्तुतः संलेखना जीवन की अंतिम वेला में की जाने वाली विधिसम्मत और शास्त्रसम्मत तपस्या है।
संपादक- पवन देवांगन
पता - बी- 8 प्रेस कॉम्लेक्स इन्दिरा मार्केट
दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
ई - मेल : dakshinapath@gmail.com
मो.- 9425242182, 7746042182
हिंदी प्रिंट मीडिया के साथ शुरू हुआ दक्षिणापथ समाचार पत्र का सफर आप सुधि पाठकों की मांग पर वेब पोर्टल तक पहुंच गया है। प्रेम व भरोसे का यह सफर इसी तरह नया मुकाम गढ़ता रहे, इसी उम्मीद में दक्षिणापथ सदा आपके संग है।
सम्पूर्ण न्यायिक प्रकरणों के लिये न्यायालयीन क्षेत्र दुर्ग होगा।
Copyright 2024-25 Dakshinapath - All Rights Reserved
Powered By Global Infotech.