छत्तीसगढ़ में चने की खेती का बढ़ता क्रेज, एक साल में चने के रकबे में 52 हजार हेक्टेयर की रिकार्ड वृद्धि

छत्तीसगढ़ में चने की खेती का बढ़ता क्रेज, एक साल में चने के रकबे में 52 हजार हेक्टेयर की रिकार्ड वृद्धि

दक्षिणापथ. लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु बढ़ाने का केंद्र सरकार का प्रस्ताव अगर हकीकत में तब्दील होता है तो इसका सीधा असर देश की सामाजिक रवायतों, शैक्षणिक परिवेश व आर्थिक ढांचे पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि 21 वर्ष में शादी होने पर बेटियां पढ़ेंगी ओर बढ़ेंगी भी। वह उस मुकाम पर पहुंचकर घर-गृहस्थी अपने हाथ में लेंगी, जहां पहले से ही उनके भविष्य का रास्ता तैयार हुआ रहेगा। इसका एक पहलू और भी है, जिसकी जमीं पर खड़े होकर कानून बनने को तैयार इस प्रस्ताव का विरोध भी हो रहा है। समाज के एक तबके का मानना है कि देश में दूसरी कई सामाजिक चुनौतियां हैं। असुरक्षा, आर्थिक तंगी, कमजोर शैक्षणिक व्यवस्था पिता को मजबूर करती है कि वह अपनी बच्ची की शादी पहले कर दे। तभी कानूनी बंदिश के बावजूद बाल विवाह के मामले सामने आ रहे हैं। शादी की उम्र बढ़ाने से जरूरी वह समाज की इस तरह की खामियों को दूर करने की बात कर रहे हैं। उधर, बाल विवाह पीड़िताएं, 18 व 21 वर्ष में शादीशुदा होने वाली युवतियां इन कानून को बेहद जरूरी बता रही हैं। खासतौर इसलिए कि पढ़ाई व कैरियर बनाने की उम्र में ब्याह होने से मिली जिम्मेदारियों के बोझ तले उसके सारे ख्वाब दब जाते हैं। फिर, जिंदगी का मकसद चूल्हा-चौका संभालने, बच्चों को पालने-संभालने में ही सिमट जाता है। बाल विवाह होने पर संक्रमण का जोखिम मिलता है साथ साल 2009 में ऑब्स्टेट्रीक्स एंड गायनोकालजी मेडिकल जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार 20 साल की आयु तक में विवाह होने पर एचआईवी संक्रमण का जोखिम सबसे अधिक होता है। केन्या, जिम्बाब्वे और भारत में भी ऐसे काफी मामले देखने को मिल भी रहे हैं। इसलिए बाल विवाह के साथ हम अपनी ही बेटियों को संक्रमण का जोखिम भी साथ दे रहे हैं। इसके अलावा प्रीमैच्योर और कुपोषित शिशुओं में भी कम आयु में विवाह होना मुख्य कारणों में से एक है। शादी के लिए लड़के को परिपक्व होने या उसकी पढ़ाई को देखते हुए 21 की उम्र सही है। - डॉ. अंकिता, प्रसूति रोग विभाग, दिल्ली एम्स ससुराल में तालमेल बिठाने में किताबें कब छूट गईं, पता ही नही चला कुसुम (बदला नाम) 21 साल की हैं। दो साल पहले उन्होंने ग्रेजुएशन में दाखिला लिया। घर की हालत बहुत अच्छी नहीं थी तो वह कुछ बच्चों को ट्यूशन देकर कुछ कमाई कर लेती थी। घर का जिम्मा उठाने के लिए डीयू में दाखिला लेने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी शुरू कर दी। एक दिन अचानक से घरवालों ने उनसे कहा कि 10 मिनट में तैयार होना है, लड़के वाले पहुंच रहे हैं। इसके ठीक चौथे दिन शादी हो गई। वह भी ऐसे परिवार में, जिसे वह पहले से नहीं जानती थीं। शादी के बाद कुसुम अनजाने घर में चली गईं। अब उनको ससुराल में लोगों की पसंद-नापसंद और अपनी सोच से तालमेल तो बिठाना ही था, रसोई आदि भी संभालनी थी। उनको वह सारे काम करते होते, जिसे एक साल पहले तक अपनी मां पर टाल देती थी। इससे किताबें कैसे उसके हाथ से दूर होती गईं, उसको खुद भी पता नहीं चला। गुजरे अप्रैल में वह एक बेटी मां भी बन गई हैं। बकौल कुसुम, ससुराल में कहा गया पढ़कर क्या करोगी? नौकरी हमें करवानी नहीं है। पति बवाना में एक फैक्ट्री मालिक हैं। कमाई इतनी हो जाती है, जिसमें बहू को कमाने की जरूरत नहीं। अब सोचिए, मैंने अपनी पढ़ाई मजबूरी में छोड़ी, जबकि हमारी मरजी पढ़ाई करने की थी। इसका शायद जिंदगी भर मलाल रहेगा। हां, यह सोच रखा है कि अपनी बेटी के साथ वह ऐसा कभी नहीं होने देंगी। बाल उम्र में शादी, पति निकला शराबी, बोलीं- शब्द नहीं हैं, दर्द बयां करने के... मीरा (बदला हुआ नाम) इन वक्त दिल्ली के एक काउंसलिंग केंद्र में है। मां घरों में काम करती हैं। और पिता मजदूर हैं। वह दिल्ली में पैदा हुई, पली-बढ़ी। परिवार को तंगी से निकालने, आगे बढ़ने के ख्वाब भी सजाए थे। लेकिन कोरोना के कारण लॉकडाउन ने सब कुछ बेपटरी कर दिया। पूरे परिवार को घर जाना पड़ा। माता-पिता के साथ वह भी बिहार के सहरसा स्थित पैतृक गांव चली गई। उम्र उसकी महज 14 साल थी। घर जाने के कुछ ही दिनों में गांव के ही एक लड़के से उसका विवाह हुआ। दहेज में एक लाख रुपये भी दिए गए। शादी के अगले दिन पता चला कि लड़का नशा करता है। दो हफ्ते में ही उस पर अत्याचार होने लगा। वह इस कदर दहशत में आई कि पिता को ही देखकर डरने लगती है। बातचीत में उसने कहा, ‘मैं अपनी पीड़ा बयां नहीं कर सकती हूं सर’ बस, आपके माध्यम से इतना कह सकती हूं कि कोई और मेरा जैसा नहीं बनना चाहिए। बहुत दर्द होता है। मैं दीदी (लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में डॉ. प्रेरणा) की तरह डॉक्टर बनना चाहती थी। दीदी मुझे पढ़ा भी रही थीं लेकिन मेरे परिवार ने साथ नहीं दिया सर। इतना बोलने के बाद करीब एक मिनट तक मीरा खामोश रही और फिर उसने फोन रख दिया। बाल विवाह से जुड़े आंकड़े
  • देश में बाल विवाह को रोकने के लिए वर्ष 2006 में बाल विवाह रोकथाम कानून लाया गया था।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल में (41.6), बिहार (40.8) और त्रिपुरा (40.1) में बाल विवाह के मामले ज्यादा देखे गए हैं।
  • देश की राजधानी दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में 11.4 और शहरी क्षेत्र में 9.8 फीसदी है।
  • इस सर्वेक्षण में शामिल 20 से 24 वर्ष की महिलाओं में से अधिकतर का विवाह 18 वर्ष की उम्र से पहले हो गया था।
  • पिछले सालों के मुकाबले यह बाल विवाह के आंकड़ों में कमी आई है। इससे पहले साल 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के शहरी इलाके में 9.9 और ग्रामीण क्षेत्रों में 14.3 फीसदी मामले दर्ज किए गए।
60 फीसदी ज्यादा होती है शिशु मृत्युदर हमारे यहां लड़कियां कम उम्र में मां बनती हैं जिससे कई बार उनकी जान को खतरा भी रहता है और नवजात की मौत की दर भी ज्यादा देखी गई है। बहुत कम लोगों को यह पता होता है कि चिकित्सीय तौर पर वह महिलाएं काफी कमजोर होती हैं जिनका बाल विवाह हुआ होता है और इनमें शिशु मृत्युदर सामान्य महिलाओं की तुलना में 60 फीसदी ज्यादा होता है। 18 वर्ष तक की आयु में शारीरिक तौर पर वह मां बनने लायक होती है लेकिन भावनात्मक और मानसिक तौर पर वो तैयार है कि नहीं ये सबसे जरूरी है। इसलिए 18 से 21 साल आयु बढ़ाना सही फैसला साबित हो सकता है। - डॉ. प्रेरणा वर्मा, प्रसूति रोग विशेषज्ञ, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज पीएचडी कर बनी गृहिणी लेकिन फैसला मेरा चंचल कड़कड़डूमा में रहती हैं। इस वक्त वह 28 साल की हैं। तीन साल पहले शादी तब हुई, जब उन्होंने अपनी उच्च स्तर की शिक्षा पूरी कर ली थी। वह हैं तो गृहणी, लेकिन फैसला उनका अपना था, और सोच-समझकर लिया गया था। चाहतीं तो वह नौकरी भी कर सकती थीं और आगे भी कैरियर बनाने का रास्ता बंद नहीं है। चंचल बताती हैं, मेरी शादी 21 साल के बाद तब हुई, जब मेरा पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा हो गया था। आगे मुझे पीएचडी करनी थी। इसी बीच शादी हो गई। हमने अपने पिता और पति को अपनी इच्छा बताई। दोनों भी इस पर सहमत थे। आज मैं गृहणी हूं, लेकिन यह फैसला मेरा अपना है और सोच-समझकर लिया है। आज इस काबिल हूं कि चाहूं तो कैरियर बना सकती हूं। जमीनी स्तर पर बदलाव जरूरी समाज में एक मानसिकता बना दी गई है कि लड़की गौण है। उसके भविष्य के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। वो शादी के बाद अपना भविष्य बना लेगी। लड़की की उम्र बढ़ने के साथ उसके पूरे परिवार का बस एक ही मकसद होता है और वह है शादी। इसी सोच को बदलने के लिए जरूरी है कि देश में न सिर्फ न्यूनतम आयु में बदलाव हो बल्कि इस नियम का जमीनी स्तर पर पूरी सख्ती के साथ पालन होना चाहिए। अगर ऐसा होता है तो बेटियां न गौण रहेगी और न ही मौन। बेटियां पढ़ेगी, बढ़ेगीं और स्वस्थ रहते हुए सफलता भी हासिल करेगीं। - सोनल कपूर, प्रोत्साहन इंडिया फाउंडेशन, नई दिल्ली