छत्तीसगढ़ के चार खिलाडियों का राष्ट्रीय खो खो कोचिगं कैम्प के लिए हुआ चयन, दिल्ली के लिए हुए रवाना

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गुमला । नक्सलियों ने वर्ष 2022 के शुरुआत में बड़ा हमला कर माइंस के 27 गाडिय़ों को जला कर पुलिस को खुली चुनौती दी है. कुजाम माइंस के मैनेजर उत्तम गांगुली जो कि घटना की रात नेतरहाट में ठहरे हुए थे. माइंस में नक्सली हमला का नजारा देखकर मैनेजर भी डर गये. मैनेजर ने कहा कि इस क्षेत्र में मोबाइल नेटवर्क नहीं लगता है. किसी प्रकार सुपरवाइजर रामप्रवेश सिंह ने देर रात को घटना की जानकारी दी. इसके बाद गुमला के एसपी डॉ एहतेशाम वकारीब ने मैनेजर को रात को फोन कर नक्सली हमला की जानकारी ली. गुमला से 100 किमी की दूरी पर बिशुनपुर प्रखंड स्थित कुजाम माइंस है. चारों ओर जंगल और पहाड़ है. हालांकि, माइंस तक जाने के लिए पक्की सड़क बन गयी है, लेकिन कुछ दूरी तक सड़क खराब है. कुजाम माइंस की स्थापना वर्ष 2009 में हुई थी. माइंस के स्थापना होते ही 17 अगस्त, 2009 को भाकपा माओवादियों ने यहां हमला किया था. उस समय 12 गाडिय़ों को जला दिया था. साथ ही दर्जनों कर्मचारियों की पिटाई की थी. वर्ष 2009 के बाद वर्ष 2022 के शुरुआत में नक्सलियों का यह दूसरा सबसे बड़ा हमला है. जब नक्सलियों ने एक साथ 27 गाडिय़ों को जलाकर पुलिस को चुनौती दी है. मैनेजर ने कहा कि जब से माइंस की स्थापना हुई है. मैं यहां मैनेजर के रूप में कार्यरत हूं. इस क्षेत्र में नक्सलियों का यह बहुत बड़ा हमला है. एक साथ बड़ी संख्या में गाडिय़ों को जलाया गया है. ईश्वर का शुक्र है कि नक्सलियों ने सुपरवाइजर व अन्य लोगों के साथ सिर्फ मारपीट की। किसी की जान नहीं ली. कहा कि नक्सलियों ने पोस्टर साटा है. धमकी भी दिया है कि काम बंद करें। इसलिए कुजाम माइंस का काम बंद कर दिया है। इस माइंस से हजारों लोगों की जीविका चलती है।माइंस बंद होने से लोगों की जीविका पर असर पड़ेगा। घटनास्थल से मिली जानकारी के अनुसार, नक्सली पीढ़ापाठ और गढ़ा कुजाम से होते हुए कुजाम माइंस नंबर-दो में पहुंचे थे. पहले सभी को बंधक बनाया. इसके बाद घटना को अंजाम दिया. सभी कर्मचारियों का मोबाइल भी जब्त कर लिया था. जाते समय मोबाइल वापस कर दिया. नक्सली दोबारा उसी रास्ते से वापस पैदल लौट गये. माइंस के अगल-बगल में नवाटोली, जावाडीह, भ_ीपाठ, कोयनारपाठ, चोटोंग और कुजाम गांव है. जहां आदिम जनजाति और आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. कुजाम माइंस में मोबाइल नेटवर्क नहीं है. ऊंचाई पर चढऩे से कहीं-कहीं नेटवर्क मिलता है. जिससे कर्मचारी घर के लोगों व अन्य लोगों से बात करते हैं. रात की घटना के बाद नेटवर्क खोजकर इसकी जानकारी पुलिस को दी गयी थी, लेकिन पुलिस माइंस तक नहीं पहुंची थी। नक्सली हथियार लेकर माइंस के कैंप में घुसे और कर्मियों को बंधक बना लिया। कई कर्मी भाग गये तो कई कर्मी भागने के दौरान पकड़े गये। जिसे नक्सलियों ने बंदूक के बट से पीटा. नक्सलियों ने सभी को एक कोने में बैठा दिया और बंदूक तानते हुए नहीं उठने की धमकी दी. नहीं तो गोली मारने की बात कही। डर से सभी कंपकपाती ठंड में बंदूक की नोक पर बैठे हुए थे। माइंस में हमला के बाद भी पुलिस पिकेट से अधिकारी व जवान नहीं निकले। यहां तक कि सुबह जब मीडियाकर्मी पहुंचे, तो उस समय भी पुलिसकर्मी पिकेट के अंदर थी। जब मीडियाकर्मी पिकेट के अंदर प्रवेश कर घटना की जानकारी लेने का प्रयास किये, तो जवानों ने प्रवेश करने नहीं दिया. पुलिस में डर इतना था कि पिकेट के अंदर से ही कुछ मिनट बात की और कहा कि घटना की जानकारी हमें नहीं है। वहीं, तीन लोग सुबह 7.30 बजे पिकेट से निकले. वे लोग सादे लिबास में थे। वे बाइक से निकले और कुछ देर के बाद दोबारा पिकेट में घुस गये।