कैसे की जाती है वेट ट्रेनिंग एक्सरसाइज? जानिए इससे जुड़ी कुछ खास बातें
सारूडीह में उत्पादित चाय की क्वालिटी दार्जलिंग में पैदा होने वाली चाय से बेहतर है। इसे विशेषज्ञों ने माना और सराहा है। जिला प्रशासन द्वारा इसी तर्ज पर मनोरा ब्लॉक के ग्राम कांटाबेल में पहाड़ी की तलहटी में 150 एकड़ रकबे में चाय और काफी की खेती की कार्ययोजना बनाकर इसको अमली रूप देने की शुरूआत कर दी है। प्रथम चरण में कांटाबेल में चाय बागान विकसित करने के लिए 40 एकड़ रकबे में चाय के पौधों का रोपण किया जा चुका है। सिंचाई के लिए यहां ड्रिप एरीगेशन सिस्टम लगाए जाने के साथ ही समीप में बहने वाले नाले को बांधकर पानी की व्यवस्था की गई है। कांटाबेल में चाय का बागान लगाये जाने से ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार मिलने लगा है। कांटाबेल चाय बगान गांव के ही 21 किसानों की ऊबड़-खाबड़ अनुपजाऊ भूमि पर विकसित किए जा रहे है। वन विभाग द्वारा कंवर्जेन्स के माध्यम से विकसित किए जा रहे इस चाय बागान के देखरेख की जिम्मेदारी गांव के ही रौशन महिला स्व-सहायता समूह एवं गोपाल स्व-सहायता समूह ने अपने जिम्मे ले रखी है। कांटाबेल में ही चाय एवं काफी बागान के साथ ही प्रशासन द्वारा यहां गौशाला की स्थापना कर गोबर गैस, वर्मी खाद एवं गौमूत्र से पेस्टीसाइट तैयार किए जाने की भी योजना है। चाय बागान के लिए पौधे तैयार करने के लिए यहां नर्सरी भी लगाई गई है।
ज्ञातव्य है कि प्रशासन द्वारा जशपुर के बालाछापर में चाय के प्रोसेसिंग के लिए प्लांट भी संचालित किया जा रहा है, जहां सारूडीह चाय बागान से उत्पादित चाय की पत्तियों की प्रोसेसिंग कर ग्रीन-टी एवं सामान्य चाय तैयार की जाती है। जशपुर में उत्पादित होने वाली चाय को सारूडीह चाय के नाम से विक्रय के लिए उपलब्ध है।