देश का पहला बायोमार्कर किट छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिकों ने बनाया

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RO.NO. 12945/82

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कोविड-19 गंभीरता का अनुमान लगाने वाला उपकरण
नई दिल्ली । छत्तीसगढ़ के वैज्ञानिकों ने चिकित्सा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल, रायपुर की मल्टी-डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) के वैज्ञानिकों ने देश का पहला बायोमार्कर किट विकसित किया है, जो कोविड-19 संक्रमण की गंभीरता का प्रारंभिक चरण में ही सटीक अनुमान लगाने में सक्षम है। इस किट की मदद से डॉक्टर यह तय कर सकेंगे कि मरीज को अस्पताल में भर्ती करना आवश्यक है या वह केवल दवाइयों के माध्यम से घर पर ही ठीक हो सकता है। साथ ही, यह किट यह भी बता सकती है कि मरीज को किस प्रकार की दवाइयों की जरूरत होगी, जिससे इलाज को और अधिक प्रभावी और सुरक्षित बनाया जा सकेगा।यह रिसर्च कोविड-19 की पहली लहर के दौरान शुरू किया गया था, और इसके परिणाम हाल ही में साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। इस किट को भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट के लिए भी आवेदन किया गया है।
मुख्य वैज्ञानिक डॉ. जगन्नाथ पाल और उनकी टीम ने इस किट को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। डॉ. पाल ने बताया कि कोविड महामारी के दौरान यह समझना बेहद कठिन था कि किन मरीजों को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत है और किन्हें घर पर ही इलाज दिया जा सकता है। इसी चुनौती को देखते हुए यह बायोमार्कर किट विकसित की गई, जो क्यू पीसीआर (क्वांटिटिव पीसीआर) आधारित परीक्षण पर आधारित है और 91% संवेदनशीलता और 94% विशेषता के साथ सटीक परिणाम प्रदान करती है।
इस शोध में एमआरयू की वैज्ञानिक डॉ. योगिता राजपूत ने भी अहम योगदान दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' अभियान को भी यह रिसर्च मजबूती प्रदान करता है, क्योंकि इसने सीमित संसाधनों में भी बड़ी सफलता हासिल करने की क्षमता को साबित किया है।छत्तीसगढ़ के इस अनोखे अविष्कार से अब देश में कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई और अधिक सशक्त हो जाएगी। यह किट न केवल रोग की गंभीरता का आकलन करेगी बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगी कि मरीजों को सही समय पर सही इलाज मिल सके, जिससे अनावश्यक दवाओं और संसाधनों का उपयोग रोका जा सके। यह किट शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (टी-सेल प्रतिक्रिया) को मापकर यह पता लगाती है कि वायरस के संक्रमण का असर कितना गंभीर हो सकता है। यह किट पहले से किए गए कोविड-19 टेस्ट से बची हुई आरएनए का उपयोग करती है। फिर, इस आरएनए से रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन द्वारा डीएनए तैयार किया जाता है और इसे जांचा जाता है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कितनी मजबूत है। इस जानकारी के आधार पर एक "सीवियरिटी स्कोर" यानी गंभीरता का स्कोर दिया जाता है। अगर स्कोर एक तय सीमा से कम होता है, तो यह बताता है कि मरीज की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया अच्छी है, और उसे अस्पताल में भर्ती होने या अतिरिक्त दवाओं की जरूरत नहीं होगी। अगर स्कोर तय सीमा से ज्यादा होता है, तो यह बताता है कि मरीज की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कमजोर है, ऐसे में उसे विशेष चिकित्सा और दवाओं की आवश्यकता हो सकती है।