दुर्ग-भिलाई

आर्य समाज में आचार्य शिव शंकर शास्त्री को श्रद्धांजलि - प्रतिवर्ष होगी स्मृति व्याख्यानमाला

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-शिव शंकर शास्त्री की श्रद्धांजलि सभा, छत्तीसगढ़ प्रांतीय आर्य प्रतिनिधि सभा, दुर्ग ने दी वैदिक विद्वान को  श्रद्धांजलि 
-आर्य जगत ने दी भावभीनी श्रद्धांजलि
भिलाई।
आर्य समाज के सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान, संस्कृत-वेद परंपरा के अग्रदूत और यजुर्वेद के कंठस्थ ज्ञाता स्वर्गीय आचार्य शिव शंकर शास्त्री को श्रद्धांजलि देने हेतु आज प्रदेश भर से समाजसेवी, विद्वान और आर्य प्रतिनिधि महर्षि दयानंद आश्रम में एकत्र हुए।
श्रद्धांजलि सभा का उद्देश्य आचार्य शास्त्री के तपस्वी जीवन, उनके सरल-सहज व्यक्तित्व तथा वैदिक साधना की धारा को स्मरण करते हुए समाज तक उनके आदर्शों का प्रसार करना रहा। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ प्रांतीय आर्य प्रतिनिधि सभा द्वारा यह घोषणा की गई कि प्रत्येक वर्ष 'शिव शंकर स्मृति व्याख्यानमाला' का आयोजन किया जाएगा - जिससे उनके वैदिक चिंतन और सिद्धांत पीढ़ियों तक संरक्षित रह सकें।

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सभा में वक्ताओं ने कहा कि आचार्य शास्त्री ने स्वामी दयानंद सरस्वती के मार्गदर्शन में जीवन भर वैदिक ज्ञान के अध्ययन तथा प्रसार को समर्पित किया। वे संस्कृत उच्चारण के विशेषज्ञ, यजुर्वेद के श्रेष्ठ अध्येता और गुरु-परंपरा के दृढ़ अनुयायी थे। उपस्थित जनों ने उन्हें मृदुभाषी, निस्वार्थ सेवाभावी तथा तपस्वी व्यक्तित्व का धनी बताया। समाजसेवियों ने कहा कि उनकी विद्वता में पतंजलि व्याकरणाचार्यों जैसी गहराई थी - जिसे उन्होंने वेद-पाठ, यजुर्वेद ज्ञान और मंत्रोच्चारण के माध्यम से जीवित रखा।
श्रद्धांजलि कार्यक्रम में रायपुर, दुर्ग, भिलाई, पदमपुर उड़ीसा, महासमुंद सहित विभिन्न आर्य समाजों एवं संगठनों से प्रतिनिधिगण उपस्थित रहे। गुरुकुल नवप्रभात के ब्रह्मचारी संवित और प्रियम द्वारा प्रस्तुत वैदिक भजनों और संस्कृत गीतों ने वातावरण को गहन एवं भावपूर्ण बना दिया।

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सभा को संबोधित करते हुए एपेक्स विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति डॉ सोमदेव शतांशु ने कहा - 'आचार्य शिव शंकर शास्त्री केवल वेदों के ज्ञाता नहीं थे, वे मानवता के अध्यापक थे। उनका जीवन बताता है कि ज्ञान तब ही सार्थक होता है जब वह समाज को प्रकाशित करे।'
केंद्रीय विद्यालय दुर्ग के शिक्षक डॉ अजय आर्य ने श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा - 'मैंने शास्त्री को केवल विद्वान ही नहीं, शांति की मूर्ति के रूप में अनुभव किया। उनका व्यक्तित्व ऐसे गुरु का उदाहरण था जो वेद को जीकर दिखाता है और अनुभव द्वारा प्रेरित करता है।'
छत्तीसगढ़ प्रांतीय आर्य प्रतिनिधि सभा के महामंत्री शास्त्री अवनि भूषण पुरंग ने कहा - 'आचार्य शिव शंकर शास्त्री ने आर्य समाज की ऋषि परंपरा को संरक्षित रखा। उनका जीवन तप, अनुशासन और वैदिक निष्ठा का जीवंत प्रमाण था। उनके पदचिह्नों पर चलना हमारा दायित्व है।'
कार्यक्रम में अलका उप्पल, अर्चना खंडेलवाल, दयालदास आहूजा, विक्रम सोनी, रोहित नरूला, सुभाष चंद्र श्रीवास्तव, विद्याकांत त्रिवेदी, काशीनाथ चतुर्वेदी, विनोद सिंह, बृजकुमार साहू, कौस्तुभ साहू, टकेश्वर साहू, सुभाष शास्त्री, रघु पंडा, रवि आर्य, रामनिवास गुप्त, अवनि भूषण पुरंग, डॉ अजय आर्य, डॉ सोमदेव सुधांशु सहित अनेक आर्य प्रतिनिधि उपस्थित रहे।

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कार्यक्रम का शांति यज्ञ एवं संचालन प्रेम प्रकाश शास्त्री द्वारा संपन्न कराया गया। आचार्य शिव शंकर शास्त्री की धर्मपत्नी संयुक्ता शास्त्री, पुत्री ऋतंभरा एवं पुत्र रितेश ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
अंत में उपस्थित जनों ने संकल्प लिया - 'शिव शंकर शास्त्री के वैदिक सिद्धांतों, तपस्वी जीवनदृष्टि और अध्ययन-चिंतन को समाज तक पहुँचाने का कार्य निरंतर जारी रहेगा तथा उनकी स्मृति आर्य समाज के लिए सदैव प्रेरणा का स्तंभ बनी रहेगी।'
कार्यक्रम के समापन पर छत्तीसगढ़ प्रांतीय आर्य प्रतिनिधि सभा के महामंत्री अवनि भूषण पुरंग ने बताया कि विद्वानों से विचार-विमर्श कर प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में वैदिक व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाएगा। वहीं प्रेम प्रकाश शास्त्री ने उनके लिखे गीतों, विचारों और कथनों को संकलित करने का आग्रह किया।

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