दुर्ग (मोरज देशमुख)। ग्राम नगपुरा में आयोजित शिव कथा के चौथे दिन शिवरात्रि विशेष कथा का आयोजन अत्यंत श्रद्धा और भक्तिभाव के साथ किया गया। शिवरात्रि के पावन अवसर पर पूरा ग्राम हर-हर महादेव के जयकारों से गूंज उठा और वातावरण पूर्णतः शिवमय हो गया।
इस दिन की कथा में शिवरात्रि के आध्यात्मिक महत्व, व्रत, जागरण और शिव भक्ति पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। कथावाचक ने बताया कि शिवरात्रि केवल पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और शिव से एकाकार होने का पर्व है। इस दिन सच्चे मन से की गई आराधना से महादेव शीघ्र प्रसन्न होते हैं।
कथा के इस पावन अवसर पर श्रीमती सरोज रिंगारी एवं भूपेद रिंगारी रहे। वहीं शिवरात्रि कथा के सफल आयोजन में मुख्य यजमान रिया लक्ष्मी साहू , लिकेश साहू, हेमंत देशमुख, बालकृष्ण निषाद एवं संदीप जैन की विशेष भूमिका रही।
कार्यक्रम को सफल बनाने में नगपुरा सरपंच सोमेश्वर यादव, सरपंच संघ अध्यक्ष राजू यादव, श्रीमती प्रेमलता यादव, श्रीमती जूही संजय चौबे एवं प्रिया साहू (संयोजक, नागपुरा–दुर्ग) का सराहनीय सहयोग रहा। सभी ने आयोजन को सुव्यवस्थित और भव्य बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

शिवरात्रि कथा के दौरान श्रद्धालुओं ने रुद्राभिषेक, भजन-कीर्तन एवं दीप प्रज्वलन के माध्यम से भगवान शिव की आराधना की। देर रात्रि तक चले जागरण में भक्त भावविभोर होकर महादेव की भक्ति में लीन रहे।
कथा के चौथे दिन ने यह संदेश दिया कि शिवरात्रि पर की गई सच्ची भक्ति जीवन के अंधकार को दूर कर प्रकाश का मार्ग दिखाती है। कथा के समापन पर पूरे पंडाल में भक्ति, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव किया गया।
कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा ने नील वर्मा–पद्मावती के प्रसंग में क्या संदेश दिया
कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा अपनी कथाओं में केवल कथा नहीं सुनाते, बल्कि जीवन का सार समझाते हैं। नील वर्मा और पद्मावती के प्रसंग में भी उन्होंने भक्ति, धैर्य, और नारी मर्यादा का गूढ़ संदेश दिया।
पं. मिश्रा जी बताते हैं कि नील वर्मा एक ऐसे पात्र हैं जो अहंकार, वैभव और सांसारिक आकर्षण में उलझे हुए थे, जबकि पद्मावती शुद्ध चरित्र, धैर्य और त्याग की प्रतीक हैं। यह कथा बताती है कि जब जीवन में अहंकार हावी हो जाता है, तब विनाश निश्चित होता है, और जब संयम व मर्यादा को अपनाया जाता है, तब ईश्वर स्वयं रक्षा करते हैं।
कथा में पद्मावती का चरित्र यह सिखाता है कि
“नारी की शक्ति उसकी सुंदरता नहीं, उसकी मर्यादा और संस्कार हैं।”
पं. प्रदीप मिश्रा कहते हैं कि नील वर्मा जैसे पात्र आज के समाज में भी मिल जाते हैं, जो शक्ति और पद के मद में गलत रास्ते पर चले जाते हैं। ऐसे में पद्मावती का धैर्य यह संदेश देता है कि ईश्वर देर करते हैं, पर अंधेर नहीं।
उन्होंने कथा के दौरान कहा—“जब मनुष्य स्वयं को भगवान से बड़ा समझने लगता है, वहीं से उसका पतन शुरू हो जाता है।”
इस कथा का सार यही है कि भक्ति, सत्य और संयम अंततः विजय दिलाते हैं। पद्मावती का विश्वास और निष्ठा अंत में धर्म की जीत का प्रतीक बनती है, जबकि नील वर्मा का अहंकार उसके विनाश का कारण।

कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा ने कथा के दौरान देश के वर्तमान दौर पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने “आत्मनिर्भर भारत” का जो संकल्प देश को दिया है, वह केवल एक योजना नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण का महायज्ञ है।
पं. मिश्रा ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत का अर्थ केवल आर्थिक मजबूती नहीं है, बल्कि संस्कार, संस्कृति, स्वदेशी और स्वाभिमान से जुड़ा हुआ विचार है। उन्होंने कहा—
“जब व्यक्ति आत्मनिर्भर बनता है, तभी परिवार सशक्त होता है, समाज मजबूत होता है और राष्ट्र विश्व में सम्मान प्राप्त करता है।”
कथावाचक ने आगे कहा कि आज भारत अपने परिश्रम, प्रतिभा और संकल्प के बल पर विश्व पटल पर नई पहचान बना रहा है। आत्मनिर्भर भारत का संदेश युवाओं को रोजगार, किसानों को आत्मसम्मान और देश को नई दिशा दे रहा है।
पं. प्रदीप मिश्रा जी ने कथा पंडाल से आह्वान किया कि हर नागरिक को स्वदेशी अपनाकर, ईमानदारी से परिश्रम कर और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखकर आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि धर्म, कर्म और राष्ट्र—तीनों एक-दूसरे से जुड़े हैं, और जब राष्ट्र मजबूत होता है, तभी समाज और संस्कृति सुरक्षित रहती है।
शिव महापुराण की कथा कहते हुए कथावाचक पं. प्रदीप मिश्रा जी ने समय और व्यक्ति के महत्व पर गहन संदेश दिया। उन्होंने कहा कि वक्त और व्यक्ति को कभी हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि न समय स्थायी होता है और न ही किसी की स्थिति।
पं. मिश्रा जी ने कथा में कहा—“आज कौन किस कुर्सी पर बैठेगा, और कल किसको आपको सलाम ठोकना पड़ जाए—यह किसी को पहले से मालूम नहीं होता।”
उन्होंने समझाया कि शिव तत्व हमें विनम्रता, संयम और समभाव का पाठ पढ़ाता है। जो व्यक्ति आज सामान्य दिखाई देता है, वही कल परिस्थितियों के बदलते ही बड़े पद पर आसीन हो सकता है। इसलिए किसी को छोटा समझना, उसका अपमान करना या घमंड में आ जाना शिव सिद्धांत के विरुद्ध है।

कथावाचक ने कहा कि शिव स्वयं वैराग्य और सरलता के प्रतीक हैं, फिर भी संपूर्ण सृष्टि का संचालन उनके संकेत मात्र से होता है। इससे यह शिक्षा मिलती है कि अहंकार नहीं, आचरण बड़ा होना चाहिए।
उन्होंने कथा पंडाल से यह भी कहा कि जो व्यक्ति समय की कदर करता है और हर इंसान को सम्मान देता है, वही जीवन में आगे बढ़ता है। शिव महापुराण केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की दिशा दिखाने वाला महाग्रंथ है।
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