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आसाराम डॉक्यूमेंट्री विवाद पर केंद्र, राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने डॉक्यूमेंट्री सीरीज ‘कल्ट ऑफ फियर: आसाराम बापू’ विवाद मामले में डिस्कवरी चैनल कर्मचारियों को कथित तौर पर धमकियां देने के आरोप वाली उनकी याचिका पर केंद्र और अन्य राज्य सरकारों को गुरुवार को नोटिस जारी किया।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने राज्य सरकारों को नोटिस जारी करते हुए उन्हें याचिकाकर्ता शशांक वालिया और अन्य तथा उनके कार्यालयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया। पीठ ने जिन राज्यों को नोटिस जारी किया उनमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, हरियाणा, तमिलनाडु, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और दिल्ली शामिल हैं। याचिका में आरोप लगाया गया है कि 25 जनवरी को उस डॉक्यूमेंट्री के डिस्कवरी चैनल के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर शुरू होने के बाद संबंधित कंपनी कर्मचारियों को स्वयंभू संत आसाराम के अनुयायियों द्वारा धमकियां दी जा रही हैं। शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव मुखर्जी ने कहा कि शिकायत के बाद भी गुंडों की धमकियों के कारण अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्हें वास्तविक आशंका है कि आसाराम बापू के स्वयंभू समर्थकों ने डिस्कवरी, इसकी सहायक कंपनियों, मूल संस्थाओं और इसके कर्मचारियों, प्रबंधन, निदेशकों सहित याचिकाकर्ताओं के खिलाफ हिंसा, बर्बरता या अन्य आपराधिक कृत्यों का सहारा लिया है। इतना ही नहीं वे आगे भी ऐसा करना जारी रख सकते हैं। आसाराम के स्वयंभू समर्थकों की ओर से दी जा रहीं ये धमकियां संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19(1)(ए) और (जी) और 21 के तहत याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि डिस्कवरी द्वारा जारी की गई डॉक्यूमेंट्री सार्वजनिक हित में है, क्योंकि यह एक दोषी व्यक्ति की गतिविधियों पर प्रकाश डालती है। साथ ही, दर्शकों को अंध विश्वास और पंथों के बारे में एक संतुलित दृष्टिकोण देने का लक्ष्य रखती है।
उनकी याचिका में कहा गया है, “याचिकाकर्ताओं और उनके सहयोगियों द्वारा सामना की जा रही धमकियां और विरोध न केवल रचनात्मक अधिकारों, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए एक असामाजिक तत्व की ओर से एक प्रयास है, जो न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए हानिकारक है, बल्कि बीएनएस के साथ बीएनएसएस, 2023 के तहत दंड प्रावधानों के संदर्भ में अवैध और आपराधिक कृत्य भी है।” शीर्ष अदालत के समक्ष दायर उनकी याचिका में दावा किया गया है कि डिस्कवरी के सोशल मीडिया हैंडल पर सोशल मीडिया प्रचार अभियान को घृणित, नकारात्मक बताकर धमकी भरी टिप्पणियां की गई हैं। इनमें यौन, धार्मिक और राजनीतिक टिप्पणियां भी शामिल हैं। याचिका में कहा गया है कि टिप्पणियां इन्हीं तक सीमित नहीं हैं।
उन्होंने दावा किया कि 30 जनवरी, 2025 को डिस्कवरी के मुंबई स्थित एक कार्यालय के बाहर एक घटना हुई। इनमें लगभग 10 से 15 व्यक्ति इसके कार्यालय परिसर के बाहर एकत्र हुए और अनधिकृत प्रवेश पाने का प्रयास किया। आरोप है कि आसाराम बापू और उनके बेटे के इन कथित समर्थकों, प्रशंसकों, अनुयायियों और भक्तों ने डिस्कवरी के परिसर को घेर लिया, जिससे याचिकाकर्ताओं की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि उन लोगों ने याचिकाकर्ताओं और इसी तरह की स्थिति वाले अन्य व्यक्तियों को यह कहकर धमकाया कि यदि आसाराम बापू पर डॉक्युमेंट्री का प्रसारण 48 घंटे के भीतर नहीं रोका गया, तो सभी हिंदू संगठन बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करेंगे। ये आंदोलन डिस्कवरी के कर्मचारियों सहित याचिकाकर्ता और इसी तरह की स्थिति वाले अन्य व्यक्तियों के खिलाफ किया जाएगा।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने संबंधित शहरों और राज्यों में पुलिस अधिकारियों के समक्ष शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें पुलिस सुरक्षा और धमकियों और विरोध प्रदर्शनों में शामिल व्यक्तियों और समूहों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं ने हालांकि पुलिस अधिकारियों द्वारा अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं किये जाने का आरोप लगाया है। अब धमकियाँ बढ़ती जा रही हैं और यह आज भी सोशल मीडिया और व्यक्तिगत रूप से जारी है।

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