कांग्रेस राष्ट्रीय सोशल मीडिया टीम की राष्ट्रव्यापी बैठक में 3 हजार पदाधिकारी हुए शामिल

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तत्कालीन जिला फैजाबाद के डीएम केके नायर की कार्यशैली से जवाहरलाल नेहरू नाराज थे। डीएम, सरकार की बात को दरकिनार कर रहे हैं। नायर से कहा गया था कि वे मूर्तियों को कथित तौर पर मस्जिद से बाहर लाकर कहीं दूसरी जगह स्थापित कर दें... विस्तार
  राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद अस्सी या नब्बे के दशक में सामने नहीं आया, बल्कि आजादी मिलने के तीन साल बाद ही यह मसला उठ गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु, केंद्रीय गृहमंत्री सरदार पटेल और उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री इस मुद्दे को अपने हाथ में न लेते तो करीब 42 साल पहले ही बाबरी मस्जिद ढह चुकी होती।   अनुभवी गांधीवादी दार्शनिक केजी मशरुवाला ने 1949 में साप्ताहिक पत्र 'हरिजन' में इस बात का जिक्र किया है। दुर्गादास द्वारा संपादित वॉल्यूम 9 में सरदार पटेल द्वारा किए गए पत्राचार के बारे में बताया गया है। पटेल इस मामले का सौहार्दपूर्ण तरीके से हल चाहते थे। वे आपसी सहनशीलता और भाईचारे के पक्ष में थे।   कहीं कोई अप्रिय घटना न हो, इसके लिए प्रधानमंत्री नेहरु ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जीबी पंत को एक टेलीग्राम भेजा था। लाल बहादुर शास्त्री ने अक्षय ब्रह्मचारी को लिखा, यदि कुछ गलत होता है तो हम उसे ठीक करेंगे। सभी की मदद और सहयोग से अयोध्या में कुछ खराब नहीं होने देंगे। हालांकि नेहरू और फैजाबाद के डीएम के बीच हुए विवाद में इस मामले का दूसरा रूप देखने को मिला। बता दें कि दिसंबर 1949 और 1950 के शुरू में बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद हो गया था। केजी मशरुवाला ने 19 अगस्त 1950 के अंक 'मुस्लिम ऑफ अयोध्या' में लिखा है, विवादित जगह के मध्य में कनाती मस्जिद जैसा कुछ है। इसके बाद अक्षय ब्रह्मचारी, जो उस वक्त फैजाबाद जिला कांग्रेस कमेटी के सचिव थे, उन्होंने कहा वह खुद 13 नवंबर 1949 को स्थल पर गए थे।   वहां मकबरे के एक हिस्से को नुकसान पहुंचाया गया था। इलाके के मुस्लिम सिटी मजिस्ट्रेट से मिले। उनके बाद ब्रह्मचारी भी उनसे मिलने चले गए। नतीजा, 15 नवंबर 1949 को ब्रह्मचारी के घर पर रात को हमला हो गया। वहां पर नौ दिन के लिए रामायण का पाठ किया गया। बाबरी मस्जिद के सामने लोग बुलाए जाने लगे। कुछ मूर्तियां रखवा दी गईं।   वक्ताओं ने माइक में बोलना शुरू कर दिया। यह खबर फैल गई कि मस्जिद को राम मंदिर में बदला जा रहा है। धारा 144 लगा दी गई। 23 दिसंबर को मजिस्ट्रेट ने बताया कि स्थल पर मूर्ति स्थापित हो चुकी है। उससे अगले दिन लोगों को दर्शनों के लिए बुलावा दिया जाने लगा। वहां लोगों द्वारा जो नारेबाजी की जा रही थी, उसमें गांधी, नेहरु और कांग्रेस को निशाने पर लिया जा रहा था।
पटेल चाहते थे कि मुस्लिम समुदाय की सहमति से निपटे मामला
जब स्थिति बिगड़ने लगी तो नेहरु ने उत्तर प्रदेश के सीएम जीबी पंत को टेलीग्राम भेजा। पटेल ने कहा, मौजूदा समय ऐसी घटनाओं के लिए ठीक नहीं है। देश ने अभी एक बंटवारा देखा है। उसके घाव अभी तक भरे नहीं हैं। मेरा मानना है कि किसी भी सूरत में यह मामला बिगड़ना नहीं चाहिए। जहां तक हो सके, इसे मुस्लिम समुदाय की सहमति से निपटाना चाहिए।   किसी पक्ष के खिलाफ कोई दुष्प्रचार न हो। इसके बाद 22 अगस्त 1950 को अक्षय ब्रह्मचारी उपवास पर बैठ गए। 32 दिन बाद उनके पास लाल बहादुर शास्त्री का संदेश आया। शास्त्री ने लिखा था, सरकार ने अयोध्या में अपने सभी प्रयास किए हैं। हम शांति बनाए रखेंगे। यदि कुछ खराब होता है तो हम उसे ठीक करेंगे।   इसमें सभी लोगों को आगे आना होगा और उन्हें अपना सहयोग भी देना पड़ेगा। मूर्तियों को लेकर अयोध्या में तनाव हो गया था। जवाहरलाल नेहरू अयोध्या जाना चाहते थे, लेकिन वे जा नहीं सके। उन्होंने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लब पंत से अपनी यात्रा को लेकर कुछ खास बातचीत की थी। बाद में किन्हीं कारणों से वे वहां नहीं जा सके।
जब डीएम से नाराज हो गए थे नेहरु...
तत्कालीन जिला फैजाबाद के डीएम केके नायर की कार्यशैली से जवाहरलाल नेहरू नाराज थे। डीएम, सरकार की बात को दरकिनार कर रहे हैं। नायर से कहा गया था कि वे मूर्तियों को कथित तौर पर मस्जिद से बाहर लाकर कहीं दूसरी जगह स्थापित कर दें। इस बाबत नायर ने कहा था कि इससे दंगे फैल सकते हैं।   अगर सरकार यह काम कराना चाहती है तो उनकी जगह किसी दूसरे अधिकारी को यहां तैनात कर दिया जाए। 26 दिसंबर को पंडित नेहरू ने अयोध्या विवाद पर जीबी पंत को एक टेलीग्राम भेजा। नेहरु ने लिखा, मैं अयोध्या के घटनाक्रम को लेकर परेशान हूं। उम्मीद है कि आप इस मामले का हल रुचि लेकर करेंगे।   5 मार्च, 1950 को फैजाबाद जिला प्रशासन को भेजे एक पत्र में नेहरू ने कहा कि डीएम अपनी ड्यूटी ठीक तरह से नहीं कर रहे हैं। एक डीएम ने गलत व्यवहार किया और राज्य सरकार ने इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। नायर ने राज्य सरकार के जरिए प्रधानमंत्री के निर्देश पर काम नहीं करने की बात कह दी। तत्कालीन यूपी के मुख्य सचिव को भेजे एक पत्र में नायर ने लिखा, अगर सरकार ने किसी भी कीमत पर मूर्तियों को हटाने का फैसला किया है, तो मेरा अनुरोध है कि उससे पहले मुझे वहां से हटा दिया जाए। किसी दूसरे डीएम को वहां लगा दिया जाए।   नायर ने यह भी दावा किया कि विवादि त स्थल से मूर्तियों को हटाने से जनता को व्यापक पीड़ा होगी, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों की जानें जा सकती हैं। खास बात है कि नेहरू के पत्र के फौरन बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने डीएम को नहीं हटाया।