मोदी भले बड़े फैक्टर ; पर बहुत आसान नहीं छत्तीसगढ़ की 11 सीटें

मोदी भले बड़े फैक्टर ; पर बहुत आसान नहीं छत्तीसगढ़ की 11 सीटें
RO No.12822/158

RO No.12822/158

RO No.12822/158

दुर्ग/रायपुर  ( पवन देवांगन )। लोकसभा के लिए भाजपा ने छत्तीसगढ़ में अपने प्रत्याशी तय कर दिए है। छत्तीसगढ़  की11 लोकसभा सीटों में छः सीटें अनारक्षित , चार सीट एसटी व एक एससी के लिए आरक्षित है। भाजपा के टिकट वितरण को सियासी जानकार बेहतर दांव मान रहे हैं। विजय बघेल व संतोष पाण्डेय को रिपीट करना, सरोज पांडे को कोरबा से उम्मीदवार बनाना दो प्रत्याशियों को सरपंच से उठाकर सीधे एमपी का टिकट देना, इसी तरह बृजमोहन अग्रवाल को रायपुर से टिकट देना .., ये ऐसे पैतरें है, जिसने कांग्रेस से मनोवैज्ञानिक बढ़त को पुख्ता बनाते हैं। 

  चुनाव की दृष्टि से देखें, तो छत्तीसगढ़ के आम लोगो को जीवन की बुनियादी सहूलियतों के साथ केंद्र में मजबूत और विकासपरक सरकार चाहिए। मोदी ने विकसित भारत का संकल्प दिखाकर आम राजनैतिक जनभावना को बदला है । मगर इसका मतलब यह बिल्कुल नही कि आम मतदाता मोदी सरकार से प्रसन्न और संतुष्ट है। मतदाता के सामने ठोस विकल्प का अभाव है। 
दूसरी ओर, कांग्रेस की तैयारी भी पार्टी के अंदर चल रही है। दुर्ग लोकसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी राजेंद्र साहू के नाम पर विचार चल रहा है। पिछले चुनाव में दुर्ग सीट पर प्रतिमा चंद्राकर को वर्तमान सांसद विजय बघेल ने 3 लाख 90 हजार वोटो से हराया था। राजेंद्र साहू दुर्ग सीट पर कांग्रेस के तगड़े दावेदार हैं।
बताते चलें, छत्तीसगढ़ की 11लोकसभा सीटों पर अब तक कुल 17 आम चुनाव और 1 उपचुनाव हुआ है। जिसमें 10 बार कांग्रेस और 6 बार बीजेपी ने जीत हासिल की। यहां जनता पार्टी और जनता दल की भी एक-एक बार जीत हो चुकी है।

गौरतलब है,  2023 के विधानसभा चुनाव में दुर्ग–बेमेतरा जिले की सभी  विधानसभा सीटों पर भाजपा को तकरीबन सवा दो लाख वोटो की बढ़त मिली थी। जिले के भाजपाई इसे पार्टी की असली पूंजी मानते हैं। इनका कहना है कि मोदी स्वयं एक बड़ा चुनावी फैक्टर है। तमाम संभावनाओं के बावजूद भूपेश सरकार की विदाई की सबसे बड़ी वजह मोदी फैक्टर था। 
 छत्‍तीसगढ़ में लोकसभा की कुल 11 सीटें हैं। 2019 में इनमें से 2 सीट बस्‍तर और कोरबा कांग्रेस जीती थी। बाकी 9 सीट भाजपा के खाते में गया। इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस दो से ज्यादा सीट पाने का उपक्रम कर रही है। 
पिछली बार  2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 90 में से 68 सीट जीती थी। तब भी कांग्रेस लोकसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन दोहरा नही सकी थी। अभी के जमीनी हालात यहां मोदी के पक्ष में दिखते हैं। कोई उलटफेर न हो तो संभव है इस बार भी भाजपा यहां फायदे में रहे। 

 *फील गुड और विकसित भारत का संकल्प*

2004 के लोकसभा चुनाव में भारत के मतदाता ने फील गुड की हवा निकाल दी थी। न सिर्फ अटल बिहारी वाजपेई  की सरकार गई, बल्कि दस सालो तक मनमोहन सिंह की सरकार दिल्ली में काबिज रही।
 तब चुनावी रणनीति के मर्मज्ञ प्रमोद महाजन को इसका जिम्मेदार ठहराया गया। क्योंकि उन्होंने ही "फील गुड" का प्रपंच रचा, और भाजपा को ग्रास रूट से उठाकर पांच सितारा कल्चर में पहुंचा दिया। महंगाई, बेरोजगारी और मंदी से परेशान आवाम ने छद्म "फील गुड"  के नारे को पसंद नही किया और सरकार ही बदल कर रख दिया। इस तरह अटल युग का समापन हो गया।  
दस साल बाद 2014 में भारत की राजनीतिक फलक पर मोदी ने इंट्री दी। इन दस सालो मे भारत ने नई अंगड़ाई ली।
इसके बावजूद इस सच्चाई से इंकार करना बेमानी होगा, कि विशाल जनांकाक्षाएं लक्ष्य से दूर है। आज भी महंगाई बेरोजगारी, स्वास्थ, शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतें मुंह बाएं खड़ी है। अमृत काल में चहुंओर खुशहाली नहीं आई है। विकसित भारत की संकल्पना पर बहुत से लोग सवाल उठाते हैं। इस वर्ग का कहना है कि मोदी सरकार ने 2024 तक कई वायदे पूरे करने का भरोसा दिलाया था, मगर वे आज भी अधूरे हैं। किसानों की आय डबल करने और दो करोड़ नई नौकरी के प्रश्न का जवाब कोई नही देता। फिर भी  हर घर में शौचालय,  सभी घरों तक पेयजल व एलपीजी देने के साथ साथ देश ने नई वैश्विक पहचान भी बनाई। धारा 370 और रामलला प्राण प्रतिष्ठा के बाद स्थानीय मुद्दे हाशिए पर चले गए है। 2024 के लोकसभा चुनाव का परिणाम स्पष्ट करेगा कि तीसरी बार मोदी को कितना जनसमर्थन हासिल है।