रायपुर दक्षिण विधानसभा में चुनावी उठापटक : भाजपा और कांग्रेस में अंदरूनी कलह से बढ़ी सस्पेंस

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रायपुर । रायपुर दक्षिण विधानसभा का उपचुनाव कई महत्वपूर्ण पहलुओं के कारण चर्चा में है। इस उपचुनाव के परिणाम से न केवल 19 वार्डों के पार्षदों का भविष्य तय होगा, बल्कि निकाय चुनाव के लिए नए दावेदारों की एक नई पौध भी तैयार होगी। इस क्षेत्र में युवाओं और अनुभवी नेताओं की भरमार है, जो भाजपा और कांग्रेस दोनों में सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। दोनों ही पार्टियों में संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं की संख्या काफी बड़ी है। हालांकि, चुनाव प्रचार के दौरान आंतरिक मतभेद और पार्षदों की अनदेखी भी सामने आ रही है, जो खासतौर पर कांग्रेस में अधिक देखने को मिल रही है। कांग्रेस में भितरघात की समस्या कांग्रेस के चुनाव प्रचार के दौरान कुछ वार्डों जैसे भाठागांव और चंगोराभाठा में पार्षदों की उपस्थिति देखी गई, लेकिन कई अन्य वार्डों में पार्षद प्रचार से नदारद दिखे। यह स्थिति पार्टी के आंतरिक मतभेदों को दर्शाती है। वहीं, भाजपा में भी इस तरह की स्थिति है। प्रचार में सक्रिय रूप से भाग लेने के बावजूद, आंतरिक रूप से नाराजगी और खीझ स्पष्ट दिखाई दे रही है। ऐसे में यह चुनाव न केवल वर्तमान दावेदारों के लिए बल्कि भविष्य की राजनीतिक संभावनाओं के लिए भी एक अहम मंच साबित हो सकता है।चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा और कांग्रेस, दोनों पार्टियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस के तीनों प्रमुख दावेदार प्रचार में सक्रिय नहीं हैं। वहीं, कांग्रेस का दावा है कि भाजपा का पूरा प्रचार अभियान केवल सांसद बृजमोहन अग्रवाल के इर्द-गिर्द घूम रहा है। भितरघात का फायदा दोनों को कांग्रेस के भीतर भले ही सबकुछ ठीक होने का दावा किया जा रहा है, लेकिन अंदरूनी मतभेद उभरकर सामने आ रहे हैं। कुछ पूर्व विधायक और जनप्रतिनिधि चुनाव प्रचार से किनारा किए हुए हैं, जिससे भाजपा को इसका लाभ मिलने की संभावना है। दूसरी ओर, भाजपा में पूर्व सांसद सुनील सोनी के नामांकन को लेकर भी अंदरूनी विरोध देखा जा रहा है, जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। इस प्रकार, रायपुर दक्षिण का उपचुनाव न केवल पार्षदों के लिए बल्कि आगामी निकाय चुनाव के दावेदारों के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।