दुर्ग

लोभ और इच्छा से मुक्ति ही मोक्ष का मार्ग – साध्वी लब्धियशा श्रीजी

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-श्रवण भगवान महावीर के सिद्धांतों की रोशनी में चातुर्मास प्रवचनमाला का आयोजन
नगपुरा।
श्रवण भगवान श्री महावीर स्वामी के सिद्धांतों को आधार बनाकर चातुर्मास प्रवचनमाला के अंतर्गत साध्वी श्री लब्धियशा श्रीजी म.सा. ने “इच्छा और लोभ” के विषय पर सारगर्भित प्रवचन देते हुए कहा कि – “इच्छा अनंत होती है और इसकी पूर्णता असंभव है। एक इच्छा की पूर्ति के बाद दूसरी इच्छा स्वतः जन्म ले लेती है। जब तक मन पर नियंत्रण नहीं होता, तब तक इच्छाओं की दौड़ व्यक्ति को अंतहीन संघर्ष की ओर धकेलती रहती है।”
साध्वीजी ने भगवान महावीर के आचारांग सूत्र का उल्लेख करते हुए कहा – “लोभ मनुष्य को मूर्च्छा की अवस्था में डाल देता है। धन, पद, प्रतिष्ठा और भौतिक पदार्थों के प्रति आसक्ति ही मूर्च्छा है, जो आत्मा के वास्तविक कल्याण में बाधा बनती है।”
लोभ की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि यह समस्त कषायों में सबसे घातक कषाय है। संसार के अधिकांश पाप – हिंसा, चोरी, झूठ, कुशील, परिग्रह – लोभ के वशीभूत होकर ही किए जाते हैं। लोभी व्यक्ति विवेकहीन हो जाता है और सत्य-असत्य का भेद नहीं कर पाता।
धन नहीं, दृष्टिकोण है परिग्रह का कारण..
प्रवचन में साध्वीजी ने स्पष्ट किया कि केवल संपत्ति का होना परिग्रह नहीं है, अपितु संपत्ति के प्रति मोह ही परिग्रह का कारण बनता है। उन्होंने कहा – “धनवान व्यक्ति भी अगर सम्यक दृष्टिकोण रखता है, तो वह अपरिग्रही हो सकता है, जबकि निर्धन या भिखारी भी मोहवश परिग्रह का पाप बाँध सकता है।”

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जैन ग्रंथों के उदाहरणों से किया मार्गदर्शन..
साध्वीजी ने श्री सिद्धर्षिगणि रचित उपमितिभव प्रपंच, श्री हरिभद्र सूरी रचित ललितविस्तर, और श्री उमास्वातिजी के तत्वार्थसूत्र से उदाहरण देते हुए बताया कि – “धन के साथ सद्बुद्धि और वैराग्य की आवश्यकता है। वैराग्यशतक में स्पष्ट कहा गया है कि यह संसार दुःखों का महासागर है, फिर भी प्राणी मोहवश उसमें आसक्त रहता है।”
उन्होंने श्री दशवैकालिक सूत्र का उल्लेख करते हुए तप को कर्म निर्जरा का श्रेष्ठ माध्यम बताया और कहा कि संयम व तप से ही आत्मा की शुद्धि संभव है।
लोभ से हीन जीवन ही सच्चा जीवन..
साध्वीजी ने कहा कि – “लालच ऐसा अवगुण है जो धीरे-धीरे व्यक्ति के सुख और संतोष को नष्ट कर देता है और अंततः उसके पतन का कारण बनता है। लोभ का त्याग कर, आत्म संयम और वैराग्य को अपनाकर ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।”
चातुर्मास प्रवचनमाला में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे और साध्वीजी के वचनों से आत्मिक लाभ प्राप्त किया।

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