नगपुरा। श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में आयोजित चातुर्मास प्रवचन श्रंखला के अंतर्गत पूज्य साध्वी श्री लब्धियशा श्रीजी म.सा. ने रविवार को श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए जीवन, मर्यादा और समय की महत्ता पर आधारित विचार प्रकट किए।
साध्वीश्री ने कहा कि "प्रत्येक व्यक्ति सत्ता, सम्पत्ति और शक्ति को शाश्वत बनाना चाहता है, लेकिन यह संभव नहीं है क्योंकि सभी समय के पाश से बंधे हैं। शरीर नश्वर है, और जब शरीर ही सीमित है तो उससे जुड़े सुख, ऐश्वर्य और अधिकार कैसे शाश्वत हो सकते हैं?" उन्होंने कहा कि विडम्बना यह है कि व्यक्ति मृत्यु से तो डरता है लेकिन पाप से नहीं। जो व्यक्ति सत्य को समझता है, वह मृत्यु को भी महोत्सव रूप में स्वीकार करता है।
साध्वीश्री ने समय की महत्ता पर बल देते हुए कहा कि समय रहते जो नहीं जागता, उसके पास अंत में पछताने और रोने के सिवाय कुछ नहीं बचता। उन्होंने प्रेरणा दी कि महापुरुषों के गुणमय जीवन से शिक्षा लेकर आत्मशुद्धि की दिशा में प्रयास करना चाहिए। प्रवचन में उन्होंने बच्चों के संस्कारों पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि "बालमन गीली मिट्टी के समान होता है, उसे जो आकृति दी जाए वही बनता है। बच्चों को बचपन से ही महापुरुषों के जीवन की कहानियों के माध्यम से नैतिक शिक्षा दी जानी चाहिए। यही संस्कार आगे चलकर उनके जीवन की दिशा तय करते हैं।"
साध्वीश्री ने संवेदनशीलता और औचित्यपूर्ण व्यवहार को गृहस्थ जीवन का आभूषण बताते हुए कहा कि धर्म के नाम पर संवेदनाओं का नाश करने वाला व्यक्ति ढोंगी है, जबकि व्यवहार में संवेदना रखने वाला ही सच्चा धार्मिक होता है।
प्रवचन का एक रोचक दृष्टांत देते हुए उन्होंने कहा कि विदेशी पर्यटक भारत भ्रमण के दौरान मंदिरों की शिल्पकला से प्रभावित होते हैं जबकि भारतीय श्रद्धालु सबसे पहले परमात्मा के दर्शन करता है। इससे स्पष्ट होता है कि स्थान एक होने के बावजूद दृष्टिकोण अलग होने पर परिणाम भी भिन्न होते हैं। प्रवचन के अंत में साध्वीश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को जीवन के हर क्षण को मूल्यवान मानते हुए आत्मावलोकन की आदत विकसित करने की प्रेरणा दी।
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