नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि 18 वर्ष से कम उम्र के युवाओं को वैधानिक बलात्कार कानूनों के भय से मुक्त होकर रोमांटिक और सहमति-आधारित संबंध बनाने की आज़ादी होनी चाहिए। कोर्ट का तर्क है कि किशोरावस्था में सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंधों को अपराध मानकर, इन युवाओं के भावनात्मक विकास और प्रेम के अनुभव को बाधित किया जा रहा है।
जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने कहा कि यदि दोनों पक्षों के बीच संबंध सहमति से स्थापित हों और उसमें किसी भी प्रकार का शोषण या दुर्व्यवहार न हो, तो ऐसे रिश्तों को स्वीकार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि कानून को युवाओं के प्रेम को सम्मान देने के लिए विकसित किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि जबकि नाबालिगों की सुरक्षा के लिए सहमति की कानूनी उम्र 18 वर्ष तय है, कानून को ऐसे रिश्तों को अपराध बनाने की बजाय, इनमें शोषण और दुर्व्यवहार को रोकने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। इससे युवा व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए उनके भावनात्मक विकास को भी महत्व मिलेगा।
मार्च 2024 में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने एक 21 वर्षीय व्यक्ति को POCSO मामले में जमानत देते हुए कहा था कि अदालतें किशोर प्रेम को नियंत्रित नहीं कर सकतीं। इसके अतिरिक्त, जुलाई 2024 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी इस बात पर चिंता व्यक्त की थी कि सहमति से बने रिश्तों में POCSO का दुरुपयोग हो रहा है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने साल 2014 के एक मामले में फैसला सुनाया था, जिसमें एक पिता ने शिकायत की थी कि उनकी बेटी (कक्षा 12 की) ट्यूशन क्लास के बाद एक लड़के के साथ मिली थी। ट्रायल कोर्ट ने सभी आरोपों से आरोपी को बरी कर दिया था, और बाद में राज्य की अपील को 30 जनवरी, 2025 को खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने यह रेखांकित किया कि बिना लड़की की सही उम्र के सबूत के आरोपी को POCSO अधिनियम के तहत दोषी ठहराना न्याय के खिलाफ होगा। हालांकि, यह सिद्धांत तब लागू नहीं होगा जब साबित हो जाए कि लड़की की उम्र घटना के समय 14-15 वर्ष से कम थी।
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