छत्तीसगढ़

कैबिनेट के असंवैधानिक फैसले को ओबीसी संयोजन समिति ने हाई कोर्ट में दिया चुनौती

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-ओबीसी आरक्षण कटौती के विरोध में  याचिका दायर
रायपुर
। नगरी निकाय एवं त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ओबीसी के राजनीतिक आरक्षण मे कटौती करने के लिए 2 दिसंबर 2024 को छत्तीसगढ़ राज्य कैबिनेट के द्वारा पंचायती राज अधिनियम की धारा 129 उप धारा 3 ( डी) में किया गया संशोधन को निरस्त करने के लिए ओबीसी संयोजन समिति छत्तीसगढ़ के साथ-साथ विभिन्न संगठनों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर किया है। विदित हो कि ओबीसी वर्ग के राजनीतिक आरक्षण को छत्तीसगढ़ के 33 में से 16 जिला एवं जिला पंचायत अध्यक्षों के लिए पूरी तरीके से समाप्त कर दिया गया है। इस अवसर पर ओबीसी संयोजन समिति छत्तीसगढ़ के संस्थापक अधिवक्ता शत्रुहन सिंह साहू ने कहा की प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री सहित विभिन्न मंत्रियों ने मीडिया के माध्यम से ओबीसी को 50त्न आरक्षण देने का वक्तव्य दिया था जो एक चुनावी जुमला साबित हुआ है, इसके विपरीत ओबीसी समाज को गुमराह करते हुए बड़ी चालाकी से विधानसभा में बिना बहस के ही पंचायती राज अधिनियम में संशोधन कर ओबीसी समाज के संवैधानिक अधिकार को समाप्त करने का षड्यंत्र किया गया है, जिससे अन्य पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत आने वाली तमाम जाति संगठनो सामाजिक संगठनों एवं आम जन मे काफी आक्रोश व्याप्त है,  छत्तीसगढ़ में ओबीसी समाज के संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्षरत विभिन्न सामाजिक संगठनों के द्वारा भाजपा सरकार के षड्यंत्र का पर्दाफाश करने के लिए जगह-जगह विरोध प्रदर्शन करने के साथ ही छत्तीसगढ़ के हाईकोर्ट में उक्त पंचायती राज अधिनियम में की गई संशोधन को निरस्त करवाने के लिए याचिका दायर किया गया है। समिति के प्रदेश कार्यकारिणी अध्यक्ष टिकेश्वर अभिनव सिंह ने समय बताया कि 8 और 9 जनवरी को आरक्षण के बाद तक ओबीसी वर्ग को या उनके संगठनों को यह बात समझ में नहीं आई थी कि उनके साथ में कितना बड़ा छलावा किया जा रहा है लेकिन कुल मिलाकर ओबीसी वर्ग के आरक्षण को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है,यह पीड़ा राज्य भर में ओबीसी के लोगों में देखने को मिल रहा है।प्रदेश भर मे लगातार आंदोलन हो रहे हैं, जगह-जगह राज्य सरकार का पुतला दहन भी किया जा रहा है ऐसे में ओबीसी संयोजन समिति ने छत्तीसगढ़ के हाईकोर्ट बिलासपुर में याचिका लगाते हुए पंचायती राज अधिनियम 1993 की धारा 129 के  उप धारा 3 डी में की गई संशोधन को निरस्त करने की मांग की गई है।

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