गाजीपुर । उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में गंगा नदी उफान पर है। गंगा का जलस्तर खतरे के निशान से एक मीटर से अधिक ऊपर पहुंच गया है, जिसके चलते जिले की पांच तहसीलों के करीब 60 गांवों का जनजीवन पूरी तरह प्रभावित हो गया है।
बाढ़ का पानी गांवों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि श्मशान घाटों को भी अपनी चपेट में ले लिया है। गाजीपुर के श्मशान घाट पूरी तरह पानी में डूब चुके हैं, जिसके कारण अंत्येष्टि के लिए लोग सड़कों और रिहायशी इलाकों का सहारा ले रहे हैं। इससे लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
गाजीपुर के साथ-साथ मऊ, बलिया और आजमगढ़ से प्रतिदिन शव अंत्येष्टि के लिए लाए जाते हैं। रोजाना 15 से 20 शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन अब यह कार्य सड़कों और रिहायशी क्षेत्रों में हो रहा है। सड़कों पर जल रही चिताओं से उठने वाला धुआं स्थानीय लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है।
इसके अलावा बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। लोगों का कहना है कि वे दूर-दराज से आते हैं और अंत्येष्टि के लिए दो से तीन घंटे इंतजार करना पड़ता है। इस दौरान उन्हें बैठने की कोई उचित व्यवस्था नहीं मिल रही। कई यात्रियों ने जिला प्रशासन और नगर पालिका पर लापरवाही का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि गंगा का जलस्तर बढऩे के बावजूद श्मशान घाट पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है।
इस मामले पर नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी धीरेंद्र कुमार राय ने बताया कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में शुद्ध पेयजल के लिए टैंकर लगाए गए हैं। सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के निर्देश दिए गए हैं और ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव कराया जा रहा है ताकि संक्रमण का खतरा न हो।
श्मशान घाट की समस्या पर उन्होंने कहा कि चिताओं की राख को नष्ट करने का कार्य भी नगर पालिका द्वारा कराया जाएगा।
लोग प्रशासन की कोशिशों को नाकाफी मान रहे हैं। बाढ़ के इस कहर ने न केवल लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित किया है, बल्कि मृतकों की अंतिम विदाई को भी कठिन बना दिया है। जिला प्रशासन से मांग की जा रही है कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाए जाएं।
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