दुर्ग। भाजपा की महापौर अलका बाघमार को भारी बहुमत से जिताकर दुर्ग की जनता ने जो उम्मीदें पाली थीं, वे अब टूटती सी नजर आ रही हैं। नगर निगम दुर्ग का संचालन न तो किसी स्पष्ट विजन के तहत हो रहा है और न ही कोई ठोस मिशन दिख रहा है। परिणामस्वरूप शहर की बुनियादी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं, जबकि विकास कार्य कछुआ चाल से भी धीमे हो गए हैं।
अतिक्रमण मुहिम भी रही असफल
महापौर ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में शहर में अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाया था। लेकिन यह मुहिम बिना ठोस योजना के जल्द ही फुस्स हो गई। बारिश के मौसम में ही इंदिरा मार्केट में दुकानों को तोड़ दिया गया, जिससे कई परिवारों की रोजी-रोटी छिन गई। न तो उनके पुनर्वास की कोई योजना बनी और न ही बाजार को व्यवस्थित किया जा सका। इसका कोई सकारात्मक परिणाम शहर को नहीं मिला।
पानी, सड़क और सफाई जैसे बुनियादी मुद्दे ज्यों के त्यों
दुर्ग के लाखों नागरिक आज भी पानी, सड़क और सफाई जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए जूझ रहे हैं। नगर निगम में प्रशासनिक कसावट का अभाव साफ झलक रहा है। अधिकारी बेलगाम हैं और पार्षद व MIC के सदस्य बजट की कमी से परेशान। निगम की योजनाएं कागजों में ही सिमटकर रह गई हैं।
राज्य से बजट लाने में नाकाम रही महापौर
नई महापौर राज्य शासन से शहर के लिए कोई विशेष बजट या बड़ी परियोजनाएं नहीं ला सकीं। दूसरी ओर दुर्ग विधायक शहर में करोड़ों रुपए के विकास कार्य अलग से करवाने लगे। जब नगर निगम ने उन्हें पर्याप्त तवज्जो नहीं दी, तो उन्होंने R.E.S. (ग्रामीण यांत्रिकी सेवा) के माध्यम से सीधे कार्य करवाना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि नगर निगम खुद ही हाशिए पर चला गया।
शीर्ष नेतृत्व के अभाव में बिखर रहा समन्वय
दरअसल, दुर्ग में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कमजोर दिख रहा है। पहले स्व. हेमचंद यादव सभी स्तरों पर समन्वय बनाकर चलते थे। उन्होंने सत्ता, संगठन और प्रदेश सरकार को एक सूत्र में पिरोकर रखा था, जिससे दुर्ग में कई बड़े विकास कार्य संभव हो पाए। लेकिन आज वैसा नेतृत्व दूर-दूर तक नजर नहीं आता।
भाजपा की सांसद सरोज पांडे भी अब दुर्ग की गतिविधियों में उतनी सक्रिय नहीं दिखतीं, जितनी पहले थीं। जनता आज भी उनके कार्यकाल को याद करती है, जब वे करोड़ों रुपए के बजट लेकर आती थीं और शहर में तेजी से विकास होता था।
जिलाध्यक्ष को नहीं मिल रहा अपेक्षित महत्व
भाजपा के युवा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र कौशिक को कम उम्र में बड़ी जिम्मेदारी तो मिल गई, पर उन्हें सत्ता - संगठन में अपेक्षित महत्व नहीं मिल पा रहा है। इसका असर नगर निगम और पार्टी के आपसी समन्वय पर साफ देखा जा सकता है। निगम की सत्ता और पार्टी का संगठन जैसे दो अलग-अलग दिशाओं में चल रहे हैं।
भाजपा में नहीं दिख रहा एकजुटता का सूत्र
दुर्ग भाजपा में कोई ऐसा मजबूत नेता नहीं दिख रहा जो सबको एक साथ लेकर चले। इसी का नतीजा है कि ट्रिपल इंजन की सरकार होने के बावजूद (नगर निगम, प्रदेश व केंद्र सभी जगह भाजपा की सरकार) दुर्ग शहर विकास की दौड़ में पिछड़ रहा है।
जनता को अब भी सरोज पांडे से उम्मीदें
आम नागरिकों को अब भी उम्मीदें हैं कि सरोज पांडे आगे बढ़कर दुर्ग के लिए संरक्षक की भूमिका निभाएं। अन्यथा यह शहर अपनी विकास यात्रा में और पीछे छूट जाएगा।
डमी महापौरों की कतार
जनता का कहना है कि सरोज पांडे के बाद जितने भी महापौर आए, वे एक तरह से ‘डमी’ ही साबित हुए। न कोई दीर्घकालिक योजना दिखी, न कोई विकास का रोडमैप।
दुर्ग को आज ऐसे नेतृत्व की जरूरत है, जो सभी को साथ लेकर चले, ठोस विजन दे और नगर निगम की प्रशासनिक मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त करते हुए शहर को फिर से प्रगति की पटरी पर दौड़ाए।
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