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विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग ने बालिका को छात्रावास में प्रवेश दिलाने में निभाई निर्णायक भूमिका

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दुर्ग।   न्याय व्यवस्था का मानवीय पक्ष तब स्पष्ट रूप से सामने आया जब छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर के मुख्य न्यायाधीश/संरक्षक रमेश सिन्हा ने बाल गृह और बाल संप्रेक्षण गृह में रह रहे शारीरिक और मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों के विकास के लिए बड़ी पहल करते हुए विभिन्न न्यायालयीन प्रकरणों में वसूली गई अर्थदण्ड की राशि इन बच्चों की देखरेख करने वाली संस्थाओं के पास जमा कराने के आदेश दिए हैं।
    यह आदेश 11 सितंबर 2024 से 11 जुलाई 2025 तक की अवधि के लिए दिया गया है। इस दौरान कुल 4 लाख 2 हजार रुपये की राशि जमा कराई जानी है। इसमें से 2 लाख 6 हजार रुपये दिव्यांग बच्चों के लिए संचालित संस्था में जमा हो चुके हैं। वहीं, 1 लाख 79 हजार रुपये बाल संप्रेक्षण गृह में जमा किए जा चुके हैं। यह राशि बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, खेल सामग्री, शिक्षाप्रद पुस्तकें और मानसिक विकास से जुड़ी गतिविधियों के लिए उपयोग की जाएगी।
    इसी प्रेरणा से प्रेरित होकर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा संचालित नालसा (बालकों को मैत्रीपूर्ण विधिक सेवाएं और उनके संरक्षण के लिए विधिक सेवाएं) योजना, 2015 के अंतर्गत जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग द्वारा मानवता एवं न्याय के संवैधानिक मूल्यों को साकार करते हुए एक निर्धन एवं जरूरतमंद बालिका को विज्ञान एवं वाणिज्य शिक्षण केन्द्र कन्या दुर्ग, जिला-दुर्ग (छग) के छात्रावास में प्रवेश दिलाने में अहम भूमिका निभाई गई।
    प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम बरेबेड़ा, जिला कांकेर (छग) निवासी मेधावी छात्रा आर्थिक रूप से अत्यंत कमजोर पृष्ठभूमि से थी, जिसने अपनी कठिन आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियों के बाद भी अपने अध्ययन को निरंतर जारी रखा था तथा शिक्षा प्राप्ति के लिए छात्रावास में प्रवेश आवश्यक था, किन्तु छात्रा एवं उसके माता-पिता का आर्थिक रूप से सुदृढ़ नहीं होने के कारण उनके द्वारा आर्थिक व्यय कर अन्यंत्र निवास की व्यवस्था किया जाना संभव नहीं था। 
    इसकी जानकारी प्राप्त होते ही जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग ने तत्परता से कार्यवाही करते हुए संबंधित विभाग एवं छात्रावास अधीक्षक से समन्वय स्थापित किया। आवश्यक दस्तावेजों की पूर्ति कर बालिका को विधि एवं नियमानुसार छात्रावास में प्रवेश दिलवाया गया।
    इस सराहनीय पहल से न केवल एक बालिका की शिक्षा सुनिश्चित हुई, बल्कि विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग की समाज के कमजोर वर्गों के प्रति संवेदना भी उजागर हुई है। उक्त सकारात्मक प्रयास से शिक्षा हेतु चलाए जा रहे विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के उद्देश्यों के विफल होने तथा समाज की एक मेधावी छात्रा को खो देने की संभावना को भी समाप्त किया गया। इस संपूर्ण प्रक्रिया में थाना जामुल के पैरालीगल वालेंटियर की प्रमुख भूमिका रही।

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