नगपुरा। श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में चल रही चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला के अंतर्गत साध्वी श्री आज्ञायशाजी म.सा. ने कहा कि ज्ञान वही सार्थक है, जो आचरण में उतरे। उन्होंने श्रमण भगवान श्री महावीर स्वामी के वचनामृत का उल्लेख करते हुए कहा कि जैन आगम परमात्मा की वाणी का संग्रह है, जो समवसरण में उपस्थित सभी को उनकी भाषा में सुनाई देती थी।
साध्वी श्री ने कहा कि ‘‘प्ररूपणा का सार आचरण है और आचरण का सार मोक्ष है। शाश्वत सुख के लिए मोक्ष प्राप्ति ही एकमात्र लक्ष्य है। ज्ञानी होना बड़ी बात नहीं है, ज्ञानी वही है जो अपने ज्ञान को आचरण में लाए।’’
उन्होंने चातुर्मास आराधकों को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने स्पष्ट कहा है कि जीव के प्रत्येक सुख-दुख उसके अपने कर्मों का ही परिणाम हैं। परंतु मनुष्य अपने कर्मों को भूलकर दुख का कारण दूसरों को मानता है। वास्तव में भौतिक जगत में सुख क्षणभंगुर व अस्थायी है। मानव जीवन की सार्थकता परमात्मा की आज्ञा को शिरोधार्य कर उसका पालन करने में है।
साध्वी श्री ने कहा कि सम्यक दर्शन अर्थात सच्ची श्रद्धा से ही आचरण में उत्तमता आती है। सच्ची श्रद्धा से व्यक्ति स्व-विकारों से मुक्त होकर राग से वीतराग व अहंकारी से विनयी बनता है। मिथ्या ज्ञान को दूर कर सम्यक ज्ञान प्राप्त करने की पहली सीढ़ी श्रद्धा है। श्रद्धा के बिना न तो ज्ञान संभव है और न ही चारित्र का विकास, जिसके बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती।
इस अवसर पर श्री आचारांग सूत्र का स्वर्ण-रजत-अक्षत से श्राविका नैमिशा बेन संजयभाई शाह (भरूच) ने मांगलिक स्तोत्रों के साथ ज्ञान पूजा की। वहीं नागपुर के सुश्रावकवर्य जगदीश भाई सावड़िया ने ‘‘प्रतिक्रमण से परिणति’’ विषय पर विशेष व्याख्यान देकर उपस्थित श्रद्धालुओं को लाभान्वित किया।
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