-जो संविधान बाबासाहेब अंबेडकर ने जनता को अधिकार देने के लिए बनाया था कांग्रेस ने उसी को हथियार बनाकर जनता के अधिकार छीन लिए थे - तोखन साहू
दुर्ग। 25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 'आंतरिक अशांति का बहाना बनाकर भारत पर आपातकाल थोप दया। यह निर्णय किसी युद्ध या विद्रोह के कारण नहीं, बल्कि अपने चुनाव को रद्द किए जाने और सत्ता बचाने की हताशा में लिया गया था। कांग्रेस पार्टी ने इस काले अध्याय में न केवल लोकतांत्रिक संस्थाओं को रौंदा, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की निष्पक्षता और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलकर यह स्पष्ट कर दिया कि जब-जब उनकी सत्ता संकट में होती है, वे संविधान और देश की आत्मा को ताक पर रखने से पीछे नहीं हटते। आज 50 वर्ष बाद भी कांग्रेस उसी मानसिकता के साथ चल रही है, आज भी सिर्फ तरीकों का बदलाव हुआ है, नीयत आज भी वैसी ही तानाशाही वाली है। केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू ने दुर्ग जिला भाजपा कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में मीडिया को संबोधित करते हुए कहा। केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू ने आगे कहा कि मार्च 1971 में लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीतने के बावजूद इंदिरा गांधी की वैधानिकता को चुनौती मिली। उनके विपक्षी उम्मीदवार राज नारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनाव को भ्रष्ट आचरण और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के आधार पर चुनौती दी। देश की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही थी, जिससे जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा था। देश पहले से ही आर्थिक बदहाली, महंगाई और खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था। बिहार और गुजरात में छात्रों के नेतृत्व में नव निर्माण आंदोलन खड़ा हो चुका था। 8 मई 1974 को जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में ऐतिहासिक रेल हड़ताल ने पूरे देश को जकड़ लया। इस आंदोलन को रोकने के लिए 1974 में गुजरात में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया। यही राष्ट्रपति शासन 1975 में लगने वाले आपातकाल की एक शुरुआत था। इसके साथ ही बिहार में कांग्रेस सरकार के खिलाफ असंतोष बढऩे लगा और 1975 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। 12 जून 1975 को कोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव में दोषी ठहराया और उन्हें 6 वर्ष तक किसी भी निर्वाचित पद पर रहने से अयोग्य करार दिया। इसके बाद राजनीतिक अस्थिरता तेजी से बढ़ी, जिससे घबराकर इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को 'आंतरिक अशांति का हवाला देकर राष्ट्रपति से आपातकाल लगा दिया। रातोंरात प्रेस की बिजली काटी गई, नेताओं को बंदी बनाया गया और 26 जून की सुबह देश को तानाशाही की सूचना रेडियो के माध्यम से दी गई। संविधान के अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग कर लोकतंत्र को रौंदा गया, संसद और न्यायपालिका को अपंग बना दिया गया। यह सिलसिला किसी युद्ध या बाहरी हमले से नहीं, बल्कि एक व्यक्ति के कुर्सी खोने होने के भय से शुरू हुआ और पूरे राष्ट्र को 1975 में आपातकाल की घोषणा कोई राष्ट्रीय संकट का नतीजा नहीं था बल्कि एक डरी हुई प्रधानमंत्री की सत्ता बचाने की रणनीति थी जिसे न्यायपालिका से मिली चुनौती से बौखला कर थोपा गया।
केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू ने कहा कि इंदिरा गांधी ने आंतरिक अशांति की आड़ को लेकर अनुच्छेद 352 का दुरूपयोग किया जबकि ना उस समय कोई युद्ध की स्थिति थी ना विद्रोह और ना कोई बाहरी आक्रमण हुआ था। कांग्रेस सरकार ने कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका सहित लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को बंधक बनाकर सत्ता के आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था प्रेस की स्वतंत्रता पर ऐसा हमला हुआ की बड़ी-बड़ी अखबारों की बिजली काट दी गई सेंसरशिप लगाई गई और पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया। इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा के जैसे नारे कांग्रेस की उस मानसिकता को दर्शाते थे जिसके तहत इंदिरा गांधी ने देश को व्यक्ति पूजा और परिवारवाद की प्रयोगशाला बना दिया था। इंदिरा गांधी ने मीशा जैसे काले कानून के जरिए एक लाख से अधिक नागरिकों को बिना किसी मुकदमे के जेल में ठूंस दिया जिसमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह सहित तमाम वरिष्ठ विपक्षी नेता पत्रकार तो शामिल थे ही लेकिन कांग्रेस शासन ने छात्रों तक को जेल में सडऩे पर मजबूर कर दिया था। इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता को महफूज रखने के लिए संविधान में 39 व और 42 व जैसे क्रूर और अलोकतांत्रिक संशोधन किया जिसके तहत प्रधानमंत्री और अन्य शीर्ष पदों को न्यायिक समीक्षा से परे कर दिया ताकि इंदिरा गांधी को अदालत में घसीटा ना जा सके। जस्टिस एच आर खन्ना अकेले जज जिन्होंने सरकार के खिलाफ निर्णय दिया था और इस कारण इंदिरा गांधी ने सजा स्वरूप मुख्य न्यायाधीश नहीं बनने दिया था।
केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू ने आगे कहा कि गरीबों के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई लडऩे का नाटक रच रहे राहुल गांधी यह कैसे भूल जाते हैं कि उनकी दादी इंदिरा ने दिल्ली की तुर्कमान गेट पर अपने घरों को बचाने के लिए गुहार लगाने वाले गरीबों पर गोलियां चलवाई थी कांग्रेस इस तरह गरीबी हटाओ के नारे को चरितार्थ कर रही थी।कांग्रेस सरकार ने प्रेस काउंसिल आफ इंडिया तक को भंग कर दिया ताकि कोई संस्थान उनकी सेंसरशिप और मीडिया पर हमले की आलोचना न कर सके। जो कांग्रेस एक समय प्रेस पर सेंसरशिप थोपती थी वही आज डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबर फैलाने वालों को खुला संरक्षण देती है और वैचारिक विरोधियों की आवाज दबाने के लिए मुकदमे दर्ज कराती है। कांग्रेस शासन में लोकतंत्र कैसा पतन हुआ की जेल में बंद लोगों को अपने परिजनों की अंतिम क्रिया में शामिल होने तक की अनुमति नहीं दी गई और इन लोगों में वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तक शामिल थे उन्होंने खुद खुलासा किया है कि उन्हें उनकी माता जी की अंत्येष्टि में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई।कांग्रेस सरकार ने आरएसएस, जनसंघ, एबीवीपी और अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगाकर यह सिद्ध कर दिया कि वह किसी भी विरोधी स्वर को बर्दाश्त नहीं कर सकती जनसंघ और आरएसएस ने भूमिगत रहकर पूरे देश में सत्याग्रह, पर्चा वितरण और सूचना संप्रेषण के माध्यम से कांग्रेस की तानाशाही को उजागर किया।
केंद्रीय राज्य मंत्री श्री साहू ने आगे कहा कि जो संविधान बाबा साहब अंबेडकर ने जनता को अधिकार देने के लिए बनाया था कांग्रेस ने उसी को हथियार बनाकर जनता के अधिकार छीन लिए आपातकाल के 21 महीना में कांग्रेस ने हर आलोचक, हर असहमति और हर विपक्षी विचार को देशद्रोह का तमगा देकर कुचल डाला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी उस समय साधारण कार्यकर्ता हुआ करते थे और उनके जैसे लाखों समर्पित स्वयं सेवकों ने रातों-रात रेलों में पर्चा बांटे,संदेश पहुंचाए और कांग्रेस की सच्चाई हर गांव और गली तक पहुंचाई कांग्रेस की तानाशाही का विरोध केवल राजनीतिक नहीं था यह भारत की आत्मा की रक्षा का आंदोलन था जिसमें राष्ट्रवादियों ने जान की बाजी लगाई।
केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू ने आगे कहा कि इंदिरा गांधी की यही तानाशाही मानसिकता आज के कांग्रेस नेतृत्व में दिखाई देती है आज भी कांग्रेस शासित राज्य में पत्रकारों पर मुकदमे होते हैं और सोशल मीडिया पोस्ट पर गिरफ्तारी हो जाती है और एक्टिविस्टों पर पुलिस कार्रवाई होती है। देश की सुरक्षा सैन्य कार्रवाई या विदेश नीति पर कांग्रेस जिस तरह से सेना पर सवाल उठाती है वह केवल राजनीतिक अवसरवाद नहीं बल्कि राष्ट्रीय के विरुद्ध तर्कहीन विरोध है।
भ्रष्टाचार के मामले में जब भी गांधी परिवार पर जांच होती है कांग्रेस लोकतंत्र खतरे में है का शोर मचाते याद कीजिए यही भाषा इंदिरा गांधी अदालत से अयोग्य घोषित होने के बाद अपनाई थी।जिस संविधान की शपथ लेकर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थी इस संविधान की आत्मा को कुचलते हुए उन्होंने लोकतंत्र एक झटके में तानाशाही में बदल दिया और चुनाव में दोषी ठहराए जाने के बाद नैतिकता से इस्तीफा देने के बजाय पूरी व्यवस्था को ही कठपुतली बनाकर रखने का षडयंत्र रच दिया। आज भी कांग्रेस शासित राज्य में कानून व्यवस्था का हाल लिया है कि वहां विरोध का दमन धार्मिक तुष्टीकरण सता का अहंकार खुलेआम दिखता है यह सब आपातकालीन सोच की ही उपज है आपातकाल के दौरान एक परिवार को संविधान से ऊपर रखने वाली कांग्रेस आज भी राहुल प्रियंका के इद्र गिर्द सिमटी हुई है और सता की चाबी अब भी सिर्फ खानदानी जेब में रखी जाती है विपक्षी गठबंधन की बैठकें आज भी कांग्रेस अध्यक्ष के घर होती है और यह बताने के लिए काफी है कि तंत्र आज भी परिवार के चरणों में समर्पित है।
केंद्रीय राज्य मंत्री श्री साहू ने आगे कहा कि लोकतंत्र पर हुए आघात पर एक बड़ी चोट संजय गांधी की नीतियों पर निर्णय लेना भी था एक निर्वाचित और किसी भी संवैधानिक पद पर ना रहा व्यक्ति देश की नीतियों पर निर्णय लेने लगा जो आपातकाल में कांग्रेस की अघोषित सता का असली केंद्र बन चुका था, आपातकाल के इस काले दौर में कांग्रेस ने न्यायपालिका पर कभी न भरने वाले घाव दिए इंदिरा गांधी ने जस्टिस एच आर खन्ना जैसे ईमानदार जज को भी सीनियर होने के बावजूद मुख्य न्यायाधीश नहीं बनाया क्योंकि उन्होंने सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया था।
केंद्रीय राज्य मंत्री ने आगे कहा कि इसके अलावा इंदिरा गांधी की सरकार ने 38 वें संशोधन के तहत आपातकाल की घोषणा को न्यायपालिका की जांच से बाहर कर दिया इन मनमानी संशोधनों के तहत इंदिरा गांधी ने सीधे-सीधे तानाशाही के लिए रास्ता खोल दिया जा। एडीएम जबलपुर बनाम शिवाकांत शुक्ला मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान कांग्रेस सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा था कि आपातकाल के दौरान यदि किसी नागरिक को गोली मार दी जाए तब भी उसे अदालत में जाने का अधिकार नहीं है यह कांग्रेस का संविधान के प्रति सम्मान था और यही कांग्रेस का संविधान की झूठी दुहाई देती फिर रही है। गरीबों के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई लडऩे का नाटक रच रहे राहुल गांधी यह कैसे भूल जाते हैं कि उनकी दादी इंदिरा गांधी ने दिल्ली के तुर्कमान गेट पर अपने घरों को बचाने के लिए गुहार लगाने वाले गरीबों पर गोलियां चलवाई थी कांग्रेस की तरह से गरीबी हटाओ नारे को चरितार्थ कर रही थी। आपातकाल की जांच के लिए गठिथ शाह आयोग ने 6 अगस्त 1978 को अपनी फाइनल रिपोर्ट में साथ लिखा था कि आपातकाल लगाने का कोई संवैधानिक औचित्य नहीं था पर यह सिर्फ इंदिरा गांधी के व्यक्तिगत राजनीतिक श्रेणियंत्र था 1980 में दोबारा कांग्रेस सरकार बनने पर इंदिरा गांधी इस आयोग की रिपोर्ट को भी नष्ट करवा दिया था। केंद्रीय मंत्री श्री साहू ने आगे कहा कि इंदिरा गांधी ने मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी की परंपरा को तोड़ते हुए सभी निर्णय एक व्यक्ति के सहारे पर लेना शुरू कर दिया मंत्रियों को कैबिनेट बैठकों में सिर्फ हां कहने के लिए बुलाया जाता था उनकी भूमिका रबर स्टैम्प तक सीमित रह गई थी। विरोधियों को जेल में मानसिक शारीरिक यातनाएं दी गई किसी को दवा नहीं दी गई किसी को गर्मी में बिना पंखे के बंद रखा गया महिला कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार हुआ और उन्हें ना तो समुचित चिकित्सा दी गई और ना ही उनके साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार किया गया। कांग्रेस ने लोकतंत्र के साथ इतना बड़ा विश्वासघात किया लेकिन आज भी वह अपने किए के लिए ना तो माफी मांगती है ना ही पछतावा प्रकट करती है आज संविधान बचाओ का नारा देने वाली कांग्रेस वही पार्टी है जिसने संविधान के सबसे पहले और सबसे गहराई से रौंदा था। आपातकाल गांधी परिवार की उस सोच का परिचायक था जिसमें स्पष्ट हो गया था कि उनके लिए पार्टी और सता परिवार के लिए होती है देश और संविधान के लिए नहीं आजादी के बाद देश में पहली बार ऐसा हुआ था कि सरकार ने राष्ट्र को शत्रु नहीं बल्कि अपनी जनता को ही बंदी बना लिया था आज कांग्रेस में चेहरे बदल गया लेकिन तानाशाही की प्रवृत्ति और सता का लोभ जस का तस है 50 वर्ष बाद आज आपातकाल को याद करना है इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि इतिहास की घटना मात्र नहीं बल्कि कांग्रेस की घृणित मानसिकता का प्रमाण भी है।
केंद्रीय राज्य मंत्री तोखन साहू ने सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाना और देश की छवि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खराब करना कांग्रेस की नई डिजिटल इमरजेंसी रणनीति बन चुकी है जब देश हर मोर्चे पर प्रगति कर रहा है तब कांग्रेस सरकार की हर उपलब्धि को जुठलाने में लगी है यह वही नकारात्मक मानसिकता है जिसे 1975 में देश को पीछे खींचा था। न्यायपालिका में हस्तक्षेप फ्री स्पीच के नाम पर अराजकता और मीडिया ट्रायल को बढ़ावा देकर कांग्रेस नई तरीके से वही आपातकाल लागू करना चाहती है। कांग्रेस इन संस्थाओं को लोकतंत्र का रक्षक रहती है उन्हें संस्थाओं को अपने शासन में रबर स्टैंप को बना देती है और यह दोहरापन आज भी उनकी राजनीति में स्पष्ट दिखाई देती है जब-जब कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया गया है उसने ना जनादेश का सम्मान किया और ना विपक्ष की गरिमा बनाए रखें वह आज भी लोकतंत्र को तभी मानती जब कुर्सी उसके पास हो। प्रेस वार्ता में भारतीय जनता पार्टी प्रदेश महामंत्री रामजी भारती, भाजपा जिला अध्यक्ष सुरेंद्र कौशिक, विधायक ललित चंद्राकर, गजेंद्र यादव, महापौर अलका बाघमार, निवृत्तमान जिला अध्यक्ष जितेंद्र वर्मा, उपाध्यक्ष राजेंद्र पाध्ये, मीडिया प्रभारी राजा महोबिया उपस्थित रहे।
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