रायपुर

नवरात्रि के आज पहले दिन होगी मां शैलपुत्री की पूजा

image_380x226_66fe4f8c47684.jpg

रायपुर । आज से शारदीय नवरात्रि का आरंभ हो गया है और आज नवरात्रि की पूजा का पहला दिन है। आज मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाएगी और आज ही लोगों के घर में घट स्थापना की जाएगी। नवरात्रि में आदिशक्ति मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। आदिशक्ति की उपासन के कई नियम और विधियां हैं। मान्यता है कि आदिशक्ति की पूजा करने से हमारे संकट दूर होते हैं और मां की विशेष कृपा होती है। आपको बता दें कि नवरात्रि में नौ देवियों की पूजा का विधान है प्रथम दिन माता शैलपुत्री की उपासना होती है, ये ही नवदुर्गा में प्रथम दुर्गा हैं। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को 'मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं, पौराणिक कथा के अनुसार, पूर्व जन्म में मां शैलपुत्री का नाम सती था और वे भगवान शिव की पत्नी थीं।
मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री थीं। सफेद वस्त्र धारण किए मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल शोभायमान है। मां के माथे पर चंद्रमा सुशोभित है। यह नंदी बैल पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान हैं। शैलपुत्री मां को वृषोरूढ़ा और उमा के नामों से भी जाना जाता है। देवी के इस रूप को करुणा और स्नेह का प्रतीक माना गया है। घोर तपस्या करने वाली मां शैलपुत्री सभी जीव-जंतुओं की रक्षक मानी जाती हैं।

मां शैलपुत्री की कहानी..

मां शैलपुत्री सती के नाम से भी जानी जाती हैं। इनकी कहानी इस प्रकार है, एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज दिया, लेकिन भगवान शिव को नहीं। देवी सती भलीभांति जानती थी कि उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो उस यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं, लेकिन भगवान शिव ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यज्ञ में जाने के लिए उनके पास कोई भी निमंत्रण नहीं आया है और इसलिए वहां जाना उचित नहीं है। सती नहीं मानीं और बार-बार यज्ञ में जाने का आग्रह करती रहीं। सती के ना मानने की वजह से शिव को उनकी बात माननी पड़ी और अनुमति दे दी। सती जब अपने पिता प्रजापित दक्ष के यहां पहुंची तो देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं और सिर्फ उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। उनकी बाकी बहनें उनका उपहास उड़ा रहीं थीं और सति के पति भगवान शिव को भी तिरस्कृत कर रहीं थीं। स्वयं दक्ष ने भी अपमान करने का मौका ना छोड़ा। ऐसा व्यवहार देख सती दुखी हो गईं। अपना और अपने पति का अपमान उनसे सहन न हुआ और फिर अगले ही पल उन्होंने वो कदम उठाया जिसकी कल्पना स्वयं दक्ष ने भी नहीं की होगी। सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में खुद को स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव को जैसे ही इसके बारे में पता चला तो वो दुखी हो गए। दुख और गुस्से की ज्वाला में जलते हुए शिव ने उस यज्ञ को ध्वस्त कर दिया। इसी सती ने फिर हिमालय के यहां जन्म लिया और वहां जन्म लेने की वजह से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।

RO. NO 13327/94

एक टिप्पणी छोड़ें

Data has beed successfully submit

Related News

Advertisement

97519112024060022image_750x_66bc2a84329bd.webp
881040720251424511000006981.jpg
RO. NO 13327/94
72421072025170534whatsappimage2025-07-21at20.43.31_e8cc9d49.jpg

ताज़ा समाचार

Popular Post

This Week
This Month
All Time

स्वामी

संपादक- पवन देवांगन 

पता - बी- 8 प्रेस कॉम्लेक्स इन्दिरा मार्केट
दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

ई - मेल :  dakshinapath@gmail.com

मो.- 9425242182, 7746042182

हमारे बारे में

हिंदी प्रिंट मीडिया के साथ शुरू हुआ दक्षिणापथ समाचार पत्र का सफर आप सुधि पाठकों की मांग पर वेब पोर्टल तक पहुंच गया है। प्रेम व भरोसे का यह सफर इसी तरह नया मुकाम गढ़ता रहे, इसी उम्मीद में दक्षिणापथ सदा आपके संग है।

सम्पूर्ण न्यायिक प्रकरणों के लिये न्यायालयीन क्षेत्र दुर्ग होगा।

logo.webp

स्वामी / संपादक- पवन देवांगन

- बी- 8 प्रेस कॉम्लेक्स इन्दिरा मार्केट
दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

ई - मेल : dakshinapath@gmail.com

मो.- 9425242182, 7746042182

NEWS LETTER
Social Media

Copyright 2024-25 Dakshinapath - All Rights Reserved

Powered By Global Infotech.