भिलाई निगम के निवृत्तमान नेता प्रतिपक्ष रिकेश सेन नेचर ग्रीन कंपनी की शिकायत लेकर पहुंचे श्रम सचिव खलको के द्वार, कहा जांच कर दोषियों के खिलाफ करे कार्यवाही..

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-आदिवासी मूलत: संस्कृति का धारणा है: डॉ गंगा सहाय मीणा -भारत के जनजातीय धर्म एवं दर्शन पर हुई परिचर्चा -जनजातीय साहित्य पर आयोजित परिचर्चा में विभिन्न राज्यों के प्रतिभागियों ने भाग लिया दक्षिणापथ, रायपुर। राजधानी रायपुर के पंडित डी.डी.यू ऑडिटोरियम में राष्ट्रीय जनजाति साहित्य महोत्सव का तीन दिवसीय आयोजन किया जा रहा है। आज दूसरे दिन जनजाति साहित्य की विभिन्न विषयों पर अलग-अलग सत्रों में परिचर्चा आयोजित की गई। जिसमें भारत के जनजातियों में वाचिक परंपरा के तत्व एवं विशेषताएं एवं संरक्षण के उपाय, भारत की जनजाति धर्म एवं दर्शन, जनजाति लोक कथाओं का पठन एवं अनुवाद तथा जनजाति लोक काव्य पठन एवं अनुवाद जैसे विषय शामिल रहे। देश के विभिन्न राज्यों से आए प्रतिभागियों ने साहित्यिक परिचर्चा में भाग लिया। जिसमें शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं शासकीय अधिकारी कर्मचारी, बुद्धिजीवी वर्ग तथा विभिन्न विश्वविद्यालय से आए हुए प्राध्यापकों ने भाग लिया। जे.एन.यू. नई दिल्ली विश्वविद्यालय से आए डॉ गंगा सहाय मीणा ने कहा कि सभी आदिवासियों की कुछ बातें पूरे विश्व में सभी जगह समान रूप से मिलती हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासियों के सांस्कृतिक सवालों पर सोचने की जरूरत है, आदिवासी मूलतः एक सांस्कृतिक अवधारणा है। इंदौर कॉलेज की सहायक प्राध्यापक डॉ रेखा नागर ने कहा कि आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं, प्रकृति उनकी सहचरी बनी हुई है। जंगल के बचाव से आदिवासी संस्कृति को बचायी जा सकती है। छत्तीसगढ़ बस्तर के श्री रूद्र पाणिग्रही ने कहा कि वाचिक परंपरा का दस्तावेजीकरण होना चाहिए। उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के दूरस्थ अंचल अबूझमाड़ क्षेत्र में निवासरत जनजातियों के बारे में अपना व्याख्यान दिया। इसी तरह अन्य प्रतिभागियों में आंध्रप्रदेश के हैदराबाद से आए डॉ सत्य रंजन महकुल ने जुआंग समुदाय के शिफ्टिंग कल्टीवेशन, हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पी.सुब्बाचारी ने अनुवर्तीत जनजाति प्रदर्शन कला, दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ स्नेहलता नेगी ने हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जनजातियो में महिला सशक्तिकरण के बारे में तथा लोक परंपराओं को बचाए रखने वाली पारंपरिक गीत ठाकुरमोनी और श्री बीआर साहू ने जनजातियों के वनस्पतिक ज्ञान के बारे में बताया। इसी तरह अन्य प्रतिभागियों में उत्तर प्रदेश लखनऊ से आई डॉ अलका सिंह, गुवाहाटी विश्वविद्यालय आसाम से डॉ अभिजीत पायेंग, झारखंड की श्रीमती वंदना टेटे, मणिपुर विश्वविद्यालय की डॉ कंचन शर्मा, नारायणपुर से आए  शिव कुमार पांडे, पदमपुर उड़ीसा से आयी दमयंती बेसरा सहित अन्य प्रतियोगिता प्रतियोगिता ने अपना व्याख्यान दिया। इस अवसर पर आदिम जाति तथा अनुसुचित जाति विकास विभाग की आयुक्त सह संचालक श्रीमति शम्मी आबिदी सहित विभागीय अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित थे।