भारतीय जनता पार्टी की रीति नीति से प्रभावित होकर भाजयुमो जिला प्रभारी नितिन राय के नेतृत्व में आज 31 युवा हुए भाजपा में शामिल..

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15 अगस्त 1947 को देश को आजादी तो मिल गई थी पर पश्चिमी छोर पर बसा एक खूबसूरत क्षेत्र अब भी विदेशी ताकतों के अधीन था। जी हां, गोवा उस समय तक आजाद नहीं हुआ था। पहली बार 1510 में पुर्तगालियों की बुरी नजर इस शहर पर पड़ी और आगे चलकर उन्होंने यहां कब्जा जमा लिया। पूरे 451 साल तक यहां पुर्तगालियों का शासन रहा और भारत की आजादी के 14 साल बाद दिसंबर 1961 में उन्हें यहां से भगाया जा सका। हालांकि यह इतना आसान नहीं था। पढ़िए 36 घंटे तक गोवा की आजादी के लिए चले ऑपरेशन चटनी से लेकर 'ऑपरेशन विजय' की पूरी कहानी।
Goa Liberation Story: कैसे 36 घंटे में सेना ने गोवा में जमे बैठे पुर्तगालियों के छक्के छुड़ा दिए ब्रिटिश और फ्रेंच भारत छोड़ चुके थे लेकिन गोवा, दमन और दीव में पुर्तगाली जमे हुए थे। भारत ने पुर्तगाल को हथियार छोड़ने और सरेंडर करने का आखिरी अल्टीमेटम दिया लेकिन उसने अनसुना कर दिया। पुर्तगाली आसानी से गोवा छोड़ने के मूड में नहीं थे क्योंकि देश नाटो का सदस्य था और उस समय भारत के तत्कालीन पीएम नेहरू सैनिक टकराव से बचना चाह रहे थे। इसी समय नवंबर 1961 में एक घटना घटी। पुर्तगाली सैनिकों ने गोवा के मछुआरों पर गोलियां चलाईं जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। इसके बाद माहौल बदल दिया। तत्कालीन रक्षा मंत्री केवी कष्णा मेनन और पीएम नेहरू ने आपात बैठक की और फिर भारतीय सशस्त्र बलों ने गोवा को आजाद करने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया। नौसेना ने शुरू किया 'ऑपरेशन चटनी' 1 दिसंबर 1961 को भारतीय नौसेना ने सर्विलांस और दुश्मन की हरकतों पर नजर रखने के लिए 'ऑपरेशन चटनी' शुरू किया। अगले ही दिन फौज ने अपना ग्राउंड असॉल्ट प्लान तैयार कर लिया। एक हफ्ते बाद 8 दिसंबर को भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों और बॉम्बर्स ने गोवा के आसमान में उड़ने लगे। 11 दिसंबर को पूरी प्लानिंग के साथ भारतीय सेना की टुकड़ियां बेलगाम पहुंचीं। पहली बार तीनों सेनाओं का एकसाथ ऑपरेशन 17 दिसंबर को भारत ने 30 हजार सैनिकों को ऑपरेशन विजय के तहत गोवा भेजने का फैसला किया। इसमें थलसेना, नौसेना और वायुसेना शामिल थी। इसी दिन एक छोटे से संघर्ष के बाद बॉर्डर पर बिचोलिम में Maulinguem टाउन पर कब्जा कर लिया गया। 18 दिसंबर का दिन सेना के लिए D-Day रहा और तीनों सेनाओं ने एक साथ हमला कर दिया। जंग छिड़ चुकी थी। 50 पैराशूट ब्रिगेड उत्तर से उतरी। 48 और 63 ब्रिगेड पूर्व से आगे बढ़ी। इनका मकसद पणजी और मोरमुगाओ को अपने कब्जे में लेना था। अरब सागर से लगे क्षेत्रों बम्बोलिम, दाबोलिम में वायुसेना के प्लेन हावी हो रहे थे। उधर, पुर्तगालियों ने भारतीय सेना को रोकने के लिए वास्को के पास पुल उड़ा दिया। दक्षिण की तरफ से सेना की तैयारी थी। INS त्रिशूल समेत दो जहाजों ने 1961 में Anjediva द्वीप पर हमले किए थे। आखिरकार पुर्तगालियों को भारतीय सेना के आगे समर्पण करना पड़ा। 4600 से ज्यादा पुर्तगालियों का सरेंडर इस ऑपरेशन में बेतवा, कावेरी समेत 3 भारतीय युद्धपोतों ने पुर्तगाल के युद्धपोत अल्फांसो डी अल्बुकर्क पर ताबड़तोड़ हमले किए। पूरे ऑपरेशन में भारत की तरफ से 34 जानें गईं और 51 लोग घायल हुए। पुर्तगाल की तरफ 31 जानें गईं और 57 लोग घायल हुए और 4,669 कैदियों ने सरेंडर कर दिया। ... और गोवा में लहराया तिरंगा गोवा की आजादी के लिए सेना के अलावा सत्याग्रही, पत्रकार और फिल्म कलाकारों ने भी अपने-अपने स्तर पर लड़ाइयां लड़ी थीं। 1961 का यह ऑपरेशन विजय भारत की तीनों सेनाओं का संयुक्त रूप से किया गया पहला सैन्य अभियान था। 19 दिसंबर को शाम 6 बजे सैन्य ऑपरेशन खत्म हुआ। पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसालो ए सिल्वा ने सरेंडर कर दिया और गोवा में तिरंगा लहराया।