दुर्ग-भिलाई

राजनीति के ‘मोती’ को दुर्ग करेगा नमन : मोतीलाल वोरा जयंती आज, दुर्गवासियों को अरुण वोरा का आत्मीय आमंत्रण

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दुर्ग। भारतीय राजनीति में शालीनता, संयम और संवेदनशीलता के पर्याय रहे, “राजनीति के मोती” कहे जाने वाले श्रद्धेय मोतीलाल वोरा जी की जयंती आज उनकी कर्मभूमि दुर्ग में श्रद्धा, सम्मान और स्मृतियों के साथ मनाई jaaegi. इस अवसर पर राजेंद्र पार्क चौक स्थित मोतीलाल वोरा जी की प्रतिमा स्थल पर प्रातः 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक एक सादे, गरिमामय कार्यक्रम का आयोजन किया गया है, जिसमें उनके जीवन, विचारों और दुर्ग के विकास में उनके अविस्मरणीय योगदान का स्मरण किया जाएगा।
दुर्ग शहर के पूर्व विधायक एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता अरुण वोरा ने दुर्ग शहर नागरिकों से व्यक्तिगत रूप से पधारने का अनुरोध किया है। उन्होंने अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनाने की अपील की है।

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-एक जीवन, निरंतर दायित्वों की यात्रा
वोरा जी ने पत्रकारिता से अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की और पत्रकारों के बीच वे अत्यंत लोकप्रिय रहे। वर्ष 1968 में उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। 1970 में मध्यप्रदेश विधानसभा का चुनाव जीतकर राज्य सड़क परिवहन निगम के उपाध्यक्ष बने। 1977 और 1980 में पुनः विधायक चुने गए तथा 1980 में अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में उच्च शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी संभाली।शिक्षा मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल में राज्यभर में लगभग 350 नए विद्यालयों की स्थापना हुई, जिससे ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों तक शिक्षा की पहुँच सुदृढ़ हुई। 1983 में वे मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी नियुक्त हुए।1985 में वे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने और लगभग तीन वर्षों तक इस पद पर रहे। 1988 में केंद्र सरकार में स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं नागरिक उड्डयन मंत्री बने तथा उसी वर्ष राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए।1989 वे पुनः मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।1993 से 1996 तक उन्होंने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में संवैधानिक दायित्व निभाया। संगठनात्मक स्तर पर वे कांग्रेस पार्टी के स्तंभ रहे और लगभग दो दशकों तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष के रूप में पार्टी को सशक्त किया।
-सादगी और अनुशासन का जीवन
कहा जाता है कि इतने बड़े पदों पर रहने के बावजूद वोरा जी का जीवन अत्यंत सादा था। वे कांग्रेस मुख्यालय में नियमित समय पर पहुंचते, फाइलें स्वयं देखते और संगठनात्मक कार्यों में सक्रिय रहते थे। कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड पर यह लगभग दस्तूर था कि वे प्रतिदिन पार्टी कार्यालय अवश्य आते थे। कोई भी कार्यकर्ता या सहयोगी उनसे सहजता से मिल सकता था—उनके दरवाज़े सभी के लिए सदैव खुले रहते थे।

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-विश्वास का नाम : गांधी परिवार के सबसे भरोसेमंद स्तंभ
गांधी परिवार के अत्यंत करीबी, विश्वसनीय और निष्कलंक व्यक्तित्व के रूप में वोरा जी सदैव अविस्मरणीय रहेंगे.इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक—चार पीढ़ियों के नेतृत्व के साथ उन्होंने कार्य किया और सभी के अटूट विश्वासपात्र बने रहे। पार्टी के सबसे संवेदनशील और कठिन निर्णयों में भी उन पर निर्भर किया जाता था।
-कार्यकर्ताओं के अपने, परिवार जैसे
मोतीलाल वोरा जी का व्यवहार कार्यकर्ताओं के प्रति सदैव आत्मीय रहा। उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं और युवाओं को आगे बढ़ाया, जनसेवा की राजनीति को प्रोत्साहित किया और ऐसी परंपरा स्थापित की जिसमें नेता जनता से जुड़ा और सुलभ रहे। वरिष्ठ हों या कनिष्ठ—हर कार्यकर्ता को वे ध्यान से सुनते, नाम से पुकारते, हालचाल पूछते और हमेशा यह एहसास कराते कि वह पार्टी ही नहीं, उनके अपने परिवार का सदस्य है।
-दुर्ग से अटूट भावनात्मक रिश्ता
मोतीलाल वोरा जी ने दुर्ग को अपनी कर्मभूमि मानते हुए जीवनभर शहर से गहरा जुड़ाव बनाए रखा। सांसद के रूप में उन्होंने दुर्ग की समस्याओं और आवश्यकताओं को संसद तक प्रभावी ढंग से पहुँचाया, जिससे शहर को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान और सम्मान मिला। उच्च पदों पर रहते हुए भी उन्होंने कभी दुर्ग से दूरी नहीं बनाई। यही कारण है कि दुर्ग उन्हें केवल एक नेता नहीं, बल्कि अपने परिवार का सदस्य मानता है।
मोतीलाल वोरा जी का जीवन अनुभवों से, उदाहरणों से भरा था। उन्होंने राजनीति को शोर नहीं, संतुलन; सत्ता नहीं, सेवा बनाकर जिया।आज उनकी जयंती के अवसर पर समस्त दुर्ग शहरवासी उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हैं।

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