नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के टुंडला में एक स्कूल मैदान पर 100 वर्षों से चल रहे रामलीला उत्सव पर रोक लगाने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने रामलीला के आयोजन को इस शर्त पर हरी झंडी दे दी कि इससे छात्रों की पढ़ाई या खेलकूद की गतिविधियों में कोई असुविधा नहीं होनी चाहिए।
तीन जजों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस सूर्यकांत ने इस मामले में जनहित याचिका (PIL) दायर करने वाले याचिकाकर्ता से बेहद सख्त सवाल किए। जस्टिस कांत ने पूछा, “यह उत्सव तो पिछले 100 सालों से होता आ रहा है। फिर अब आपने आखिरी समय में कोर्ट का रुख क्यों किया? आप पहले क्यों नहीं आए?”
जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि आयोजन से स्कूल में पढ़ाई प्रभावित हो रही है, तो जस्टिस कांत ने फिर सवाल किया, “लेकिन आप न तो छात्र हैं, न ही छात्र के अभिभावक और न ही संपत्ति के मालिक हैं… फिर आपने जनहित याचिका क्यों डाली?” कोर्ट ने यह भी पूछा कि छात्रों या अभिभावकों की तरफ से कोई शिकायत क्यों नहीं आई है।
इससे पहले, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया था कि रामलीला के लिए स्कूल के खेल के मैदान में सीमेंट की इंटरलॉकिंग टाइलें बिछाई जा रही हैं और स्कूल के गेट का नाम बदलकर ‘सीता राम द्वार’ कर दिया गया है। हाईकोर्ट ने माना था कि इससे बच्चों की पढ़ाई और खेल के मैदान का अधिकार प्रभावित हो सकता है, जिसके चलते उसने आयोजन पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ रामलीला महोत्सव समिति ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्ज्वल भुयान और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने रामलीला आयोजन समिति की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “चूंकि उत्सव शुरू हो चुके हैं, इसलिए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाती है। वहां इस शर्त के साथ उत्सव जारी रहेंगे कि बच्चों के खेलने या खेल गतिविधियों में कोई बाधा नहीं आएगी।” सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से इस मामले में सभी पक्षों को विस्तार से सुनने का भी अनुरोध किया है।
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