रायपुर । ज्योतिर्मठ के वर्तमान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज से जुड़े सिंधी समाज के प्रख्यात संत साईं जलकुमार मसंद साहिब ने हाल ही में बिलासपुर प्रवास के दौरान समाज के संतों व नेताओं को शंकराचार्य जी के सान्निध्य का लाभ उठाने का आह्वान किया। परम धर्म संसद 1008 के संगठन मंत्री साईं मसंद ने कहा कि यह जुड़ाव न केवल सिंधी समाज के वर्तमान और भविष्य को सुखद व सुरक्षित बनाएगा, बल्कि देश, धर्म व जगत कल्याण के लिए भी आवश्यक है। 16 और 17 सितंबर को बिलासपुर के दो दिवसीय प्रवास के दौरान साईं मसंद ने मांढर वाली माता के जन्मोत्सव में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने उत्सव में शामिल श्रद्धालुओं को सनातन वैदिक ज्ञान की महत्ता पर प्रकाश डाला। अगले दिन 17 सितंबर को सेंट्रल सिंधी पंचायत, वार्ड पंचायतों तथा समाजसेवी एवं धार्मिक संगठनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ धाम के जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज से जुडऩे के औचित्य पर विस्तार से चर्चा की। साईं मसंद ने बताया कि ढाई हजार वर्ष पूर्व आदि शंकराचार्य महाराज ने चार पीठों के दायित्व विभाजन में सिंध वासियों का दायित्व ज्योतिर्मठ के अंतर्गत निर्धारित किया था।
उन्होंने जोर देकर कहा कि मानव जीवन का प्रत्येक कार्य—व्यक्तिगत या सामाजिक—सनातन वैदिक ज्ञान के अनुरूप होना चाहिए। यह ज्ञान न केवल जीवन को सुखमय व आनंदमय बनाने के लिए जल, थल व नभ से जुड़ी आवश्यकताओं की दार्शनिक, वैज्ञानिक व व्यवहारिक पूर्ति सुझाता है, बल्कि ईश्वर प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। शंकराचार्य ऐसे सनातन वैदिक ज्ञान के कथनी व करनी के सर्वोच्च आदर्श हैं, इसलिए उनका सान्निध्य प्राप्त करना अनिवार्य है। प्रवास के दौरान साईं मसंद ने बिलासपुर के पुराने साथियों से भी भेंट की। इनमें पूर्व विधायक चंद्रप्रकाश बाजपेयी, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध संस्कृत विदुषी डॉ. पुष्पा दीक्षित, ज्योतिर्मठ व द्वारका मठ के पूर्व शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के पटु शिष्य हरीश साहा, प्रसिद्ध गौभक्त विपुल शर्मा सहित अन्य प्रमुख व्यक्ति शामिल थे। चर्चा का मुख्य विषय परम धर्म संसद 1008 के देशव्यापी गौ प्रतिष्ठा एवं अन्य अभियानों की सफलता रहा। बिलासपुर में साईं मसंद का अनेक स्थानों पर भावभीना सम्मान किया गया। यह प्रवास सिंधी समाज में धार्मिक जागरण और सनातन परंपराओं को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। समाज के सदस्यों ने उनके संदेश का स्वागत किया और शंकराचार्य जी से जुडऩे का संकल्प लिया।
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