दुर्ग। दुर्ग में एन्टी कांग्रेस धड़ के किसी जमाने मे प्रखर नेता रहे बिसे यादव का निधन हो गया। वे 73 वर्ष के थे। कुछ समय से वे अस्वथ्य चल रहे थे। छत्तीसगढ़ के धुरंधर नेता स्व हेमचन्द यादव के भी वे किसी समय गुरु माने जाते थे।
बिसे यादव को लोग गुरुजी के नाम से पहचानते थे। फोन लगाने पर वे हमेशा कहते थे, 'हलो मैं गुरुजी बोल रहा हूँ'।
बिसे यादव ने शिवसेना के रास्ते bjp को यहां खड़ा किया था। उन्होंने मोतीलाल वोरा के खिलाफ शिवसेना की टिकट पर चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में वे अपना जमानत बचा लिए थे। उस समय bjp यहां थी ही नही। हालांकि उन्होंने जिले में भाजपा को स्थापित करने अहम भूमिका निभाई किन्तु भाजपा जब सत्ता में आई तो उन्हें बिसरा दिए, इसके बाद वे छिन्न मस्त होकर घूमते रहे।
पारिवारिक सूत्रों के अनुसार बुधवार को करीब 12 बजे हरनाबांधा मुक्तिधाम में अंत्येष्टि कार्यक्रम सम्पन्न होंगे।
स्मृति शेष...
छोटे से कमरे में सिमट गए थे बिसे यादव.. डॉ. रमन को दिलाई सदस्यता
सन् 1986-87 में छग में भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं थी। तब पाटी के वरिष्ठ नेता गोविंद सारंग यहां नए नेतृत्व व सक्रिय लोगों की तलाश में पहुंचे थे। उस समय भाजपा में बिसे यादव का बड़ा नाम था। कवर्धा में भाजपा की गतिविधि शून्य होने के चलते वहां पार्टी को स्थापित करने के लिए एक नेता की तलाश थी। इसी सिलसिले में श्री सारंग, श्री यादव को लेकर कवर्धा गए थे। बकौल श्री यादव उस समय डॉ. रमन सिंह कवर्धा में शनिवर डॉक्टर के नाम से जाने जाते थे। इसका कारण यह था कि शनिवार के दिन के गरीबों का निःशुल्क इलाज करते थे व दवाई देते हैं। इस कारण शहर में वे खासे लोकप्रिय भी थे। जब श्री सारंग के साथ वै. डॉ. रमन से मुलाकात करने पहुंचे तब डॉ. रमन सिंह काफी व्यस्त थे और उन्होंने उन्हें एक घंटे बाद मिलने की बात कही। जब वे एक घंटे बाद पहुंचे तब भी वे मरीजों से घिरे हुए थे। इसे देख वे वहां से लौटने लगे, तभी रास्ते में उनकी स्कूटर पंचर हो गई। पंचर ठीक कराते तक डॉ. सिंह से मुलाकात की सोची और उनसे मुलाकात हो गई। श्री सारंग ने उनसे चर्चा के बाद न केवल डॉ. सिंह को भाजपा का प्राथमिक सदस्य बनाया, बल्कि उन्हें सदस्यता बुक भी थमाई।
जिले की राजनीति में बिसे यादव का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। यह वही शख्स है, जो कभी प्रदेश के कद्दावर नेता व पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को चुनाव में चुनौती दिया करते थे। यह वह दौर था जब श्री वोरा के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता था। गोविंद सारंग ने कवर्धा के शनिचर डॉक्टर कहे जाने वाले डॉ. रमन सिंह को भाजपा का प्राथमिक सदस्य श्री यादव की मौजूदगी में बनाया था। कड़यों की राजनीतिक क्षत्रप बनाने वाले इस व्यक्ति का वह भी दौर था जब शहर में उनकी दहाड़ गूंजा करती थी। आज यह व्यक्ति 8 गुना 8 के कमरे तक सिमटकर रह गए थे, बावजूद उसे किसी से शिकवा नहीं है।
एक समय था, जब शहर में 'गुरूजी' के नाम से चर्चित श्री यादव की तूती बोलती थी। जिस समय प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा का शहर में कोई झंडा उठाने वाला तक नहीं था, उस दौर में उन्होंने भाजपा को शहर में खड़ा किया। पहले भाजयुमो शहर अध्यक्ष व भाजपा शहर अध्यक्ष बनने का गौरव उन्हें प्राप्त है। जिस समय चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों को चुनौती देना तो दूर उनके खिलाफ कोई बोलने के लिए भी तैयार नहीं होता था, उस समय श्री यादव ने न केवल कांग्रेसी दिग्गजों को चुनौती दी बल्कि अपनी राजनीतिक कौशल से कड़यों को मात भी दी। गुरूजी ने सन् 1974 से 1979 तक नेशनल हाईस्कूल में शिक्षक के रूप में सेवाएं दी। यह काम उन्हें रास नहीं आया और उन्होंने नौकरी छोड़कर पहली बार दुर्ग नगर पालिका परिषद के ठेठवार पारा वार्ड से पार्षद का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उन्होंने शहर कांग्रेस अध्यक्ष रामानुजलाल यादव को पटखनी दी। यह चुनाव जीतने के बाद गुरूजी खुद ही राजनीतिक रूप से चर्चा में आ गए। इस बीच सन 2000 तक वे 5 बार पार्षद चुने गए। सन 1984 में भाजपा ने उस समय के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व मध्यप्रदेश के परिवहन मंत्री मोतीलाल वोरा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा।
हालांकि भाजपा का प्रारंभिक दौर होने के कारण श्री यादव यह चुनाव हार गए, लेकिन श्री बोरा को चुनाव में कड़ी टक्कर देने के कारण पार्टी में उनका ओहदा और भी बढ़ गया। प्रदेश की राजनीति में चली उठा-पटक के बाद श्री वोरा को केन्द्रीय मंत्री बना दिया गया और उन्होंने विधानसभा में अपनी, सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसी बीच चुरहट लाटरी कांड के बाद मध्यप्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को
इस्तीफा देना पड़ा और श्री वोरा को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके चलते सन् 1989 में दुर्ग विधानसभा का उपचुनाव हुआ। चुनाव में श्री वोरा कांग्रेस के प्रत्याशी थे, तब राजनीति में उनका कद इतना बढ़ चुका था कि उनके खिलाफ प्रत्याशी उतारने में सभी राजनीतिक दलों ने अपने हाथ खड़े कर दिए, तब बिसे यादव ने शिवसेना के प्रत्याशी के रूप में श्री वोरा को चुनौती दी। आज श्री यादव भले ही राजनीतिक रूप से हासिए पर हैं, लेकिन उनके जमाने में उनकी सक्रियता सांगठनिक क्षमता को लोग आज भी याद करते हैं। बकौल श्री यादव राजनीति उनके लिए कभी पहली प्राथमिकता नहीं रही। असल में उनकी सोच हिन्दूवादी रही है, इसलिए उनका झुकाव राजनीति दलों के बजाए हिन्दूवादी संगठनों की ओर ज्यादा रहा। हाल ही में उन्होंने भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए अभियान शुरू किया था। स्वास्थ्यगत कारणों से उनका यह अभियान मंद पड़ गया था। आने वाले दिनों में वे इसी अभियान को आगे बढ़ाना चाहते थे।
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