बड़ी ख़बरें

धमतरी बन रहा रोल मॉडल : धान के बदले दलहन-तिलहन ने बदली सोच

19304022025143045img-20250204-wa0294.jpg

RO. NO 13129/104

-साढ़े सात हजार करोड़ लीटर से अधिक पानी बचा, लगभग दो हजार 600 करोड़ रूपये से अधिक का फायदा अनुमानित

-किसान भी बोले : जीवन बचाना है, तो पानी बचाना जरूरी

धमतरी। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में गर्मी के धान के बदले चना, सरसों, मूंग, अलसी, तोरिया, सूर्यमुखी जैसी दलहन-तिलहन फसलों की खेती ने किसानों की परम्परागत सोच में भारी बदलाव किया है। धान छोड़कर दलहन-तिलहन की खेती के फायदों को किसान अब अच्छी तरह से समझने लगे हैं। धमतरी फसल चक्र परिवर्तन से जल संरक्षण के रोल मॉडल के रूप में  प्रदेश ही नहीं, देश में भी स्थापित हो रहा है। पिछले एक वर्ष में धमतरी जिले में गर्मी के धान के रकबे में एक साथ छः हजार 200 हेक्टेयर से अधिक की कमी आई है। धान की खेती में आई इस कमी से किसानों को पानी, बिजली, खाद, दवाई और मजदूरी मिलाकर खेती की लागत कम होने से लगभग दो हजार 641 करोड़ रूपये का फायदा कृषि विशेषज्ञों ने अनुमानित किया है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि इस अभियान से किसानों को प्रत्यक्ष रूप से तत्काल कोई बड़ा आर्थिक लाभ भौतिक रूप से दिखाई तो नहीं देगा, परन्तु पानी बचाकर, जीवन बचाने के इस अभियान के परिणाम दूरगामी होंगे। किसानों को हुआ लाभ अनुमानित लागत और गणना पर आधारित है। इस हिसाब से अभियान के आगे बढ़ने के साथ-साथ इससे होने वाले बहुगामी फायदे भी स्वतः ही सामने आएंगे। कृषि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि भले ही भौतिक रूप से पैसा किसानों के हाथ में ना आया हो, लेकिन एक सोच से इतनी बड़ी राशि का एक फसल अवधि में ही फायदा, किसानों की सोच बदलने का मुख्य कारण बन रहा है।

-कृषि विशेषज्ञों का अनुमान, दो हजार 641 करोड़ रूपये का किसानों को हुआ फायदा :

               पिछले वर्ष जिले में गर्मी में 30 हजार 339 हेक्टेयर रकबे में धान की खेती गई थी, जो कि इस वर्ष प्रशासन के प्रयास और किसानों की सहभागिता से 24 हजार 056 हेक्टेयर रह गया। कृषि विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि ग्रीष्मकालीन धान के रकबे में छः हजार 283 हेक्टयेर की कमी ने जिले के किसानों को दो हजार  641 करोड़ रूपये का फायदा पहुंचाया है। कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि एक हेक्टेयर, याने लगभग ढाई एकड़ रकबे में लगी धान की फसल के उत्पादन में एक करोड़ 20 लाख लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। वहीं इतने ही रकबे में लगी दलहन-तिलहन की फसल को आधे से कम 40 लाख लीटर पानी की जरूरत होती है। इसमें भी धान 120 दिन में पकता है, तो दलहन-तिलहन 40 दिन पहले 80 दिन में ही उत्पादन दे देते हैं। कृषि विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि धान के रकबे में 6 हजार 283 हेक्टेयर की कमी ने जिले में 7 हजार 539 करोड़ लीटर पानी बचाया है। यदि खेतों में सिंचाई के लिए पानी की कीमत 25 पैसे प्रति लीटर भी मानी जाए, तो किसानों के लगभग एक लाख 8 हजार 885 करोड़ रूपये केवल धान की जगह दलहन-तिलहन की फसल लगाने से ही बच गए हैं। इस पर कृषि विशेषज्ञों ने यह भी अनुमान लगाया है कि यदि भूमि से एक लीटर पानी सतह तक निकालने में 0.02 यूनिट बिजली की खपत होती हो, तो लगभग 151 करोड़ यूनिट बिजली की भी बचत हुई है, जिसकी दर यदि औसत 5 रूपये प्रति यूनिट भी लगाई जाए, तो इससे 754 करोड़ रूपये बचे हैं। धान की खेती में मजदूरी और खाद, दवाई आदि का खर्च भी दलहन-तिलहन की फसलों से लगभग दोगुना है। इस आधार पर भी कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि जिले में ग्रीष्मकालीन धान के बदले 6 हजार 283 हेक्टेयर रकबे में लगी दलहन-तिलहन की फसलों की काश्त लागत में कमी से भी किसानों ने लगभग तीन करोड़ रूपये की बचत कर ली है।

-जिला प्रशासन के प्रयास, किसानों की सहभागिता का भी अनूठा उदाहरण :

ऐसा नहीं कि धमतरी जिले में गर्मी के धान की फसल नहीं लेने के फैसले को किसानों पर दबावपूर्वक थोपा गया हो। सकारात्मक सोच के साथ सटीक योजना बनाकर सबसे पहले किसानों को गर्मी में धान की फसल लेने से होने वाले नुकसान को बताया गया। कृषि विभाग के अधिकारियों, प्रशासन के आला अफसरों ने गांव-गांव जाकर सभाएं कीं और किसानों को गर्मी में धान की फसल लेने से होने वाले नुकसान की जानकारी दी। इस पर प्रकृति ने भी प्रशासन का साथ दिया और दो वर्ष पहले जिले में गर्मी के मौसम के अंतिम चरण में पानी की भारी किल्लत के कारण लगी धान की फसल खराब होने की घटना ने भी किसानों की आंखें खोल दी। इस अभियान के लिए जिले में लगभग 28 हजार किसानों की सहभागिता सुनिश्चित की गई। गांवों में 265 विशेष शिविरों में कृषि विशेषज्ञों, विभागीय अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों सहित कृषि और आजीविका महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं और जल संरक्षण अभियान से जुड़ीं प्रेरणादायी हस्तियों ने किसानों को इस अभियान का महत्व समझाया।  जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित परसतराई गांव के सरपंच श्री परमानंद आडिल ने बताया कि दो साल पहले गांव में लगी गर्मी की धान की फसल अपने अंतिम चरण में पानी की कमी के कारण सिंचाई नहीं होने से खराब हो गई। परसतराई के साथ-साथ आसपास के बड़े इलाके में जमीन का वाटर लेबल भी काफी नीचे चला गया। तालाब, डबरी सूखने से निस्तारी की समस्या भी हो गई। उन्होंने बताया कि इस भयावह स्थिति को देखते हुए जिला प्रशासन की मदद से गांव में गर्मी की फसल नहीं लेने का सामुहिक निर्णय हुआ। प्रशासन ने इसके लिए ग्रामीणों की भरपूर मदद की। दलहनी-तिलहनी फसलों पर जोर दिया गया, चना, गेहूं, सूर्यमुखरी, सरसों, अलसी, कुल्थी, तिवड़ा, तिल जैसी दलहनी-तिलहनी फसलों की काश्तकारी की जानकारी कृषि विभाग के अधिकारियों ने दी। फसलों के बीज से लेकर अन्य दूसरे कृषि आदानों के लिए प्रशासन की सहायता मिली। सरपंच श्री आडिल ने बताया कि प्रशासन की योजना और गांव के सामूहिक निर्णय पर किसानों ने गर्मी धान की फसल की जगह पर अपने खेतों में दलहन-तिलहन की फसलें लगाईं और पानी के साथ-साथ खेती-किसानी की लागत कम होने से अच्छा लाभ कमाया। परसतराई का यह मॉडल जल्द ही पूरे जिले में फैल गया और पिछले साल धमतरी जिले में गर्मी में धान की फसल के रकबे में भारी कमी आई। 

-किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा धमतरी मॉडल

             किसानों को एक फसल अवधि में बड़ा फायदा पहुंचाने, खेती को लाभ के व्यवसाय के रूप में स्थापित करने के साथ-साथ जल संरक्षण और भूजल स्तर बढ़ाने में धमतरी मॉडल अब तेजी से जिले के अन्य किसानों के बीच भी लोकप्रिय होता जा रहा है। जिले में 494 गांवों में इसका सीधा असर देखने मिल रहा है। जहां किसानों ने गर्मी में धान की फसल को छोड़कर फसल चक्र परिवर्तन के तहत दलहनी-तिलहनी फसलों की खेती को प्राथमिकता दी है। धमतरी विकासखण्ड के 87 गांवों में एक हजार 440 हेक्टेयर रकबे में, कुरूद विकासखण्ड के 135 गांवों में दो हजार 113 हेक्टेयर रकबे में, मगरलोड विकासखण्ड के 116 गांवों में दो हजार 531 हेक्टेयर रकबे में और नगरी विकासखण्ड के 156 गांवों में 199 हेक्टेयर रकबे में गर्मी के धान की जगह दलहन-तिलहन फसलें लगाई गईं हैं। परसतराई गांव की किसान श्रीमती देवी साहू को जल संरक्षण के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया है। श्रीमती साहू ने बताया कि धान की फसल को छोड़कर दलहन-तिलहन की फसलें लगाने से पानी की बचत तो हुई ही है, गांव का वाटर लेबल जो पहले लगभग दो सौ फीट नीचे तक पहुंच गया था, अब वापस 75 से 90 फीट तक आ गया है। इसी तरह खेतों की मिट्टी में भी सुधार हुआ है। खरपतवार उगना कम हुए हैं, जिससे खाद, दवाई जैसे खर्चे भी कम हो गए हैं।

RO. NO 13129/104

एक टिप्पणी छोड़ें

Data has beed successfully submit

Related News

Advertisement

97519112024060022image_750x_66bc2a84329bd.webp
RO. NO 13129/104
60204032025101208img-20250304-wa0001.jpg

ताज़ा समाचार

Popular Post

This Week
This Month
All Time

स्वामी

संपादक- पवन देवांगन 

पता - बी- 8 प्रेस कॉम्लेक्स इन्दिरा मार्केट
दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

ई - मेल :  dakshinapath@gmail.com

मो.- 9425242182, 7746042182

हमारे बारे में

हिंदी प्रिंट मीडिया के साथ शुरू हुआ दक्षिणापथ समाचार पत्र का सफर आप सुधि पाठकों की मांग पर वेब पोर्टल तक पहुंच गया है। प्रेम व भरोसे का यह सफर इसी तरह नया मुकाम गढ़ता रहे, इसी उम्मीद में दक्षिणापथ सदा आपके संग है।

सम्पूर्ण न्यायिक प्रकरणों के लिये न्यायालयीन क्षेत्र दुर्ग होगा।

logo.webp

स्वामी / संपादक- पवन देवांगन

- बी- 8 प्रेस कॉम्लेक्स इन्दिरा मार्केट
दुर्ग ( छत्तीसगढ़)

ई - मेल : dakshinapath@gmail.com

मो.- 9425242182, 7746042182

NEWS LETTER
Social Media

Copyright 2024-25 Dakshinapath - All Rights Reserved

Powered By Global Infotech.