दुर्ग

जय आनंद मधुकर रतन भवन बांधा तालाब दुर्ग का चातुर्मास समाप्त कर विहार किया साध्वी समुदाय ने...

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दुर्ग । साध्वी डॉ सुमंगल प्रभा जी साध्वी डॉ सुवृद्धि श्रीजी साध्वी रजत प्रभा जी साध्वी प्रांजल श्री जी साध्वी वंदना श्रीजी ने पावन पवित्र पुरुषार्थ कर आध्यात्मिक वर्षावास को ज्ञान ध्यान तप त्याग धार्मिक जप अनुष्ठान ओर अनेक आयोजन से इस चातुर्मास को स्वर्णिम बना दिया। 
साध्वी मंडल अपना संयमी जीवन में राजेस्थान में व्यतित किया इतने वर्षों में यह पहला अवसर था की पहली बार राजस्थान से निकलकर इंदौर चातुर्मास कर छत्तीसगढ़ की धरती पर पहली बार साध्वी मंडल का पदार्पण हुआ और चातुर्मास के दौरान जय आनंद मधुकर रतन भवन बांदा तालाब दुर्ग में धर्म ध्यान त्याग तपस्या जब अनुष्ठान की चार माह गंगा बहती रही जिसमें जैन समाज के लोगों ने आध्यात्मिक वातावरण में इस सभी आयोजन का हिस्सा बने। चातुर्मास का प्रथम बिहार महावीर कॉलोनी स्थित महावीर भवन हुआ उसके पश्चात पदभनाभपुर एमआईजी 390 के लिए विहार हुआ। बिहार के दूसरे दिवस साध्वी समुदाय के सानिध्य में  एकभवअवतारी आचार्य सम्राट जयमल जी महाराज का दीक्षा दिवस तथा श्रमण संघ के प्रथम युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी का पुण्य स्मृति दिवस गुणानुवाद सभा के रूप में मनाया गया। 

के गुणानुवाद सभा को संबोधित करते हुए साध्वी डॉक्टर सुमंगल प्रभा जी ने कहा आचार्य सम्राट जयमल जी महाराज ओर बहुश्रुत श्रमण संघ के प्रथम युवाचार्य श्री मिश्रीमल मधुकर के जीवन दर्शन पर पर केंद्रित था। उन्होंने कहा आचार्य सम्राट जयमल महाराज ने हर क्षेत्र में जय ओर विजय को प्राप्त किया था । आप दोनों महान आत्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे ओर एक उच्च कोटी के महान संत थे।
नागोर की पावन धरा पर सोलह दिनों का संथारा ग्रहण किया था। इन दिनों अनेक साधु साध्वी नागोर में उपस्थित थे। 
नागोर शहर में देवलोक गमन पर अर्धरात्रि को अचानक एक आलोकित दिव्य प्रकाश हुआ तब वहां विराजमान किसी संत ने आप कोन सी दिव्य आत्मा हें उसी समय दादा गुरु जयमल जी के शिष्य उदय मुनि ओर केशव मुनि भी संथारा के समय नागोर की ओर विहार कर आ रहे थे तब उनके संथारा के बाद जो दिव्य प्रकाश एक चट्टान के उपर पड़ी इस चट्टान पर साधना करते हुए उदित मुनि ओर केशव मुनि का
9 ओर 11 दिनों का संथारा पुण हुआ था। 

इसी तरह मधुकर मुनि का जीवन भी अनेक ऊर्जा स्रोत से भरा पुरा था। 6 वर्ष की छोटी सी उम्र में उनका वैराग्य जीवन प्रारंभ हो गया था। दीक्षा संयम मार्ग पर अनेकानेक बाधाओं को पार करने के पश्चात मधुकर मुनि की दीक्षा राजेस्थान प्रांत के बाहर हूई दीक्षित के बाद से लगातार 25 वर्ष तक मोन धारण कर अनेक साधनाएं संपन्न की तथा अनेक जैन ग्रंथ की रचना करते हुए बत्तीस आगमों का सरल‌ सुन्दर रचना की जो आगम आज भी लोगों के ज्ञान ध्यान अर्जन के लिए उपलब्ध है।
श्रमण संघ के वरिष्ठ श्रावक ओर भीष्म पितामह की उपाधि से अलंकृत  पारस मल जी संचेती परिवार ने साध्वी समुदाय को आदर की चादर भेंट की। 

वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक श्रमण संघ के अध्यक्ष की अगुवाई में यह आयोजन हर्ष और उल्लास के वातावरण में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में पधारे अतिथियों का अतिथि सत्कार की व्यवस्था धर्मचंद लोढ़ा  परिवार ने की। आगे विहार नहेरू नगर, भिलाई 3, रायपुर की ओर होगा जहां रायपुर में मूर्ति पूजक संध में आयोजित दीक्षा समारोह जैन भगवती दीक्षा समारोह में भाग लेंगे ओर फिर छत्तीसगढ़ क्षेत्र विचरण करने के पश्चात आगामी 2025 के चातुर्मास के लिए सिकंदराबाद की ओर विहार करेंगे।

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