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Breaking: नहीं रहे अभ्युदय संस्थान अछोटी के संस्थापक पंडित राजन शर्मा जी, आज 11:30 बजे उनके गृह ग्राम मोहंदी में उनका अंतिम संस्कार..

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यह धरती स्वर्ग बन जाये' यही उनके महान गुरु का 'मिशन' रहा है।

दुर्ग। अभ्युदय संस्थान अछोटी के संस्थापक पंडित राजन शर्मा जी का गुरुवार को संध्या 5:30 बजे एम्स हॉस्पिटल रायपुर में हार्ट अटैक आने से निधन  हो गया। श्री राजन जी को मानने वाले गुरु भक्त परिवार के अंदर शोक की लहर व्याप्त है। आज शुक्रवार को 11:30 बजे उनके गृह ग्राम मोहंदी में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। 
मां काली पर अटुट आस्था और विश्वास रखने वाले दार्शनिक संत श्री राजन महाराज बालक भगवान्, श्री राम शर्मा आचार्य संत नागराज बाबा को अपने जीवन काल आदर्श माननें वाले यह संत शांत सरल और मृदु भाषण व्यक्तित्व के रूप में पूरी छत्तीसगढ़ में जाने और जाने जाते थे। भागवत,देवी भागवत, श्री रामकथा करने वाले दार्शनिक संत की अपनी अलग विशेष पहचान थी। 

 श्री राजन महाराज जी के मार्गदर्शन में पिछले 35-40 वर्षों से बाबा रूखडनाथ महोत्सव का का आयोजन किया जाता रहा है जो कार्तिक पूर्णिमा की अमावस्या को यह आयोजन वृहद स्तर पर ग्राम मोहंदी नारधा मे आयोजित होता है और प्रतिवर्ष विशिष्ट कार्य करने वाले देश के ख्याति नाम लोगों को बाबा रुखडनाथ सम्मान से सम्मानित करने का कार्य भी राजन महाराज जी के सानिध्य में लगातार आयोजित हो रहा है।

देश के कई ख्याति नाम संत रविशंकर जी, सहित अनेक संतों से आपके सभी से बेहद अच्छे संबंध थे।

उनकी प्रेरणा और मार्गदर्शन में रामहृदय जी तिवारी के निर्देशन में बालक भगवान् के जीवन दर्शन एवं जीवन चरित्र पर डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाई गई थी।

इसी तरह से पंडित राजन शर्मा के जीवन दर्शन पर उनके भक्त स्व विनय संचेती  ने फिल्म राजन का निर्माण कराया जिसे उनके मानने वाले गुरु भक्त परिवारों ने इस फिल्म को बेहद पसंद किया। 

छत्तीसगढ़ ही नहीं देश विदेश में श्री राजन शर्मा जी को मानने वालों की संख्या हजारों में है।

संक्षिप्त परिचय पुज्य राजन शर्मा जी के...

दुर्ग शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर जामुल नारधा से लगा हुआ गाँव 'मोहंदी राजन जी का पैतृक गाँव है। राजस्व विभाग में कार्यरत उनके पिता श्री के पदस्थापना धमधा में होने के कारण उनका पूरा परिवार धमधा में ही नियासरत थे। उन्हीं दिनों दिनांक 29 अप्रैल सन् 1944, प्रातः 4 बजे की मंगलमय मुहूर्त में धमधा में राजन जी का जन्म हुआ। धर्मनिष्ट मानस मर्मज्ञ पिता श्री विष्णु प्रसाद शर्मा एवं लक्ष्मी सी कंचन काया वाली माँ हेमा देवी ने अपने इकलौते लाड़ले का नाम रखा राजकुमार, जिन्हें वे राजन तो कभी 'रजना' कहकर प्यार से पुकारते थे। बचपन से राजकुमार की तरह पले बढ़े राजन का नामकरण संयोग से उपस्थित एक साध्वी ने स्वेच्छा से किया था। बाद में पता चला राजन शब्द का एक तात्विक अर्थ प्रकाश फैलाने वाला भी होता है।

प्रियदर्शी राजन जी की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा धमधा में ही हुई। प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लेने के बाद मेधावी छात्र राजन को तब के श्रेष्ठतम सेंट पॉल हाईस्कूल रायपुर में प्रतिष्ठापूर्वक प्रवेश मिला। कॉलेज प्रथम वर्ष विश्वविद्यालय परीक्षा में मेरिट सेकण्ड पोजीशन उत्तीर्ण होने के कारण आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें शासन की ओर से स्कॉलरशिप मिली। उन्होंने क्रमशः छत्तीसगढ़ कॉलेज रायपुर से स्नातक और साइंस कॉलेज दुर्ग से स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की।

अपने पूरे अध्ययनकाल में शिक्षकों के प्रियछात्र तथा सहपाठियों के बीच रहस्यमय आकर्षण के केंद्र रहे राजन जी, अकेले ऐसे छात्र थे जो कोट, पैंट और टाई पहनकर कॉलेज जाया करते थे। अपनी वेशभूषा और डीलडौल के कारण विद्यार्थी नहीं प्रोफेसर की तरह दिखाई देने वाले राजन जी के मन में विपरीत लिंगी सौंदर्य के प्रति युवा सुलभ अनुरक्ति तो थी, मगर वे सोचते - सौंदर्य क्या है? स्त्री क्या है? 

छत्तीसगढ़ के ऐसे ही विरले महामानवों में एक ख्यातनाम है- राजन, जिन्हें लोग एक दार्शनिक संत के रूप में जानते और मानते हैं तथा जिन्हें प्यार और आदर के साथ राजन जी, राजन महाराज या केवल महाराज जी के नाम से पुकारते हैं। सम्बोधन अनेक हैं, पर शख्सियत सबके लिए एक। सबसे अलहदा, सबसे जुदा, सबसे न्यारा, सबसे प्यारा, तरल सा, सरल सा, मृदुल सा एक भाव-प्रवाह का नाम है - राजन महाराज 

लंबा कद, गौरवर्ण, सुदर्शन देहयष्टि, मुखर मुस्कान तो कभी उन्मुक्त खिलखिलाहटों से खिली मुखमुद्रा, चाल ढाल, बोली व्यवहार और वेशभूषा में काव्यात्मक दार्शनिक की सी भाव-भंगिमा। समूचे व्यक्तित्व में ऐसा सम्मोहन कि हर आगंतुक उनसे प्रभावित हुए बिना रह नहीं सकता। जो भी देखे जो भी मिले, उन्हें भूल नहीं सकता।

राजन जी एक ऐसे इंसान हैं जिन्हें मान-सम्मान, यश कीर्ति और संपदा संग्रह की जरा भी परवाह नहीं। निष्कुलषता और सहजता से जीने वाले, सब के लिए समान रूप से निस्वार्थ प्रेम लुटाने वाले राजन जी से मिलने का मतलब एक आत्मीय आल्हाद से गुजरना है। उदार व्यवहार और मीठी वाणी के धनी राजन जी से मिलकर एक सामान्य आदमी भी अपने भीतर एक बड़प्पन का एहसास लेकर लौटता है।

हर इंसान के भीतर इंसानियत का जज्बा, हर मनुष्य के भीतर मनुष्यता की महक पैदा करने में माहिर श्री राजन जी, स्वयं श्रद्धा, आस्था और विश्वास के आधार हैं। किसी भी तरह की कोई घटना, पात्र या परिस्थिति क्यों न हो, सबको सहज भाव से स्वीकार, सबके लिए शुभ और सकारात्मक विचार उनके चिंतन-मनन और जीवन का स्वभावगत संस्कार है। अमूमन हर जगह, हर समय, हर किसी के साथ सहज सामंजस्य स्थापित कर लेने वाले राजन जी का समूचा जीवन 'सर्वजन हिताय- सर्वजन सुखाय' का जीवन्त उदाहरण है। उनके तमाम संभाषण, प्रवचन और संवादों का सार होता है - परिवर्तन। सुखद और सार्थक परिवर्तन। उनके तमाम क्रियाकलापों का अंतर्निहित लक्ष्य है - परिष्कार। मनुष्य के जीवन का परिष्कार। आदमी अपने जीवन के सामान्य धरातल से ऊँचा उठे, मनुष्य का हृदय-प्रेम करुणा और संवेदना से संपूरित हो, यही उनकी जागी आँखों का सपना है। (स्वप्न में अपनी जागी आँखों से देखा करते हैं) आदमी जागे, अपने आचरण व्यवहार और सत्कर्मों से देवत्व की ऊँचाई छुए ताकि 'यह धरती स्वर्ग बन जाये' यही उनके महान गुरु का 'मिशन' रहा है। इसी मिशन को अपने ढंग से आगे बढ़ाने में लगे रहने वाले - असाधारण गृहस्थ संत हैं - राजन महाराज ।

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