दुर्ग। दुर्ग जिले में कुछ दिनों से राजनीतिक टकराव का माहौल है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के काफिले को रोककर भाजपा व बजरंग दल कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया दुर्व्यवहार और उसके बाद हुए कांग्रेस–भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच झड़पों ने राजनीतिक माहौल गरमा दिया है?
कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भिलाई–3 थाना घेरने का प्रयास किया। जिसे विफल करने पुलिस ने जोरदार लाठी भांजी जिसमें कइयों को चोट आई। एक पुलिस अधिकारी की नाक की हड्डी भी टूट गई। इसी से जुड़े एक अन्य घटना में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने एक भाजपा कार्यकर्ता को पीटते हुए थाना पहुंचाया।
टकराव की यह राजनीति देखकर पश्चिम बंगाल की याद आ गई। पश्चिम बंगाल में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता इसी तरह जब तब भिड़ते रहते है। बंगाल में इस तरह की सियासी हिंसक झड़प आम बात है। लेकिन छत्तीसगढ़ में यह कल्चर नया है, और यह राज्य के लिए चिंताजनक है।
यह नहीं भूलना चाहिए कि नफरती हिंसक राजनीति ने विकास की दौड़ में बंगाल को कई साल पीछे पहुंचा दिया है। बंगाल की दस करोड़ आबादी राजनीतिक आंदोलनों से परेशान हो चली है।
छत्तीसगढ़ के तीन करोड़ लोगो को भी भाजपा व कांग्रेस के राजनीतिक द्वंद से ज्यादा सरोकार नहीं, इन्हे बुनियादी सुविधा और विकास चाहिए। जबकि अभी चल रहे तकरार का जनसुविधा और जनविकास से कोई लेना देना नही। कांग्रेस–भाजपा के लोग अपने नेताओं के वर्चस्व के लिए लड़ रहे हैं।
बलौदाबजार हिंसा मामले में भिलाई नगर विधायक देवेंद्र यादव की पुलिस अभिरक्षा के बाद कांग्रेस पार्टी प्रदेश सरकार के खिलाफ काफी एक्टिव हो गई है। प्रदेश के तीन मामले सीबीआई को सौंपे जा चुके हैं। कांग्रेस नेताओ को पता है कि सीबीआई जांच कैसे होती है। गिरफ्तारी का दायरा बढ़ेगा। यदि कांग्रेस कार्यकर्ता न्यायिक जांचों के खिलाफ ऐसे ही सड़क पर उतरते रहे, तो आगामी दिनों राजनीति और गर्म होगी।
अब छत्तीसगढ़ में सीबीआई की आमद हो चुकी है..
बता दें, कि दिसंबर 2018 में कांग्रेस ने प्रदेश की सत्ता में आने के बाद 10 जनवरी 2019 को सीबीआई पर बैन लगाया था। वह अब साय सरकार के सत्तासीन होने के बाद हट चुका है। प्रदेश से सीबीआई के प्रवेश का रास्ता भी साफ होने पर चर्चा है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस शासनकाल में हुए कोयला और शराब घोटाला भी सीबीआई को दिया जा सकता है।
अभी तक तीन मामले सीबीआई को दिए जा चुके हैं...
जिसमे पहला बिरनपुर कांड ,दूसरा सीजी पीएससी घोटाला के अलावा महादेव सट्टा ऐप प्रकरण की जांच सीबीआई को सौंपी जा चुकी है।
सीबीआई की जांच राजनीति के विद्वेषपूर्ण है या भ्रष्ट्राचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की लड़ाई है, यह वक्त बताएगा।
लोकतंत्र में राजनीतिक सक्रियता महत्वपूर्ण है, पर इसका उद्देश्य लोकहित होना चाहिए।
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