दुर्ग

गृह निर्माण संस्था पर शासन को अरबों रुपए के राजस्व की क्षति पहुंचाने का भाजपा नेताओं ने लगाया आरोप

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-अनियमितता का यह मामला विस में था गूंजा,लेकिन अब तक कार्यवाही नही होने पर उठे कई सवाल
दुर्ग । दुर्ग जिला गृह निर्माण मर्यादित समिति, राजनांदगांव के खिलाफ  अनियमितता बरतने के बड़े आरोप सामने आए है। यह आरोप प्रदेश भाजपा नगरीय निकाय प्रकोष्ठ के सह-संयोजक व भिलाई नगर निगम के पूर्व नेता प्रतिपक्ष संजय दानी, जिला भाजपा के पूर्व मीडिया प्रभारी सतीश समर्थ व सामाजिक कार्यकर्ता विमलेश जैन द्वारा मीडिया से चर्चा करते हुए लगाया गया है। उन्होने कहा है कि दुर्ग जिला गृह निर्माण मर्यादित समिति राजनांदगांव ने मालवीय नगर में शासन द्वारा आबंटित भूमि से अधिक क्षेत्र में सरकारी नजूल की भूमि पर अवैध कब्जा कर प्लॉट काटकर बिक्री कर दी है। यह कृत्य कर संस्था ने शासन को अरबों रुपए की राजस्व की क्षति पहुंचाई है। ऐसा करके संस्था ने नियम-कानून का उल्लंघन तो किया ही है,साथ ही आवास धारकों को भी गुमराह किया है। जो छत्तीसगढ़ में अनियमितता व शासन को राजस्व की क्षति पहुंचाने का बड़ा उदाहरण है। आरोपकर्ताओं ने बताया कि दुर्ग जिला गृह निर्माण मर्यादित समिति, राजनांदगांव के खिलाफ संभागायुक्त से शिकायत की गई थी। जांच में पाया गया कि संस्था ने मालवीय नगर की 10 एकड़ की भूमि पर अवैध कब्जा कर बिक्री कर दी है। जिसके बाद भी आज तक संस्था के खिलाफ में कार्यवाही नहीं होना कई सवाल खड़े कर रहा है। उन्होने बताया कि इस पूरे मामले के दस्तावेज सूचना के अधिकार नियम के तहत निकाले गए है। जिसके आधार पर जो जानकारी सामने आई है वह चौकाने वाले है। आरोपकर्ता संजय दानी, सतीश समर्थ व विमलेश जैन ने कहा कि यह पूरा मामला जिला प्रशासन, नगर निगम के अलावा अन्य संबंधित विभागों के संज्ञान में है। नगर निगम संपत्ति कर जमा नहीं करने पर नोटिस देकर संबंधित के खिलाफ  कार्यवाही करती है। नगर निगम मालवीय नगर स्थित उक्त भूखंड पर बने कॉलोनी पर अवैध कॉलोनी बताती है,लेकिन सवाल यह है कि कॉलोनी को किस आधार पर एनओसी दिया जा रहा है। हाल ही में पट्टे का नवीनीकरण किस आधार पर कर दिया गया,यह भी बड़ा सवाल है। आरोपकर्ताओं ने बताया है कि छत्तीसगढ़ के पूर्व राजस्व मंत्री पे्रमप्रकाश पांडेय से संस्था के कृत्यों के खिलाफ शिकायत की गई थी,उनके माध्यम से इस मामले को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय व वित्तमंत्री ओपी चौधरी के संज्ञान में लाया गया है। विधायक अजय चंद्राकर द्वारा इस मामले को विधानसभा में भी उठाया जा  चुका है। आरोपकर्ताओं ने कहा है कि उम्मीद है कि  विधानसभा के आगामी बजट सत्र में यह मामला फिर उठेगा और दोषियों के खिलाफ कार्यवाही सुनिश्चित होगी,जिससे आवासधारकों को न्याय मिलेगा।

आरोपकर्ता संजय दानी,सतीश समर्थ व विमलेश जैन ने मीडिया को बताया कि  वर्ष 1960-61 में दुर्ग जिला गृह निर्माण मर्यादित समिति, राजनांदगांव द्वारा मध्यप्रदेश शासन से दुर्ग जिले में आवासीय कालोनी बनाने हेतु शासकीय भूमि की मांग की गई। जिस पर सचिव मध्यप्रदेश शासन द्वारा खसरा क्रमांक 1356/1, 2, 3, 1357, 1358 व 1359 ग्राम व जिला दुर्ग हलका क्रमांक 24, की 4.74 एकड़ जमीन लगभग 2,06,000 वर्गफीट आवासीय प्रयोजन हेतु मालवीय नगर क्षेत्र में प्रदान की गई थी। जिस पर संस्था द्वारा ग्राम एवं निवेश विभाग के अंतर्गत प्राप्त पट्टे की अनुबंध की शर्तों के तहत सड़क, नाली, व गार्डन, सिवरेज लाईन की भूमि को छोड़ कर आवासीय 3000 वर्गफीट के भूखण्डों पर भवन निर्माण करना था। परन्तु संस्था द्वारा जिला प्रशासन की स्वीकृत पट्टे की भूमि के बगल में अतिरिक्त पड़ी नजूल जमीन पर अवैध ढंग से (लगभग 10 एकड) पर निर्माण कर अपने अंशधारियों व सदस्यों को बेच दिया गया एवं ग्राम एवं निवेश विभाग को दिए पट्टा विलेख की शर्तों का धडल्ले से उल्लंघन किया गया। यही नहीं पट्टा विलेख में कुल 30 आवासों की जानकारी दी गई जो कि 3000 वर्गफीट के बनने थे। संस्था द्वारा कुछ रसूखदार अंशधारियों को 7600 वर्गफीट से 9000 वर्गफीट तक के भूखण्डों पर भवन निर्माण कर दिया गया एवं बचे सदस्यों को 4800 वर्गफीट का भूखण्ड पर भवन निर्माण कर दिया गया। इस प्रकार 39 भवनों का कुल क्षेत्रफल 1,62,000 वर्गफीट गार्डन, सड़क, नाली, निस्तारी गली को छोड़कर है। जो कि शासन द्वारा देय स्वीकृत पट्टे के 2,06,000 वर्गफीट में से 40प्रतिशत भूमि डेवलपमेंट हेतु छोडने पर 1,20,000 ही शेष रहती है, जबकि संस्था द्वारा स्वीकृत पट्टे की भूमि के अतिरिक्त बगल की नजूल जमीन पर भवनों का निर्माण कर वर्ष 1960-61 में बिक्री कर दिया गया। साथ ही इन बेचे गए भवनों पर लगने वाले प्रीमीयम, प्रब्याजी व भूभाटक की शासन द्वारा तय गणना की राशि को भी संस्था द्वारा वर्ष 2019-20 तक नहीं अदा की गई। जब इस संपूर्ण घटनाक्रम की जानकारी जनदर्शन के माध्यम से जिलाधीश के सम्मुख उठाई गई,तब संस्था द्वारा आनन फानन में 30 लाख रुपये का चालान शासन के पक्ष में भुगतान किया गया व 15 लाख का अग्रिम भुगतान यह कहते हुए किया गया कि पट्ट का नवीनीकरण आगामी 30 वर्षों के लिए किया जाये। चूंकि नजूल विभाग की लापरवाही व सस्था की मिलीभगत से यदि पट्टा विलेख का अवलोकन जवाबदार अधिकारी किये होते तो विलेख क्रमांक 4 में स्पष्ट अंकित है कि शासन द्वारा देय पट्टे की प्रीमीयम व भूभाटक की राशि संस्था द्वारा पट्टा स्वीकृत होने के 6 माह के अंदर नहीं करती है तो स्वीकृत पट्टा स्वमेव निरस्त माना जाएगा। परंतु संबंधित विभागों द्वारा इस पर किसी भी प्रकार का ध्यान न देते हुए संस्था को लाभ पहुंचाने की दृष्टि से कार्यालय जिलाधीश की ओर से शासन को पट्टे का नवीनीकरण करने हेतु अनुशंसा की गई। इस संबंध में आवेदक (शिकायतकर्ता) द्वारा जिलाधीश को जनदर्शन में शिकायत पर 14 माह तक कार्यवाही न होने पर संभायुक्त (महादेव कावरे) को लिखित में इस संपूर्ण प्रकरण की शिकायत की गई एवं उचित कार्यवाही करने हेतु मांग की गई। संभागायुक्त द्वारा प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए 15 दिवस के भीतर 4 राजस्व निरीक्षकों की टीम बना कर संपूर्ण मामले की जांच करवा कर संस्था के द्वारा किये गए अवैध नजूल जमीन पर कब्जा व निर्माण की शिकायत को सही पाया व उस पर शिकायत शाखा को तत्काल अग्रिम कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया। इस संपूर्ण जांच में संस्था द्वारा लगभग 10 एकड अतिरिक्त जमीन पर कब्जा कर भूखण्डों की बिक्री व आवास निर्माण कर राज्य शासन के राजस्व में करोडो रुपये की क्षति पहुंचाई गई व इस 10 एकड (लगभग 4,46,000 वर्गफीट) भूमि जिसका की वर्तमान बाजार मूल्य लगभग 10 हजार रुपये प्रतिवर्ग फीट है के हिसाब से 446 करोड रुपये व इस 446 करोड रुपये की भूमि पर वर्ष 1960-61 से आज तक के प्रीमीयम, प्रब्याजी व भूभाटक की 15प्रतिशत की दर से चक्रवृद्धि व्याज का दण्ड शुल्क की गणना की जाए, तो यह राशि अरबों में होगी।

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