दुर्ग (महेश कुमार बेलचंदन)। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित *आदर्श ग्राम तिरगा* अपने कृषि कार्यों और उपजाऊ भूमि के लिए लंबे समय से प्रसिद्ध रहा है। यह गांव कभी अपनी हरियाली, उन्नत फसल और मेहनती किसानों के कारण आसपास के क्षेत्रों के लिए प्रेरणा का केंद्र था। किंतु आज यही तिरगा गांव एक गहरी कृषि संकट से गुजर रहा है।
कृषि की बदलती स्थिति ...
कभी जो धरती सोना उगलती थी, आज वही धरती किसानों की चिंता का कारण बन गई है। इस वर्ष की कृषि स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। किसानों से बातचीत में यह स्पष्ट हुआ कि खेती अब केवल परिश्रम नहीं, बल्कि धैर्य और साहस की परीक्षा बन चुकी है।
इस वर्ष खाद और बीज समय पर उपलब्ध नहीं हुए, मौसम ने साथ नहीं दिया, मजदूरों की भारी कमी रही और जो दवाइयाँ बाजार में मिलीं, वे अधिकतर घटिया और लोकल गुणवत्ता की थीं। परिणामस्वरूप धान की फसल में रोग बढ़ते गए और लागत इतनी अधिक हो गई कि लाभ की कोई उम्मीद नहीं बची।
किसानों की पीड़ा - उनके ही शब्दों में ..
घसियाराम देशमुख (ग्राम सरपंच) बताते हैं- “इस बार खेती में लागत पिछले वर्ष की तुलना में दोगुनी बढ़ गई है। दवाइयों के दाम में बेतहाशा वृद्धि हुई है और फसल में रोग बहुत ज्यादा हैं। मैंने खुद पाँच बार दवाई डालनी पड़ी, लेकिन असर बहुत कम दिखा। किसान अब बेहद परेशान हैं।”
युवराज देशमुख का कहना है - “मजदूर नहीं मिल रहे और दवाइयाँ घटिया हैं। जो लोकल दवाइयाँ आती हैं, वे असर नहीं करतीं। फसल बीमारियों से घिरी है और किसान बेबस हैं।”
डॉ. ईश्वरीलाल देशमुख बताते हैं - “इस साल खाद-बीज समय पर नहीं मिला, मौसम ने भी साथ नहीं दिया। दुकानों में जो दवाइयाँ हैं, वे सभी महंगी और निम्न गुणवत्ता की हैं। लगभग हर दवाई में ₹1000 तक का अतिरिक्त खर्च बढ़ गया है।”
संतराम देशमुख कहते हैं - “मैंने चार बार दवाई डाली है, लेकिन लागत इतनी बढ़ गई कि उत्पादन का लाभ न के बराबर है। अब चिंता यह है कि छोटे किसान अपने परिवार और त्योहार कैसे निभाएँगे।”
बिसौहाराम देशमुख बताते हैं- “एक एकड़ में पाँच बार दवाई डालने में ही ₹15000 लग गए। ऐसा लगता है खेती अब जुआ खेलने जैसा काम हो गया है।”
देवसिंह ठाकुर का कहना है- “किसान कर्ज में दबा हुआ है, ऊपर से मौसम और दवाई की मार। उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं है।”
हीरालाल दिल्लीवार गुरुजी दुखी होकर कहते हैं - “जीवन में पहली बार मेरी पूरी फसल बर्बाद हुई है। न मजदूर मिल रहे हैं, न अच्छी दवाई। किसान का मन टूट चुका है।”
रुक्मणलाल देशमुख का कहना है - “कंपनियों द्वारा घटिया दवाइयाँ बेची जा रही हैं। सरकार को ऐसी कंपनियों पर तुरंत रोक लगानी चाहिए। किसान को राहत तभी मिलेगी जब असली सुधार होगा।”
किसानों की चिंता, समाज की जिम्मेदारी ..
त्योहारों का मौसम आ रहा है, लेकिन किसानों के चेहरों पर मुस्कान नहीं है। जब अन्नदाता ही दुखी हो, तो समाज की समृद्धि अधूरी लगती है। आज आवश्यकता है कि सरकार और समाज दोनों मिलकर किसानों की समस्याओं को गंभीरता से समझें और ठोस कदम उठाएँ।
कृषि केवल आजीविका नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और अस्तित्व की जड़ है। किसान की मुस्कान ही गांव की असली रोशनी है — जब तक उनके चेहरे पर खुशी नहीं लौटेगी, दीपावली की रोशनी अधूरी ही रहेगी।
ग्राम तिरगा के किसान अपनी मेहनत और लगन से हमेशा समाज को प्रेरणा देते आए हैं। आज वे कठिन दौर में हैं, पर उनकी उम्मीदें अब भी जीवित हैं। आवश्यकता है सहयोग, सच्चे ध्यान और संवेदनशील नीति की — ताकि “आदर्श ग्राम तिरगा” फिर से अपनी हरियाली और समृद्धि की पहचान वापस पा सके।
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