बिलासपुर। छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (CIMS) बिलासपुर के मेडिसिन विभाग में पहली बार प्लाज़्माफ़ेरेसिस तकनीक का सफल उपयोग कर एक गंभीर रूप से बीमार मरीज का इलाज किया गया।
बिलासपुर निवासी 19 वर्षीय युवती लंबे समय से कमजोरी और खून की कमी की समस्या से जूझ रही थी। जाँच में पाया गया कि उसके शरीर में हानिकारक प्रोटीन अत्यधिक मात्रा में जमा हो गए हैं और रक्त में आवश्यक प्रोटीन का स्तर असामान्य रूप से घट गया है। यह स्थिति जानलेवा साबित हो सकती थी। प्लाज्मफरेसिस कई तरह की बीमारियों में प्रयोग किया जाता है जहाँ खून के प्लाज़्मा में हानिकारक एंटीबॉडी, प्रोटीन या टॉक्सिन जमा हो जाते हैं। इससे शरीर की सामान्य क्रियाएँ प्रभावित होती हैं।
प्रमुख बीमारियाँ जिनमें प्लाज़्माफ़ेरेसिस उपयोगी है, उनमें न्यूरोलॉजिकल बीमारियां, रक्त संबंधी बीमारियां, किडनी से जुड़ी बीमारी,ऑटोइम्यून बीमारियाँ, लीवर फेल्योर और कोविड 19 शामिल हैं।
आसान भाषा में कहें तो, जहाँ खून में हानिकारक एंटीबॉडी, प्रोटीन या टॉक्सिन जमा हो जाते हैं और सामान्य दवाओं से जल्दी असर नहीं होता, वहाँ प्लाज़्माफ़ेरेसिस काम आता है।
मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. अमित ठाकुर, डॉ. आशुतोष कोरी,डॉ सुयश सींग डॉ किशले देवांगन डॉ. अर्पणा पांडेय और उनकी टीम ने युवती को भर्ती कर विस्तृत जाँच के बाद प्लाज़्माफ़ेरेसिस प्रक्रिया द्वारा उपचार किया। इस प्रक्रिया में मशीन की सहायता से मरीज के रक्त से प्लाज़्मा (Plasma) को अलग कर हानिकारक तत्वों को हटाया गया और रक्त कोशिकाओं को शुद्ध द्रव के साथ पुनः शरीर में पहुँचाया गया। इस संबंध में सिम्स के अधिष्ठाता डॉ. रमणेश मूर्ति को चिकित्सा अधीक्षक डॉ. लखन सिंह द्वारा जानकारी दी गई। अधिष्ठाता महोदय के आदेशानुसार यह उपचार मरीज को निशुल्क उपलब्ध कराया गया। सामान्यतः यह प्रक्रिया निजी अस्पतालों में 40,000 से 50,000 रुपये तक महँगी होती है।
प्लाज़्माफ़ेरेसिस क्या है?
यह एक चिकित्सीय प्रक्रिया है जिसमें रक्त से प्लाज़्मा निकालकर उसमें मौजूद हानिकारक एंटीबॉडी, प्रोटीन व टॉक्सिन हटाए जाते हैं। तकनीक मुख्यतः दो विधियों से की जाती है।सफल उपचार के बाद युवती की स्थिति अब सामान्य है और वह स्वास्थ्य लाभ कर रही है। सिम्स प्रबंधन का कहना है कि भविष्य में इस तकनीक का लाभ प्रदेश के और भी ज़रूरतमंद मरीजों को मिलेगा।
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