दुर्ग (छत्तीसगढ़)। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय राजऋषि भवन केलाबाड़ी दुर्ग में श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव मनाया गया । इस अवसर पर युक्ति और मौसमी,कृष्ण का रुप धारण कर व चंद्राणी और जागृति राधा का रुप धारण कर महारास किये । बेबी शिखा व कुँजल भी बाल कृष्ण का रुप धारण किये हुए थे।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व श्री कृष्ण संग गोपियों की महारास का आध्यात्मिक रहस्य बताते हुए ब्रह्माकुमारी रुपाली दीदी ने उपस्थित सभा को संबोधित करते हुए बताया श्री कृष्ण सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम देवता है जिनका जन्म मध्य रात्रि में कारागार में दिखाया जाता है । इस सृष्टि पर अनेक मनुष्य आत्माएं हैं जो भिन्न भिन्न-भिन्न नाम रूप धारण कर अपना-अपना पार्ट बजा रहें हैं । निराकार परमपिता परमात्मा "शिव" जो कि कलयुग के अंत व सतयुग के आदि पुरुषोत्तम संगमयुग पर सर्व मनुष्य आत्माओं को सर्वगुण संपन्न बनने की शिक्षा दे रहें है वह स्वयं से योग लगाकर सर्व विकारों से मुक्त होने की विधि सिखाते हैं । वैसे तो सृष्टि पर सभी मनुष्य आत्माओं के अच्छे व बुरे भिन्न-भिन्न संस्कार है किंतु निराकार परमात्मा यह सिखाते है सभी मनुष्य आत्माएं अपना-अपना पार्ट बजा रहे है।
जो मनुष्य आत्माएं भिन्न-भिन्न संस्कारों के वशीभूत आत्माओं के साथ प्रेम व सद्भाव पूर्ण व्यवहार करते हैं। इसी को संस्कार मिलन का महारास कहा जाता है जब हम इस समय ऐसे अपना पार्ट बजाने का अभ्यास करते हो तो आने वाली नई सृष्टि सतयुग में सुख और शांतिमय जीवन के अधिकारी बनते हैं। श्री कृष्ण सर्प को अधीन कर उसके ऊपर नृत्य करते हैं उसका रहस्य है आत्माओं में जो विकार है वही सांपों की भांति है जब हम इसे परमात्मा की याद से अपना अधीन बना लेते हैं तब यह हमारी शैया बना जाती है। श्री कृष्ण के मुख में मक्खन दिखाते हैं मक्खन हल्का होता है तो किसी भी परिस्थिति में हम स्वयं हल्के रहें । अनेक पर्व में अनेक झांकियां लगाई जाती है किंतु अब हमें स्वयं के अंदर झांक कर अपनी बुराइयों को समाप्त कर सद्गुणों को धारण करना है ।
श्री कृष्ण का जन्म कारागार में जो दिखाते हैं उसका आध्यात्मिक अर्थ रुपाली दीदी ने बताते हुए कहा इस समय सभी मनुष्य मनुष्य आत्माएं काम, क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार रुपी पाँच विचारों के कारागार में है । निराकार परमात्मा "शिव" सर्व मनुष्य आत्माओं को यह ज्ञान देते हैं आप सभी देह नहीं आत्मा हैं और जब आत्माओं को जब यह स्मृति आती है मैं देह नहीं आत्मा हूं और ऐसा समझ जब व्यवहार करते हैं तो सभी बुराईयाँ स्वतः दूर होने लगती है सर्वगुण संपन्न बन जाते हैं तभी नवीन सृष्टि सतयुग का उद्भव होता है।
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