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न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के प्रस्ताव को लोकसभा में मंजूरी, 3 सदस्यीय समिति गठित

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नईदिल्ली । दिल्ली स्थित सरकारी आवास से बेहिसाब नकदी मिलने के मामले में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर लोकसभा में मंजूरी मिल गई है। मंगलवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उनके खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव पर 3 सदस्यीय समिति के गठन की घोषणा की है। समिति की रिपोर्ट के बाद उनको हटाने पर आगे की कार्यवाही होगी। संभावना जताई जा रही है कि इस मानसून सत्र में न्यायमूर्ति वर्मा मामले को लेकर लोकसभा में चर्चा हो सकती है।
तीन सदस्यीय पैनल में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनिंदर मोहन और वरिष्ठ अधिवक्ता बीवी आचार्य को शामिल किया गया है। समिति किसी न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124(4) के अंतर्गत तय है। समिति साक्ष्य मांग सकती है और गवाहों से बहस कर सकती है। इसके बाद समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को सौंपेगी, जिसे सदन में पेश किया जाएगा।
समिति की जांच में अगर न्यायाधीश दोषी हुए तो पैनल की रिपोर्ट उस सदन द्वारा स्वीकृत की जाती है जिसमें इसे पहली बार पेश किया गया था। इसके बाद, प्रस्ताव पर मतदान होगा। इसके बाद यही कार्यवाही दूसरे सदन में भी दोहराई जाएगी। मतदान में निर्णय सामने आएगा। अभी तक सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्ष इंडिया गठबंधन दोनों न्यायमूर्ति वर्मा के महाभियोग पर एकमत हैं। उम्मीद है कि उनको हटाने की प्रक्रिया संसद में सुचारू तरीके से चलेगी।
दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास के स्टोर रूम में 14 मार्च आग लग गई थी। उस समय न्यायमूर्ति वर्मा शहर में नहीं थे। उनके परिवार ने अग्निशमन और पुलिस को बुलाया। आग बुझाने के बाद टीम को घर से भारी मात्रा में नकदी मिली थी। इसकी जानकारी तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना को हुई तो उन्होंने कॉलेजियम बैठक बुलाकर न्यायमूर्ति वर्मा का स्थानांतरण इलाहाबाद हाई कोर्ट कर दिया। इसके बाद जांच समिति गठित हुई थी।
न्यायमूर्ति वर्मा ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में आंतरिक जांच रिपोर्ट को चुनौती दी थी, जिसमें न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने की सिफारिश की गई थी। वर्मा ने कहा था कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने उन्हें न्यायाधीश पद से हटाने की सिफारिश की है, जो असंवैधानिक और 'उनके अधिकार के बाहर' है। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और एजी मसीह की पीठ ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी।

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