-श्री नेम लब्धि अष्टान्हिका महोत्सव का चतुर्थ दिवस
नगपुरा। "महान व्यक्तियों का जीवन चरित्र, अनेकों के जीवन को चारित्रवान बनाता है। जब-जब ब्रम्हाचर्यव्रत की बात आती है, तब श्री नेमिनाथ प्रभु की याद अवश्य आती है। अपने लग्न जीवन के प्रसंग पर निर्दोष- अबोल जीवों की हिंसा को जानकर नेमिनाथ प्रभु ने लग्न जीवन का निषेध कर दिया था। जीवदया के ध्येय से उन्होने राजीमति (राजूल) के साथ नौ-नौ भवों से चली आ रही प्रीत को भी तोड़ डाला था। नेमिनाथ प्रभु के पास राजूल ने संयम ग्रहण कर राग को विराग- ममता को समता, नेम के प्रेम से- नेम की हेम में बदलकर आत्म से महात्मा बनकर मोक्ष पद को प्राप्त, किये।" उक्त उद्गार श्री उवसग्गहर पार्श्व तीर्थ नगपुरा में चातुर्मास आराधना क्रम में आज श्रावण सुदी षष्ठी को श्री नेमिनाथ प्रभु दीक्षाकल्याणक दिवस पर "नेम-संयम-संवेदना" प्रवचन माला में साध्वी श्री लब्धियशाश्रीजी म सा ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि नेम-राजुल के नव-नव भवों का निर्दोष दाम्पत्य जीवन पवित्र प्रेम की कहानी है। आज के युग में पति-पत्नि के संबंधों में आवेगजन्य निर्वाह, अक्षमता सुखद दाम्पत्य को दुःखमय बनाती है, वहीं नेम-राजूल का पवित्र प्रेम मोक्ष सुख में भी एक दूसरे को बाधक नहीं बनते हुए सुखद सहायक बना । राग अगर उच्च आत्मा के प्रति हो , शुभ भावों के साथ हो, तो वह राग भी विराग बनकर आत्म कल्याण का कारक बन जाता है।
आज श्री नेम-लब्धि अष्टान्हिका उत्सव का चतुर्थ दिवस साध्वी श्री लक्ष्ययशा श्रीजी, श्री आज्ञायशाश्रीजी म सा के मार्गदर्शन में चातुर्मास आराधक भाई-बहनों ने संयम की अभिलाषा के साथ, दीक्षा धर्म के प्रति अहोभाव व्यक्त करते- "संयम-संवेदना" यात्रा से जुड़कर भाव-विभोर हो गए।
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