नगपुरा। श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला के अंतर्गत आज साध्वी श्री आज्ञायशा श्री जी म.सा. ने श्री आचारांग सूत्र के आलंबन से उपस्थित आराधकों को जीवन में नम्रता और विनम्रता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “जो व्यक्ति नम्रता को धारण करता है, वह सभी के हृदय को जीत लेता है।” उन्होंने बताया कि विनम्रता सभी सद्गुणों की नींव है और यह व्यक्तित्व को ऊंचे स्तर तक ले जाती है।
साध्वी श्री ने कहा कि नम्र व्यक्ति दूसरों की भावनाओं और विचारों का सम्मान करता है। वह कभी स्वयं को श्रेष्ठ नहीं मानता, बल्कि सभी के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है। नम्रता का अर्थ केवल झुकना नहीं, बल्कि शक्ति को नियंत्रित कर सम्मान और सहानुभूति के साथ व्यवहार करना है। नम्र व्यक्ति अपनी गलतियों को सहजता से स्वीकार करता है और सीखने का प्रयास करता है। साथ ही, वह दूसरों की गलतियों को माफ भी कर देता है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि नम्रता रूपी सद्गुण में क्षमा भी समाहित होती है। जीवन में नम्रता का उद्देश्य केवल दूसरों को प्रसन्न करना नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और आत्म-मूल्यांकन के माध्यम से आत्मविकास करना है। अहंकार के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि अहंकार व्यक्ति को अंधकार की ओर ले जाता है, जबकि नम्रता उसे ज्ञान, करुणा और समझ के प्रकाश से जोड़ती है। प्रवचन के अंत में उन्होंने सभी से आह्वान किया कि वे जीवन में नम्रता को अपनाएं, अहंकार को त्यागें और आत्मिक शुद्धि की दिशा में अपने जीवन को सार्थक बनाएं।
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