नगपुरा। “आचरण के लिए ज्ञान का होना अनिवार्य है। ज्ञान और क्रिया एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, तथा ज्ञान की प्राप्ति के लिए समर्पण आवश्यक है।” उक्त प्रेरक विचार श्री आचारांग सूत्र व्याख्यान श्रृंखला के तहत श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ, नगपुरा में आयोजित प्रवचन में साध्वी श्री लब्धियशाश्रीजी म.सा. ने व्यक्त किए।
उन्होंने चातुर्मास आराधकों को संबोधित करते हुए कहा कि जो परमात्मा की आज्ञा का पालन करता है, वही सच्चे अर्थों में मेधावी है। जिस प्रकार रोटी बनाने हेतु आटा, पानी और अग्नि तीनों की आवश्यकता होती है, उसी तरह शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र का संगम अत्यंत आवश्यक है।
साध्वी श्रीजी ने कहा कि हमें परमात्मा द्वारा बताए सिद्धांतों पर श्रद्धा और समर्पण रखना चाहिए। समर्पण के अभाव में हमें अपने वास्तविक स्वरूप का बोध नहीं हो पाता। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, मनःस्थिति दृढ़ रहनी चाहिए। प्रतिकूलताओं को सहर्ष स्वीकार करना ही संयम है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे स्वस्थ शरीर के लिए रोग का निदान करना आवश्यक है, वैसे ही निज स्वरूप की पहचान के लिए अज्ञान रूपी रोग को दूर करना आवश्यक है। कुछ पाने के लिए झुकना पड़ता है। यदि आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति करनी है, तो परमात्मा के बताए मार्ग का श्रद्धापूर्वक अनुसरण करना ही पड़ेगा।
साध्वी श्रीजी ने आगे कहा कि जिनवाणी के प्रति श्रद्धा और विनय की भावना हमारे आचरण को शुद्धता की ओर ले जाती है। भावना के साथ पुरुषार्थ भी आवश्यक है, क्योंकि बिना पुरुषार्थ के भावना फलीभूत नहीं होती। ज्ञान के लिए पुरुषार्थ अनिवार्य है तथा ज्ञान के साथ किया गया क्रियात्मक पुरुषार्थ ही फलदायी होता है।
इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहकर प्रवचन श्रवण का लाभ ले रहे हैं।
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