नगपुरा। श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में आयोजित 54 दिवसीय श्री उवसग्गहरं उत्सव चातुर्मास के अंतर्गत आज से श्री आचारांग आगम प्रवचन माला का विधिवत् शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर भरूच निवासी गुरुभक्त मयूरभाई एवं स्मिताबेन शेठ द्वारा अपने चातुर्मासिक निवास स्थान से अत्यंत हर्षोल्लास के साथ बाजे-गाजे एवं आगम वधामणा के बीच आगम ग्रंथ गुरुवर्याश्री को समर्पित किए गए।
इसके पश्चात् विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी लब्धियशाश्रीजी ने कहा कि प्रभु महावीर ने साढ़े बारह वर्षों की कठिन साधना के उपरांत राग-द्वेष से मुक्त होकर वीतरागता प्राप्त की। वीतराग बनते ही वे देव निर्मित समवशरण में विराजमान होकर अपनी देशना का अमृत प्रवाहित करने लगे। प्रभु की देशना को उनके प्रधान शिष्य गणधर भगवंतों ने सूत्र रूप में संकलित किया, जो आगम कहलाते हैं।
उन्होंने बताया कि जैन आगमों में आचारांग आगम को विशेष महत्व प्राप्त है क्योंकि यह प्रभु महावीर की प्रथम देशना है। इसमें वैचारिक शुद्धि के माध्यम से आचरण शुद्धि तक पहुँचने की प्रक्रिया बताई गई है। साध्वीश्री ने कहा कि शुद्ध आचरण व्यक्ति की मानसिकता का परिचायक होता है। जीवन में मर्यादा और विवेक अत्यंत आवश्यक हैं। जहाँ इनका पालन होता है, वहाँ समन्वय स्वतः स्थापित हो जाता है। मर्यादा एवं विवेक के अभाव में ही विवाद जन्म लेते हैं। प्रभु महावीर ने विवादों को समाप्त कर संवाद का मार्ग प्रशस्त किया।
साध्वीश्री ने चातुर्मास आराधकों को ध्यान साधना हेतु प्रेरित करते हुए कहा कि सभी तीर्थंकरों की प्रतिमाएं ध्यानमग्न अवस्था में ही स्थापित की जाती हैं क्योंकि तीर्थंकर प्रभु अपने साधना काल का अधिकांश समय ध्यान में ही व्यतीत करते थे। उन्होंने कहा कि नगपुरा तीर्थ पर अनेक अशोक वृक्ष हैं। इन वृक्षों के नीचे ध्यान करने से साधक शोक, विषाद और व्यर्थ की चिंताओं से मुक्त होता है। तीर्थंकरों ने भी अशोक वृक्षों के नीचे बैठकर उपदेश दिए हैं।
साध्वीश्री ने बताया कि प्रभु महावीर ने अपनी अधिकांश देशना मालकौश राग में दी क्योंकि इस राग में पत्थर जैसे हृदय को भी पिघलाने की क्षमता है। प्रभु के वचनों का पुनःपुनः स्वाध्याय कर हमें भी अपने हृदय को कोमल बनाना चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में घोषणा की गई कि शनिवार दोपहर 3 बजे नागपुर से पधारे ज्ञानानंदी सुश्रावक जगदीशभाई सावड़िया प्रतिक्रमण से परिणति विषय पर विशेष विवेचन करेंगे।
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