सुकमा । नक्सल संगठन को बड़ा झटका देते हुए सुकमा जिले के जगरगुंडा क्षेत्र के निवासी अमित और उनकी पत्नी अरुणा ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला किया है। अमित, जो डिविजनल कमेटी मेंबर (DVCM) के रूप में संगठन में सक्रिय थे और जिन पर 8 लाख रुपये का इनाम था, तथा बीजापुर की रहने वाली उनकी पत्नी अरुणा, जो एरिया कमेटी मेंबर (ACM) थीं और जिन पर 5 लाख रुपये का इनाम था, ने हिंसा का रास्ता छोड़कर शांतिपूर्ण जीवन की ओर कदम बढ़ाया है। यह दंपति अब गांव में खेती कर सामान्य जीवन जीने की इच्छा रखता है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के युवाओं के लिए एक प्रेरणा बन सकता है।
अमित की कहानी तब शुरू हुई, जब वह मात्र 12-13 साल की उम्र में एक महिला नक्सली द्वारा संगठन में शामिल कर लिया गया था। उसने संगठन में तरक्की की और DVCM के पद तक पहुंचा। दूसरी ओर, अरुणा बीजापुर की रहने वाली थीं और संगठन में खाना बनाने और जरूरी सामान जुटाने जैसे कार्य करती थीं। 2019 में गढ़चिरौली में एक पार्टी मीटिंग के दौरान अमित और अरुणा की मुलाकात हुई। अमित को पहली नजर में ही अरुणा पसंद आ गई। कुछ समय बाद, हिम्मत जुटाकर अमित ने अरुणा को अपने दिल की बात बताई। शुरुआत में अरुणा ने संकोच किया, लेकिन बाद में उसने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और दोनों ने संगठन के भीतर ही शादी कर ली।
हालांकि, नक्सल संगठन के कठोर नियमों ने इस दंपति को माता-पिता बनने से रोक दिया। संगठन के नियमों के अनुसार, यदि पति-पत्नी दोनों नक्सली हैं, तो उन्हें बच्चे पैदा करने की अनुमति नहीं है। इसी कारण 2019 में अमित की नसबंदी करवा दी गई थी। अब आत्मसमर्पण के बाद अमित अपनी नसबंदी को उलटवाना चाहता है ताकि वह और अरुणा एक परिवार शुरू कर सकें। अमित ने स्पष्ट किया कि वह डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) या पुलिस में शामिल नहीं होना चाहता। उसकी इच्छा अपनी मां और पत्नी के साथ गांव में रहकर खेती करने और एक सामान्य, खुशहाल जीवन जीने की है।
अमित ने बताया कि उसके पिता, भाई और बहन अब इस दुनिया में नहीं हैं, और उसकी मां अकेली हैं। वह अब अपनी मां और पत्नी के साथ एक नया परिवार बसाना चाहता है। अमित और अरुणा ने यह भी दावा किया कि वे कभी किसी मुठभेड़ या हिंसक वारदात में शामिल नहीं रहे। उनका काम संगठन के भीतर तय जिम्मेदारियों तक ही सीमित था। इस दंपति का आत्मसमर्पण छत्तीसगढ़ सरकार की ‘नियद नेल्लानार’ योजना और नई आत्मसमर्पण व पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर हुआ, जिसके तहत उन्हें 50,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि और पुनर्वास सुविधाएं प्रदान की गई हैं।
सुकमा के पुलिस अधीक्षक किरण चव्हाण ने इस आत्मसमर्पण को नक्सलवाद के खिलाफ एक बड़ी सफलता बताया और कहा कि यह सरकार की नीतियों, सुरक्षा बलों की निरंतर कार्रवाई और स्थानीय समुदायों के विश्वास का परिणाम है। अमित और अरुणा की यह कहानी उन सैकड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो नक्सल संगठन की हिंसा और खोखली विचारधारा से तंग आ चुके हैं और एक नई शुरुआत की उम्मीद रखते हैं। यह साबित करता है कि सही समय पर लिया गया फैसला एक शांतिपूर्ण और सम्मानजनक जीवन की ओर ले जा सकता है।
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