प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि मतांतरण केवल हृदय परिवर्तन और ईमानदारी से विश्वास के आधार पर ही वैध माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि धोखे या दबाव में कराया गया मतांतरण न सिर्फ अवैध है, बल्कि यह एक गंभीर आपराधिक कृत्य भी है। ऐसे मामलों में पक्षों के बीच समझौता होने पर भी केस को खत्म नहीं किया जा सकता।
यह फैसला न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकल पीठ ने रामपुर निवासी तौफीक अहमद की याचिका खारिज करते हुए सुनाया। याची पर हिंदू लड़की को धोखे से प्रेमजाल में फंसाकर मतांतरण और दुष्कर्म का आरोप है। पीड़िता ने बताया कि आरोपी ने हिंदू नाम रखकर सोशल मीडिया के जरिए दोस्ती की, फिर शादी का झांसा देकर छह माह तक बंधक बनाए रखा।
पीड़िता को जब सच्चाई का पता चला कि आरोपी मुस्लिम है, तब उसने किसी तरह भागकर पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराई। बाद में अपने बयान में भी उसने आरोपों की पुष्टि की। पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है।
कोर्ट ने कहा कि इस्लाम में धर्म परिवर्तन तब तक वास्तविक नहीं माना जा सकता, जब तक वह वयस्क, स्वस्थ मस्तिष्क और स्वेच्छा से पैगम्बर मोहम्मद में विश्वास कर हृदय से न हुआ हो। कोर्ट ने इस प्रकार के अपराध को समाज और महिला की गरिमा के खिलाफ बताते हुए, समझौते के आधार पर आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) समेत अन्य आरोपों को रद्द करने से इनकार कर दिया।
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