दुर्ग-भिलाई

धर्म का उपयोग पाप को धोने के लिए नहीं पापों से बचने के लिए कीजिए: साध्वी डॉक्टर सुमंगल प्रभा

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गुरु आनंद स्वाध्याय प्रशिक्षण शिविर में नीलम बाफना, श्रीमती किरण संचेती सम्मानित 
दुर्ग।
गुरु आनंद स्वाध्याय संघ के प्रशिक्षण शिविर आध्यात्मिक वातावरण में चल रहा है । 
देश के विभिन्न शहरों से आए स्वाध्यायी ज्ञान ज्ञान के नए-नए गुर सीख रहे हैं, प्रशिक्षण शिविर की धर्म सभा में नीलम बाफना को स्वाध्याय सौरभ सम्मान से नवाजा गया। वहीं दूसरी ओर स्वाध्यायी श्रीमती किरण देवी संचेती को स्वाध्याय तपोधनी के सम्मान से अखिल भारतीय गुरु आनंद स्वाध्याय संध अहमदनगर तथा त्रिलोक रन वर्धमान स्थानकवासी धार्मिक परीक्षा बोर्ड के द्वारा यह सम्मान किया गया। 
पांच अलग-अलग कक्षाओं में साध्वी वृंद के अलावा स्वाध्याय साधना के तहत  ज्ञान ज्ञान सीखाने में अपना  समर्पण दे रहे हैं।
प्रशिक्षण शिविर की धर्म सभा को डॉक्टर विजय श्री जी, साध्वी डॉक्टर प्रियदर्शना जी, साध्वी साध्वी तरुलता जी, विक्षक्षण श्री जी स्वाध्याय साधकों को ज्ञान दर्शन के विभिन्न रूपों को अलग-अलग रूपों में समझ रहे हैं। 
धर्म सभा को संबोधित करते हुए डॉक्टर सुमंगल प्रभा जी ने कहा
धर्म सात्विक और पवित्र जीवन जीने का दिव्य मार्ग है। यह केवल नरक से बचने के लिए या स्वर्ग पाने के लिए नहीं है। अपितु मन के विकारों को शांत करने के लिए और कषायों से मुक्त होने के लिए हैं।
धर्म की चर्चा अधिक से अधिक करिए और कोरी चर्चा से हमें बचना चाहिए। धर्म हमें न नास्तिक बनाता है और न ही आस्तिक । वह तो हमें केवल वास्तविक बनाता है।
धर्म पगड़ी और दमडी नहीं है जब चाहो तब उतार दो और जब चाहे तब पहन लो अथवा जब चाहो तब दमडी की तरह भुना लो। धर्म तो चमड़ी है जो सदा हमारे जीवन का हिस्सा बनी रहती है।
जो क्रोध के वातावरण में प्रेम जगा दे वह धर्म है, क्रोध के वातावरण में संतोष जगा दे वह धर्म है, जो अहंकार के वातावरण में सरलता और विलासिता के वातावरण में संयम के भाव पैदा करदे उसी का नाम धर्म है।

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धर्म की हमें सिखावन है-अपने कर्तव्यों का पालन कीजिए, ईसान होकर इंसान के काम आइए । सब धर्मों का सम्मान कीजिए । इंसान होकर इंसान के काम आना दुनिया का सबसे महान धर्म है। प्रेम शांति और आनंद के धन को एटीएम से निकालना है तो उसका पासवर्ड है धर्म की आराधना। 
अगर कोई संत इरियावध्यि का ध्यान करते मोक्ष पा सकता है अगर कोई नारी हाथी के ओहदे पर बैठी मोक्ष पा सकती है, अगर कोई सेत पानी में सुपात्र को निराकरके तिर सकता है, अगर ईलायचीकुमार डोरी पर नृत्य करते करते ज्ञान पा सकता है, तो क्रिया प्रतिक्रिया की बात बाद में है सर्वप्रथम भाव दशा सर्वोपरि है। इसीलिए तो कहा है धर्म क्या है। टूटे हुए दिलों, को जोड़ने का काम धर्म है। बिखरे हुए परिवारों को जोड़ने का नाम धर्म है। मन में पलने वाली कषायों को शांत करने का नाम धर्म हैं। अपने कर्तव्यों को पालन करने का नाम धर्म है। चित्त को निर्मल बनाने का नाम धर्म है।

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